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साहिबगंज : गांव तक नहीं जाती पक्की सड़क, गर्भवती महिला को खटिया में टांगकर पहुंचाया अस्पताल

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भक्ति पांडेय/साहिबगंज: 


प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था बीमार होकर खटिया पर लेटी है। झारखंड के हेल्थ सिस्टम का ऐसा बुरा हाल हुआ है कि वो बांस की बल्लियों में रस्सियों के सहारे खाट पर लटकी है। जिस हेल्थ सिस्टम के चकाचक होने का सरकारी दावा किया जाता है, हकीकत में वो कीचड़ भरे ऊबड़-खाबड़ रास्ते में 4 कंधों पर टंगा हिचकोले खा रहा है। इस तस्वीर को दोबारा गौर से देखिए। अच्छे दिन के केंद्रीय और जो कहते हैं करके दिखाते हैं कि राज्यस्तरीय दावों की हकीकत 4 कंधों के सहारे खटिया में लेटकर अस्पताल जा रही है।


आजादी के अमृत महोत्सव और झारखंड गठन के 20 सालों के स्वर्णिम काल में विकास इतनी तेजी से दौड़ा है कि अपने पीछे खटिया में लेटी गर्भवती महिला की चुभने वाली तस्वीर छोड़ गया है। 

खटिया पकड़ चुका है Jharkhand का हेल्थ सिस्टम, नहीं विश्वास तो ये रिपोर्ट देखिए लीजिए

साहिबगंज जिला से सामने आई दुखद तस्वीर
ये तस्वीर झारखंड प्रदेश के संताल परगना प्रमंडल के अंतर्गत आने वाले साहिबगंज की है। नजारा प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक साहिबगंज जिले के बोरियो प्रखंड अतंर्गत बड़ा रक्शो पंचायत के मठियो गांव का है। ये वाकया बीते रविवार का है। रविवार को मठियो गांव में रहने वाली मैसी पहाड़िन को प्रसव पीड़ा हुई। परिजनों ने एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन विडंबना कहें या सरकारी सिस्टम की बेशर्मी। कहा गया कि गांव तक एंबुलेंस नहीं जा सकती। खुद ही कुछ इंतजाम कर लो। 

गर्भवती महिला को खाट में टांगकर ले जाना पड़ा
परिजनों के पास प्रसव पीड़ा से कराहती मैसी पहाड़िन को खटिया में टांगकर अस्पताल पहुंचाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। परिजनों ने आखिरकार खटिया को बांस की बल्लियों में रस्सी के सहारे लटकाया। गर्भवती मैसी पहाड़िन को उसमें लिटाया और टांगकर डेढ़ किमी पैदल चलते हुए मुख्य सड़क में खड़ी एंबुलेंस तक पहुंचाया। समस्या केवल यही नहीं थी। जिस रास्ते से ये लोग गर्भवती महिला को खटिया में लादकर अस्पताल पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं, वो कच्चा है। सरकारी योजनाओं की तरह।

 

स्वास्थ्य विभाग क्यों नहीं लेता इसकी जिम्मेदारी!
ऊबड़-खाबड़ है बिलकुल स्वास्थ्य विभाग के कार्यालयों की तरह। कीचड़ से भरा हुआ है, बिलकुल वैसा है जैसा अधिकारी और मंत्री एक-दूसरे पर उछालते हैं। यदि विभागीय मंत्री और अधिकारियों के जेहन में थोड़ी सी भी शर्म बाकी होगी तो उम्मीद है कि इस तस्वीर को देखने के बाद अपने उन तमाम दावों को वापस लेंगे जिसमें उन्होंने हेल्थ सिस्टम के दुरूस्त होने का दावा किया था। 

यदि बारिश होती तो नहीं पहुंचा पाते अस्पताल
जिस दिन की ये तस्वीर है गनीमत है कि उस दिन बारिश नहीं हुई। गांव के पास से गुजरने वाली नदी का जलस्तर भी सामान्य था। कल्पना कीजिए कि उस दिन अगर बारिश हो रही थी। नदी उफान पर होती। जिस कच्चे रास्ते से ये लोग तकरीबन दौड़ते हुए गुजर रहे हैं, यदि वो कीचड़ से भर गया होता। उसमें फिसलन होती। कल्पना कीजिए कि मैसी को अस्पताल पहुंचाने में ये लोग नाकामयाब हो जाते। तब शायद मैसी की विभागीय हत्या सरकारी फाइलों में सामान्य मौत के रूप में भी दर्ज नहीं हो पाती। 

सिद्धो-कान्हो की जन्मभूमि का ऐसा हाल
साहिबगंज जो संताल हूल के नायक सिद्धो-कान्हो की जन्मभूमि और कर्मभूमि है। साहिबगंज जहां की 3 विधानसभा सीटों में से 1 में केंद्र में सत्तारूड़ बीजेपी का कब्जा है तो वहीं 2 विधानसभा सीटों पर राज्य में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का। यही नहीं, 1 सीट पर तो खुद सीएम हेमंत सोरेन विधायक हैं। बोरियो, जहां की ये घटना है वहां से झामुमो के वरिष्ठ नेता लोबिन हेंब्रम जीतकर आए हैं। आदिवासी हक और हुकूक की बात करने वाली पार्टियां और राजनेता इस दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर पर क्या सफाई पेश करते हैं। वही देखना बाकी है।