द फॉलोअप डेस्क
झारखंड में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या में इस बार गिरावट दर्ज की गयी है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में मनरेगा काम की मांग में 8% की कमी आई है। एक ताजा सर्वे के अनुसार झारखंड देश के उन शीर्ष 3 राज्यों में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा मजदूर ऑनलाइन भुगतान के लिए अयोग्य पाए गए हैं। यह सर्वे लिबटेक इंडिया नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा किया गया, जिसका नाम है 'द मिसिंग वर्क: ए नेशनल रिव्यू ऑफ मनरेगा इम्पलीमेंटेशन (2024025)'।
झारखंड में करीब 39 लाख मजदूरों को नहीं मिल रहा भुगतान
झारखंड में मनरेगा के तहत 1.03 करोड़ लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, लेकिन इनमें से करीब 38% यानी 39 लाख मजदूर आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए अयोग्य हैं। इसका मतलब है कि इन मजदूरों को काम करने के बावजूद मजदूरी नहीं मिल पाती, क्योंकि उनके बैंक खाते आधार और सरकारी भुगतान प्रणाली से नहीं जुड़े हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य में कुल 10.97 करोड़ कार्यदिवस का काम मिला था, जो 2024-25 में घटकर 10.09 करोड़ रह गया। यह भी एक वजह है कि लोग अब मनरेगा में कम रुचि ले रहे हैं।
तकनीकी दिक्कतें और मजदूरी की मार
इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में लोगों को तकनीकी जानकारी की कमी, आधार लिंक न होना और बैंक से जुड़ी दिक्कतें मजदूरी रुकने की बड़ी वजह हैं। कई मजदूरों को काम मिलने के बाद भी पैसे नहीं मिलते, जिससे वे निराश होकर दूसरी जगह काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मनरेगा की मजदूरी भी कृषि मजदूरी से कम है। राज्य में मनरेगा मजदूरी 282 रुपये प्रतिदिन है, जबकि खेती में काम करने वालों को 289 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। सर्वे के अनुसार, झारखंड के अलावा महाराष्ट्र में 63.44% और गुजरात में 58.10% मजदूर एबीपीएस के लिए अयोग्य हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट में कटौती और पैसों की कमी भी मनरेगा की कमजोर स्थिति के पीछे बड़ी वजह है।