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बिहार : नाबालिग रेप पीड़िताओं की जिम्मेदारी उठाएगी सरकार, पीड़िता के खाते में 1 लाख डालने का आदेश : हाईकोर्ट 

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बिहारः
पटना हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िताओं के लिए अहम कदम उठाया है। हाईकोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दी। दरअसल एक रेप पीड़िता ने पॉक्सो कोर्ट में अनचाहें बच्चे का गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी जिससे कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 30 से 32 सप्ताह का गर्भ है और इस हालत में गर्भपात कराना बहुत ही खतरनाक है। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को पीड़िता की जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा है। उसके खाते में 1 लाख रुपए डालने के भी आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चे के जन्म के बाद उसको पालने के लिए उसके ऊपर कोई दबाव नहीं है। वो चाहे तो उसका लालन-पालन ना भी करे। ऐसी स्थिति में एनजीओ में उसका पालन पोषण होगा और कोई उसे गोद लेना चाहेगा तो ले सकता है।


पीड़िता के पिता के बैंक खाते में 1 लाख डालने का आदेश
कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को पीड़िता के पिता के बैंक खाते में तत्काल एक लाख रुपए डालने का आदेश दिया। समस्तीपुर की 16 वर्षीय नाबालिग से रेप किया गया था। कुछ दिन बाद जब पीड़िता ने उल्टी के साथ ही अन्य प्रकार का बदलाव महसूस किया तो उसने घटना की जानकारी अपने परिजनों को दी। इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।


पॉक्सो कोर्ट ने आवेदन किया खारिज 
वारदात के काफी समय बाद लड़की को अपने गर्भवती होने का पता चला। ऐसे में पीड़िता ने पॉक्सो कोर्ट में एक आवेदन देकर अपने गर्भपात की अपील की। पॉक्सो कोर्ट ने मेडिकल टीम गठित कर पीड़िता की जांच रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। मेडिकल टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि पीड़िता को 26 से 28 सप्ताह का गर्भ है और इस हालत में गर्भपात कराना बहुत ही खतरनाक है। ऐसे में उसके और उसके होने वाले बच्चे को लेकर सवाल उठने लगे। पॉक्सो कोर्ट ने उसके अपील को खारिज कर दिया। तब यह मामला हाईकोर्ट तक  पहुंचा। हाईकोर्ट ने पटना एम्स के आठ डॅाक्टरों की टीम गठित कर पीड़िता की जांच का आदेश दिया और रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। 


 मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराने का निर्देश 
पटना एम्स के आठ डॅाक्टरों की टीम ने रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में पेश किया। जिसमें लिखा था कि पीड़िता 30 से 32 सप्ताह का गर्भ है। इस हालत में गर्भपात कराना बहुत ही खतरनाक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने बाल कल्याण समिति और बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक और वहां के डीएम को पीड़िता की देखभाल कराने के साथ ही उसे सरकारी अस्पताल में मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने सुरक्षित प्रसव कराने और अन्य सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश दिया।