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अजब-गजब : इस इमारत में मरने के लिए जाते हैं लोग, 14 हजार से ज्यादा लोगों ने इसके कमरों में मोक्ष पाया है

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डेस्क:
हम जब भी वाराणसी की बात करते है तो हम प्रायः उसे 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है लेकिन कई लोग के लिए काशी मोक्ष का शहर भी है। पान-ठंडाई की खुशबू वाले वाराणसी में एक इमारत ऐसी है जिसकी खास गंध लपककर आपका हाथ थाम लेगी। ये है मौत की गंध। इस इमारत का नाम काशी लाभ मुक्ति भवन है। वो दोमंजिला इमारत, जहां के 10 कमरे अब तक 14 हजार से भी ज्यादा मौतें देख चुके।

मोक्ष खोजते आए ऐसे ही लोगों का ठौर है मुक्ति भवन
इस इमारत में लकड़ी के हरे दरवाजे है और यहां की दीवांरें सफेद है। इसे साल 1908 में बनाया गया था। जिसके बाद से यहां के हर कमरे में मौत का इंतजार बसता है। काशी में मोक्ष खोजते आए ऐसे ही लोगों का ठौर है मुक्ति भवन। अब तक 14 हजार 878 लोग मौत से मुलाकात के लिए यहां आ चुके, और सिलसिला जारी है। इस इमारत के हर दीवार मौत की सियाही से रंगी है। इस इमारत के आगन में चि़ड़िया नहीं बल्कि मौत चहचहाती हैं। यहां ऐसे लोग आते है जो रात-रातभर दर्द से बेहाल रहते हैं, बिस्तर पर लेटे हुए शरीर पर घाव हो जाता है, लेकिन मर नहीं पाते। ऐसे लोग जिनके आंखों में किसे परिजन का नहीं बल्कि केवल मौत का इंतजार होता है।

15 दिनों से ज्यादा नहीं मिलता कमरा
इस पर मुक्ति भवन के व्यवस्थापक अनुराग शुक्ल कहते हैं कई बार एंबुलेंस या गाड़ी भवन के भीतर घुसती है और मरीज को मोक्ष मिल जाता है। वहीं कई ऐसे लोग भी आते हैं, जिनके चेहरों पर मौत की सफेदी पुती होती है। उन्होंने आगे बताया कि इस भवन का एक नियम है यहां किसी व्यक्ति को केवल 15 दिनों के लिए एक कमरा मिलता है।इस वक्त तक अगर मोक्ष न मिल सके तो उसे बाहर जाना होता है। कभी-कभार ये भी होता है कि हालत देखकर 15 दिनों की मियाद बढ़ा दी जाती है। ये वो लोग होते हैं, जिन्हें डॉक्टर जवाब दे चुके होते हैं। जिनका शरीर धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा होता है। जो खाना-पीना लगभग छोड़ चुके होते हैं और जिनकी आंखों में मौत का इंतजार टिमटिमाता होता है।

हालत देखकर मिलती है एंट्री
इस इमारत के कुछ नियम-कानून भी है। यहां आए मोक्षार्थी की हालत देखी जाती है, इसके बाद ही एंट्री मिलती है। अगर कोई सेहतमंद है तो वो यहां कमरा नहीं छेक सकता। अगर कोई अकेला है, तो भी उसे यहां रहने नहीं मिलेगा। जैसे कुछ रोज पहले ही एक शख्स आया, जो आखिरी दिन यहां बिताना चाहता था। अकेला देखकर हमें उसे लौटाना पड़ा। जाते हुए उसकी बूढ़ी आंखें भरभरा गई थीं। उसे देखकर तकलीफ तो बहुत हुई, लेकिन यही नियम है। बता दें कि यहां जितने लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है उनका रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है जिसे एक आलमारी में संभाल कर रखा जाता है।

थोड़ी दूर पर मर्णिकर्णिका घाट
वहीं इस से थोड़ी ही दूर पर मर्णिकर्णिका घाट है। कहा जाता है कि यहां 24 घंटे तक चिता जलती है। कही कोई लड़की की खरीदारी कर रहा है तो कहीं कोई कोने में बैठ कर रो रहा है। यहां का नजारा शब्दों में बया करना बहुत कठिन है।