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प्राकृतिक कृषि से प्रकृति का संरक्षण होगा, जड़ों की ओर लौट सकेंगे हम; कार्यशाला में बोले विशेषज्ञ

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द फॉलोअप डेस्क, रांची:

गुरुवार को रांची के स्थानीय सभागार में "प्रकृति के साथ सामंजस्य: प्राकृतिक कृषि प्रणाली के सुदृढ़ीकरण " विषय  पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का आयोजन राज्य में प्राकृतिक कृषि को बड़े पैमाने पर अपनाने हेतु कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया। कार्यक्रम में किसानों एवं विभिन्न पैनलिस्ट द्वारा यह साझा किया गया कि हम प्राकृतिक या पुनर्जीवी खेती को क्यों अपनाते हैं। वर्तमान में उसमें हम क्या कर रहे है? इसे कैसे आगे बढाएंगे। विकास के क्षेत्र के एक प्रमुख किरदार के रूप में झारखंड में प्राकृतिक कृषि की क्षमता को कैसे देखते हैं और इसके प्रसार के लिए अब तक आपके क्या प्रयास रहे हैं? तथा सम्पूर्ण राज्य में प्राकृतिक कृषि को अपनाने के लिए किस तरह की पारिस्थितिकी तंत्र सहायक हो सकती है। इन सभी बिन्दुओं पर कार्यक्रम में विस्तृत चर्चा की गयी। 

प्राकृतिक कृषि से आने वाला है बड़ा बदलाव
 ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर ने कहा कि हमें एक क्वांटम जम्प लेने की अवश्यकता है जिससे हमारे समस्याओं का निदान मिल सके और इसके लिए प्राकृतिक कृषि सबसे बड़ी पहल है। हमारे मापदंड तथा नीतियों को वैश्विक सतह पर परिवर्तन की अवश्यकता है। साथ ही साथ हमें प्राकृतिक खेती को बड़े स्तर पर ले जाना होगा, पानी का संरक्षण करना होगा तथा बंजर जमीन को पेड़ों के माध्यम से उपजाऊ बनाना होगा। मेढबंदी को बढ़ावा देना होगा तथा ऐसे मॉडल विकसित करने होंगे जो कि मिल का पत्थर साबित हो।  

प्राकृतिक कृषि के जरिए अपनी जड़ों की ओर लौटें
कृषि विभाग (झारखंड सरकार) के सचिव अबू बकर सिद्दकी ने कहा कि हमें जरूरत है कि हम अपने जड़ों की ओर वापसी करें और हमारे लालच ने प्रकृति को जो चोट पहुंचाया है उसकी पूर्ति करें। हमें अपने आने वाले पीढ़ियों के लिए भी धरोहर का इंतजाम करना है। इसके लिए प्राकृतिक कृषि सबसे अच्छा विकल्प साबित होगा। झारखंड की जल जंगल जमीन बचाने और उसे बचाने की प्रथा हमारी सबसे बड़ी ताकत है। 
उन्होंने कार्यशाला के सुझावों को लिखित रूप में विभाग को देने का सलाह दिया और कहा कि इस तरह की कार्यशाला और भी भविष्य में करने की जरूरत है जिससे राज्य के कार्यक्रम और नीतियों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक कदम उठाए जा सकेl

कार्यशाला में विशेषज्ञों ने रखी अपनी-अपनी राय
कुडू प्रखण्ड के महिला किसान एमलेन कंडुलना ने अपने क्षेत्र में कर रहे प्राकृतिक कृषि के बारे में साझा किया। वह जैविक पद्धति से प्रदान के मदद से जमीन लीज पर लेकर शुरू किया था। वर्तमान में वह 10 महिला किसानों के साथ मिलकर जैविक खाद एवं कीटनाशक बनाकर अन्य किसानों को भी मुहैया करा रही है। उनका यह सपना है कि आने वाले कुछ वर्षों में 5000 किसानो को प्राकृतिक कृषि के साथ जोड़े। 
विकास सहयोग केंद्र के जवाहर मेहता ने कहा कि पलामू क्षेत्र में पानी की कमी एवं कुपोषण की समस्या को देखते हुए 100 किसानों के साथ प्राकृतिक कृषि का शुरुआत किया। आज दुसरे किसान इससे सिख लेकर प्राकृतिक कृषि को अपना रहे हैं। उनके संस्था का इस क्षेत्र में विभिन्न स्तर पर किसानों को प्रशिक्षण देने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

दिव्यायन कृषि विज्ञानं केंद्र रांची के वैज्ञानिक डॉ. रविन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि किसानों के प्राकृतिक कृषि की ओर आकर्षित करने के लिए वर्ष 2014 में उन्होंने पहले खुद इस पद्धति से कृषि किया, उसके परिणाम के देखा व समझा तत्पश्चात किसानों को इसके बारे में बताने एवं प्रेरित करने के लिए योजना बनाया ताकि वह मजबूती के साथ किसानों को यह पद्धति अपनाने हेतु कार्य कर सके। 
 

ICAR के वैज्ञानिक एवं क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण कुमार सिंह ने कहा कि अगर हमें प्राकृतिक कृषि को एक सही दिशा में ले जाना है तो हमें इसे आंदोलन के रूप घर-घर, गांव-गांव में जैविक खाद एवं दवाई आदि बनाने हेतु प्रोत्साहित करना होगा। इसके अलावा प्रत्येक किसानों को पशुधन पालन करना होगा ताकि हमें जैविक इनपुट बनाने के लिए आसानी से कच्ची सामग्री उपलब्ध हो सके। 

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सिद्धार्थ जायसवाल ने कहा कि उन्होंने खूंटी, चाकुलिया तथा झारखंड के अन्य जिलों में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की है। जब तक किसानों को एक अच्छा बाज़ार नही उपलब्ध कराएंगे तब तक हम प्राकृतिक खेती को लंबे समय तक बनाये नहीं रख सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में खाद्य पदार्थों के स्थिति इतनी ख़राब है कि हम क्या खा रहे हैं खुद को पता नही। आज के समय में खाद्य पदार्थों में पोषण की मात्र पूर्व के मुकाबले इतना कम हो गया है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। ऐसा प्रतीत हो रहा है की अब हम खाद्य पदार्थ का उत्पादन नही बल्कि कचरा का उत्पादन कर रहे हैं। अतः इससे बचने के लिए हमें पुराने पद्धति को अपनाना ही एक मात्र उपाय है। 

प्रदान के दिब्येंदु एवं प्रणव ने प्राकृतिक कृषि पर एक स्टडी रिपोर्ट साझा किया जिसमे उन्होंने झारखंड के 11 प्रखंडों में 2800 परिवारों का एक सैंपल लिया। इसमें 2400 किसानो ने प्रक्रितक कृषि करने को स्वीकारा। इस स्टडी का परिणाम यह भी रहा कि मिट्टी के स्वास्थ्य, स्वादिष्ट खाद्य सामग्री एवं हेल्दी खाना प्राप्त करने हेतु कृषि की यह पद्दति जरुरी है। 

विशेषज्ञ सहित 125 प्रतिभागियों ने लिया हिस्सा
कार्यशाला में झारखंड के विभिन्न हितधारक एवं प्राकृतिक खेती की बेहतर समझ रखने वाले एक्सपर्ट्स के सहित लगभग 125 प्रतिभागी उपस्थित हुए। इस कार्यक्रम का सञ्चालन संयुक्त रूप से प्रदान के प्रेम शंकर एवं कुन्तलिका द्वारा किया गया। प्रदान के  बाला देवी  द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समापन किया गया। प्रांजल सैकिया, रजनीकांत, मानस,तारक, सुजीत दास,जीदास, मौसमी, धनंजय ज्योति, सुकांत सहित सैकड़ो प्रतिभागियों ने भाग लियाl