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शर्मनाक : बिहार के इस गांव में केवल 2 लोग हैं मैट्रिक पास, इस वजह से रह गई अशिक्षा 

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डेस्क:
आजादी के 7 दशक बाद भी अगर कहें कि हमारे देश में एक ऐसी जगह भी जहां 1 हजार लोगों में केवल 2 प्रतिशत लोग ही मैट्रिक पास हैं तो चौंकिएगा मत। यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं बल्कि बिहार (Bihar) के जमुई जिले की हकीकत है। महादलित बहुल इस गांव के  लोगों की अपनी ही दुनिया है। यहां के लोग ईंट-भट्ठों पर काम कर अपना जीवन-यापन करते हैं। हर घर शिक्षा पहुंचने का दावा करने वाली नीतीश सरकार (CM Nitish Kumar) के लिए भी यह खबर बेहद जरूरी है। इस गांव में शिक्षा को बढावा देने के लिए 2 युवती काजल और निशा ने पहल की है। यह पहल रंग भी ला रही है।

लगभग 1000 आबादी में मात्र 2 ही मैट्रिक पास
जिले के बरहट प्रखंड इलाके के पत्नेश्वर पहाड़ी की तलहटी में बसा गांव महादलित बहुल है। गांव की आबादी लगभग 1000 है। गरीबी के कारण पेट पालने और घर संभालने के लिए ग्रामीण ईंट-भट्ठों पर या कहीं और मजदूरी करते आ रहे हैं। शिक्षा की बात करे तो इस गांव में केवल मात्र 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं। वहीं यहां की लड़कियां पढ़ी ही नहीं है। लेकिन, अब इस गांव में भी लोगों को शिक्षा का महत्व समझ में आ गया है। गांव में शिक्षा की अलख जलने लगी है। बता दें कि वर्ष 2023 में यहां की 4 बेटियां मैट्रिक की परीक्षा देंगी। ये सभी मलयपुर गांव के कामिनी गर्ल्स स्कूल की छात्रा हैं। इस गांव की बेटी मुस्कान, मुरा, कुन्नी और तिरो सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं और पढ़ लिखकर आगे बढने की ठान ली है। इसी का नतीजा है कि परिवार वाले भी इनका साथ देने लगे हैं।

लड़कियां बाकी बच्चों को प्रेरित करती हैं
बता दें कि मुरा का सपना पढ़ लिखकर टीचर बनने का हैं। वहीं मुस्कान की चाहत कलेक्टर बनने की है। इन 4 लड़कियों से गांव के दूसरे बच्चे भी प्रेरणा ले रहे है। ईंट-भट्ठा पर काम करने वाली हिना भी इन लोगों के साथ पढाई करने लगी है। वे पढ़ाई करने के लिए इन चारों लड़कियों के साथ ही रहती है।

आखिर अशिक्षित क्यों है गांव! 
 सबसे बड़ा सवाल यह है कि 21वीं सदी में भी इस गांव के बच्चें स्कूल क्यों नहीं जाते है? इसका कारण है जागरुकता का अभाव। कई बार ऐसा होता है माता पिता अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला में जरूर कराते है। बाद भी कई बार ड्रॉप आउट हो जाते थे। खासकर लडकियां प्राय: ही स्कूल छोड़ देती थीं। महादलित समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 2 युवती काजल और निशा की पहल रंग लाई। ये दोनों गांव में बच्चों  को मुफ्त में कोचिंग देती हैं। इन्हीं  के प्रयास का नतीजा है कि यहां के लड़के-लड़कियां अब पढ़ने लगी हैं। अब मजदूर मां-बाप भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें।