द फॉलोअप डेस्क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान ने भारत में एक बार फिर उस संवेदनशील मुद्दे को छू दिया है, जो दशकों से विदेश मंत्रालय के लिए लगभग वर्जित रहा है — कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता।
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि भारत और पाकिस्तान ने हाल के सीमा संघर्षों के बाद एक “पूर्ण और तत्काल युद्धविराम” पर सहमति जताई है, जो अमेरिका की मध्यस्थता से संभव हुआ। उन्होंने यह भी लिखा, “मैं दोनों देशों के साथ काम करूंगा ताकि, शायद एक हज़ार साल बाद, कश्मीर मुद्दे का हल निकल सके।” इस बयान ने दिल्ली में कूटनीतिक हलकों को चौंका दिया है, क्योंकि भारत लगातार यह दोहराता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा, “यह स्पष्ट है कि यह भारत के लिए स्वीकार्य नहीं होगा। यह हमारे लंबे समय से चले आ रहे नीति-रुख के खिलाफ है।” उधर पाकिस्तान ने ट्रंप की टिप्पणी का स्वागत किया है। इस्लामाबाद की ओर से जारी बयान में कहा गया, “हम राष्ट्रपति ट्रंप की कश्मीर मुद्दे को हल करने की इच्छा की सराहना करते हैं। यह एक पुराना विवाद है, जिसका असर दक्षिण एशिया और उससे आगे की शांति और सुरक्षा पर पड़ता है।”
पिछले महीने भारतीय नियंत्रित कश्मीर में पर्यटकों पर हुए हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने पाकिस्तान में कथित आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए थे। इसके बाद दोनों देशों के बीच लड़ाकू विमान, मिसाइल और ड्रोन तक का इस्तेमाल होने लगा था। इस संकट को और बढ़ने से रोकने में अमेरिका और अन्य कूटनीतिक प्रयासों की भूमिका रही, लेकिन ट्रंप का मध्यस्थता प्रस्ताव भारत के लिए असहज स्थिति पैदा कर गया है।
विशेष रूप से 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद भारत का रुख और सख्त हुआ है। ऐसे में ट्रंप की हालिया टिप्पणी को भारत में कई लोग ‘कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण’ मान रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी ने इस पूरे घटनाक्रम पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “क्या मोदी सरकार ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाज़ा खोल दिया है? क्या भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक बातचीत फिर से शुरू हो रही है?” उन्होंने यह भी मांग की कि इस पर सभी दलों की बैठक बुलाई जाए।
इसी बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी अपने बयान में कहा कि दोनों देशों ने एक "तटस्थ स्थान पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत" की सहमति दी है। यह बात भी भारत को चौंकाने वाली लगी है, क्योंकि नई दिल्ली ने पहले ऐसे किसी संवाद की पुष्टि नहीं की है। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि भारत की ‘कोई तीसरी पार्टी नहीं’ नीति क्या अब दबाव में है, या ट्रंप की बातों को भारत पूरी तरह नकार देगा।