डेस्क:
बिहार में दरोगा बाबू आए दिन पीट जा रहे है। कहीं शराब बंदी करवाने पहुंची पुलिस खुद पीट कर आती है तो कहीं दो गुटों के लड़ाई को सुलझाने में पुलिस ही पीट जाती है। ऐसी एक नहीं कई मामले सामने आएं है। आकंड़े की बात करें तो साल 2022 के जनवरी माह में बिहार पुलिस पर अलग-अलग जिलों में 374 बार हमला हुआ है।
फरवरी में पुलिस 211 बार पिटी
पुलिस के लिए नए साल का जनवरी सबसे ज्यादा पिटने वाला महीना रहा। फरवरी में भी पुलिस 211 बार पिटी, जबकि मार्च में लोगों ने उस पर 227 बार हमला किया। वहीं, अप्रैल में 190 और मई में 295 बार आम लोगों ने पुलिस पर हमला किया है। पुलिस पर हमला होने के बाद एक सिरे से कई लोगों पर FIR की जाती है। इस कार्रवाई में भी पुलिस का आक्रोश दिखाई देता है और पुलिस ऐसे लोगों का नाम भी रिकॉर्ड में लाती है, जो घटना में शामिल ही नहीं होते हैं। ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पुलिस अगर निष्पक्ष होकर काम करे और कार्रवाई से पहले घटना की जड़ तक पहुंच जाए, तो काफी हद तक हालात सुधर सकते हैं।
समाधान नहीं खोजा गया तो बिहार पुलिस का भविष्य अंधकार में होगा
बिहार के पूर्व डीजी अभयानंद का इस मामले में कहना है के पुलिस पर हमला भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। डीजी स्तर के अफसरों को इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस पर मंथन करना चाहिए।अगर समय से समाधान नहीं खोजा गया तो बिहार पुलिस का भविष्य अंधकार में होगा। ऐसे मामले भविष्य के लिए खतरा होते हैं जनता पुलिस की शिकायत या फिर उससे जुड़ी समस्या लेकर आए तो उस पर तत्परता से कार्यकर्ता से काम किया जाए। पुलिस पब्लिक के बीच जो भी मतभेद की गांठ है उसे उलझाने की बजाय सुलझाने का काम किया जाए। पुलिस को घटना विशेष में सिर्फ एफआईआर कर देना समाधान नहीं होता है अधिकारियों को इस पर गंभीर होकर काम करने की जरूरत है।