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लोकसभा विशेष : 3 बार से BJP का अभेद्य किला बन चुके धनबाद में क्या गठबंधन कर पाएगा सेंधमारी

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द फॉलोअप डेस्क:

द फॉलोअप लोकसभा विशेष में आज किस्सा धनबाद लोकसभा सीट की। धनबाद जो पिछले 3 आम चुनावों से बीजेपी का अभेद्य किला बना हुआ है। धनबाद, जहां की जनता ने कांग्रेस, बीजेपी और वामपंथी पार्टियों को अलग-अलग अंतराल पर जीत से नवाजा। धनबाद, जो झारखंड आंदोलनकारी एके रॉय के संघर्षों और राजनीतिक सफरनामे का जीवंत गवाह है। धनबाद जहां एक और आधुनिकता की चकाचौंध है तो दूसरी ओर झरिया में जलती और धंसती बस्तियां। धनबाद जहां उम्मीद और संभावनाएं सांस लेती है तो दूसरी ओर अपराध भी पनाह लेता है। धनबाद, जो अपने अकूत कोयला भंडार की वजह से कोयलांचल कहलाता है। 

1952 में पहले आम चुनाव के समय धनबाद जिला अस्तित्व में नहीं था। तब धनबाद, मानभूम कहलाता था। संसदीय सीट को कहते थे उत्तरी मानभूम। तब यहां विधानसभा की 7 सीटें हुआ करती थी। पारा-चास संयुक्त विधानसभा थी। जब धनबाद जिला का गठन हुआ तो पारा, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के हिस्से में चला गया। कांग्रेस नेता प्रभात चंद्र बोस उर्फ पीसी बोस यहां के पहले सांसद बने। 
धनबाद लोकसभा सीट की हमारी कहानी शुरू होगी वर्ष 2004 के आम चुनाव से जहां कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे ने पंजा पताका फहराई थी। चलिए आपको लिए चलते हैं धनबाद लोकसभा सीट की रोमांचक सियासी यात्रा पर.....

वर्ष 2004 का आम चुनाव बेहद खास था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने पहली बार 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था। सर्व शिक्षा अभियान, जनजातीय मंत्रालय और स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना जैसी महात्वाकांक्षी योजनाओं को उपलब्धि बताकर बीजेपी शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव में उतरी  थी। 

2004 का आम चुनाव झारखंड के लिए इस लिहाज से खास था कि राज्य गठन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था। धनबाद में कांग्रेस ने चंद्रशेखर दुबे, बीजेपी ने रीता वर्मा और लेफ्ट ने एके रॉय को चुनावी मैदान में उतारा था। 

रीता वर्मा

वर्ष 2004 के आम चुनाव के समय धनबाद में कुल मतदाताओं की संख्या 17,49,456 थी। इनमें 9, 80,265 पुरुष जबकि 7,69,191 महिला मतदाता थे। हालांकि मतदान में 9,41,715 मतदाताओं ने ही हिस्सा लिया था। 2004 का आम चुनाव सोनिया गांधी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने जीता। शाइनिंग इंडिया का नारा फीका पड़ गया। असर धनबाद में भी हुआ। कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे 3,55,499 वोट लाकर जीते। उनको 37.8 फीसदी वोट मिला। बीजेपी की रीता वर्मा 2,36,121 वोट ही ला सकीं। उन्हें 25.1 फीसदी वोट मिला। एके रॉय महज 1,47,470 वोट ही ला सके। यह शायद धनबाद में कभी यूनियन पॉलिटिक्स का सिरमौर रहे लेफ्ट के पराभव की शुरुआत थी। कांग्रेस ने पंजा पताका फहराई लेकिन 2009 में यहां बहुत कुछ बदल गया। 

2009 के लोकसभा चुनाव में धनबाद के 18,06,375 में से 8, 13,521 मतदाताओं ने हिस्सा लिया। बीजेपी ने पशुपतिनाथ सिंह, कांग्रेस ने चंद्रशेखर दुबे और बहुजन समाज पार्टी ने समरेश सिंह को चुनावी रणभूमि में उतारा। 

चंद्रशेखऱ दुबे उर्फ ददई दुबे

केंद्र में तो एनडीए का 2004 के आम चुनाव वाला ही हाल हुआ लेकिन पशुपतिनाथ सिंह धनबाद में कमल खिलाने में कामयाब रहे। पीएन सिंह 2,60,521 वोट लाकर जीते। उन्हें 32 फीसदी वोट मिला। ददई दुबे यहां कांग्रेस का पंजा नहीं फैला सके। उन्हें 2,02,474 वोट मिला। उन्होंने 24.9 फीसदी वोट हासिल किये। बसपा के समरेश सिंह को 1,32,445 वोट से संतोष करना पड़ा। 2009 में बीजेपी और पशुपतिनाथ सिंह की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वो मोदी युग में स्वाभाविक तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहा। 

2014 तक आते-आते कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार कोल स्कैम, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला और 2जी स्पक्ट्रम में गड़बड़ी जैसी कई चुनौतियों से जूझ रही थी। इस बीच अन्ना आंदोलन ने देशभर का माहौल बदल दिया था। जब अनिश्चितता भरे माहौल में जनता बदलाव के मूड में थी तभी बीजेपी ने अब तक का सबसे बड़ा दांव चला।

अच्छे दिन के वादे को गुजरात मॉडल की पैकेजिंग के साथ अपने फायर ब्रांड नेता नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जो उन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। संभवत वादा और नेता, दोनों ही नागरिकों के बड़े वर्ग को पसंद आया और एनडीए के हिस्से ऐतिहासिक जीत आई। विपक्ष को मिली शिकस्त का आलम ऐसा था कि कांग्रेस पार्टी महज 48 सीटों पर सिमट गई। इस वर्ष धनबाद में कुल 18,89,994 में से 11,36,227 मतदाताओं ने आम चुनाव में हिस्सा लिया। बीजेपी के पशुपतिनाथ सिंह ने रिकॉर्ड मतों से अपनी जीत दोहराई। पीएन सिंह 5,43,491 वोट लाकर जीते। उनको 47.5 फीसदी वोट मिला।

कांग्रेस ने इस प्रत्याशी बदला था लेकिन परिणाम नहीं बदल पाए। प्रत्याशी अजय दूबे 2,50,527 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे। उन्हें महज 21.9 फीसदी वोट मिला। लेफ्ट के आनंद महतो को 1,10,185 वोट मिला।

पिछली दफा बसपा से लड़े समरेश सिंह ने इस बार बाबूलाल की झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर किस्मत आजमाया लेकिन रिजल्ट और भी बुरे आये। उनको महज 90,926 वोट मिला। 

2019 के आम चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को और भी प्रचंड जीत हासिल हुई। कांग्रेस के लिए केवल इतना ही बदला कि वो 48 से 52 लोकसभा सीटों पर पहुंच गई। नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुए तो विपक्ष आत्मंथन में जुट गया।
धनबाद लोकसभा सीट पर 20,50,314 में से 12,48,471 मतदाताओं ने हिस्सा लिया था। बीजेपी ने लगातार तीसरी बार पशुपतिनाथ सिंह पर ही भरोसा जताया। कांग्रेस ने फिर प्रत्याशी बदला। बीजेपी से आयातित कीर्ति आजाद को धनबाद के सियासी समर में उतारा। बाबूलाल मरांडी का झारखंड विकास मोर्चा, इस दफे यूपीए गठबंधन का हिस्सा था। पिछली दफा झाविमो उम्मीदवार को 90,926 वोट मिले थे। 2019 का परिणाम देखेंगे तो समझ पाएंगे कि झाविमो के यूपीए का हिस्सा बनने का कोई फायदा नहीं हुआ। बीजेपी के पीएन सिंह ने रिकॉर्ड 8,27,234 वोट लाकर प्रचंड जीत हासिल की। उनको 66 फीसदी वोट मिले। कमल छोड़, पंजा थामने वाले कीर्ति आजाद को पीएन सिंह के हाथों शर्मनाक हार मिली। कीर्ति आजा केवल 3,41,040 वोट ही पा सके। निर्दलीय उम्मीदवार राजेश कुमार सिंह तो महज 11,110 वोटों का शगुन ही पा सके। 

धनबाद लोकसभा सीट से जुड़े कुछ जरूरी तथ्यों पर निगाह डाल लेते हैं। मसलन यहां विधानसभा की कितनी सीटें हैं और वहां मौजूदा विधायक कौन और किस पार्टी से हैं। 

धनबाद संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की कुल 6 सीटें हैं। धनबाद, निरसा, चंदनकियारी, झरिया, सिंदरी और बोकारो। धनबाद से भारतीय जनता पार्टी के राज सिन्हा विधायक हैं। चंदनकियारी से बीजेपी के अमर बाउरी विधायक हैं। ढुल्लू महतो विधायक हैं। झरिया में कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह विधायक हैं। सिंदरी विधानसभा सीट से बीजेपी के इंद्रजीत महतो विधायक हैं। निरसा में बीजेपी की अपर्णा सेनगुप्ता विधायक हैं। बोकारो से बीजेपी के बिरंचि नारायण विधायक हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है कि धनबाद में बीजेपी का दबदबा है। पशुपतिनाथ सिंह ने लगातार 3 लोकसभा चुनाव जीते। विधानसभा की 6 में से 4 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। देखना दिलचस्प होगा कि, क्या बीजेपी इसे दोहरा पायेगी। 

धनबाद संसदीय क्षेत्र के इतिहास की बात करें तो यहां वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 1962 तक पूरे 10 वर्ष कांग्रेस का दबदबा रहा। 1967 में यहां रानी ललिता राजलक्ष्मी जीतीं। 1977 से लेकर 1989 तक 3 बार लेफ्ट के एके रॉय जीते। बीजेपी की रीता वर्मा 1991,1996,1998 और 1999 में लगातार 4 चुनाव जीतीं। 2004 में यहां ददई दूबे ने कांग्रेस की वापसी कराई। हालांकि इसके बाद 2009 से 2019 तक लगातार 3 बार बीजेपी के पशुपतिनाथ सिंह ने जीत दर्ज की। 

चलिए यह भी जान लेते हैं कि धनबाद की खूबियां और खामियां क्या हैं। धनबाद की समस्याएं क्या हैं। 

26,82,662 की जनसंख्या वाले धनबाद में 38.76 फीसदी ग्रामीण आबादी है। 61.24 फीसदी नागरिक शहरी क्षेत्र में निवास करते हैं। अनुसूचित जाति वर्ग की संख्या 15.83 फीसदी है वहीं 7.72 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति वर्ग की है। धनबाद की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से उद्योग आधारित है। इसे झारखंड का कोल कैपिटल भी कहा जाता है। यहां भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, बीईएमएल लिमिटेड, बोकारो पावर सप्लाई कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड जैसे उद्योग और फैक्ट्रियां है। 

धनबाद में पर्यटन की भी काफी संभावनाएं हैं। बराकर नदी के तट पर बसे धनबाद शहर में मैथन डैम प्रमुख पर्यटन स्थल है। मां कालेश्वरी का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। तोपचांची झील को भी पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जा सकता है। 

कोल कैपिटल धनबाद में भूमिगत आग और भू-धंसान एक बड़ी आबादी के लिए प्रमुख समस्या है। भूमिगत आग से प्रभावित लोगों के लिए वर्ष 2009 में झरिया एक्शन प्लान लाया गया था। इसमें 12 साल में 53 हजार आबादी का पुनर्वास किया जाना था। अब प्रभावित आबादी की संख्या 1 लाख के पार हो गई है। धनबाद पिछले कुछ वर्षों से अपराध के लिए सुर्खियों में रहा। व्यापारियों से रंगदारी, कोयला चोरी और गैंगवार की वजह से शहर अव्यवस्थित रहता है। इससे पार पाना होगा। 

द फॉलोअप लोकसभा विशेष की अगली कड़ी में जानेंगे खूंटी लोकसभा सीट की कहानी। आप अपने सुझाव भी दे सकते हैं...