सूरज ठाकुर, रांची:
मिशन-2024 के तहत झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों पर जीत और प्रदेश की सत्ता में वापसी का लक्ष्य लेकर चल रही बीजेपी अब जातीय समीकरणों को साधने पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। बिहार में जातीय सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी जातीय समीकरण को लेकर और भी संजीदा हो गई है। इसकी पहली झलक दिखी जब 15 अक्टूबर की देर शाम केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बाबूलाल मरांडी को पत्र लिखकर जेपी पटेल को सचेतक और अमर बाउरी को विधायक दल का नेता घोषित करने को कहा। अब विस्तार से समझिए कि बीजेपी आगामी चुनावों के लिए कैसे जातीय समीकरण साध रही है और यह समझने के लिए जरूरी है कि हम यह जानें कि झारखंड में किस वर्ग की कितनी आबादी है।
झारखंड में किस वर्ग की कितनी आबादी
3 साल पहले राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने हेमंत सोरेन सरकार को ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की अनुशंसा की थी। तब राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि झारखंड में ओबीसी वर्ग की आबादी करीब 55 फीसदी है। समय-समय पर ओबीसी वर्ग से जुड़े अलग-अलग संगठनों द्वारा भी यह दावा किया गया कि झारखंड में 55 फीसदी के साथ ओबीसी वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है। बता दें कि राज्य में दलित आबादी 16.33 फीसदी है वहीं 28 फीसदी आदिवासी रहते हैं। जाहिर है कि विधानसभा और लोकसभा में सभी वर्गों को अपना प्रतिनिधित्व चाहिए। बीजेपी ने इन्हीं आंकड़ों के आधार पर आगामी चुनावों में सफलता की संभावनाएं बढ़ाने के लिए जातीय समीकरणों का साधने का प्रयास किया है।
कैसे, आइए समझते हैं...
अमर बाउरी को विधायक दल के नेता बनाया गया
15 अक्टूबर को बीजेपी ने अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया। अमर बाउरी बीजेपी के लिए राज्य में बड़ा दलित चेहरा हैं। झारखंड में दलित वर्ग की आबादी 16.33 फीसदी है। प्रदेश की 81 में से 9 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों में देवघर, जमुआ, चंदनकियारी, सिमरिया, चतरा, छतरपुर, लातेहार, कांके और जुगसलाई शामिल है। बीजेपी ने पिछले चुनावों में 9 एससी आरक्षित सीटों में से 6 पर जीत दर्ज की थी। इन 9 आरक्षित सीटों के अलावा अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी अच्छी-खासी दलित आबादी है। अमर बाउरी के सहारे बीजेपी ने दलित वोटों को साधने का बड़ा दांव चला है।
ओबीसी वर्ग को साधने के लिए जेपी पटेल को कमान
राज्य की आबादी में तकरीबन 55 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ओबीसी वर्ग को साधने के लिए भी बीजेपी ने बड़ा दांव चला है। 15 अक्टूबर को ही मांडू विधायक जेपी पटेल को सचेतक बनाया गया। जेपी पटेल कुर्मी समुदाय से आते हैं और ओबीसी चेहरा हैं। जेपी पटेल को सचेतक बनाकर बीजेपी ने एक तीर से 2 निशाने लगाए हैं। पहला यही कि वह राज्य की आबादी में 55 फीसदी हिस्सेदारी वाले ओबीसी वर्ग से आते हैं, वहीं झारखंड में राजनीतिक-सामाजिक तौर पर सक्रिय कुड़मी समुदाय पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है।
पिता टेकलाल महतो के निधन के बाद 2011 में झामुमो से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले जेपी पटेल 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में आए और अब संगठन ने उनको बड़ी जिम्मेदारी दी है।
बाबूलाल मरांडी के जरिए आदिवासी बहुल सीटों पर निगाह
झारखंड में आदिवासियों की आबादी 28 फीसदी है। प्रदेश की 81 विधानसभा सीटों में से 28 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 2019 में बीजेपी को केवल 2 एसटी सीटों पर जीत मिली जबकि 2014 में बीजेपी ने 13 सीटें जीती थीं। इस बार बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल किया है। आगामी चुनावों में आदिवासी समुदाय को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री और लोकप्रिय आदिवासी चेहरे, बाबूलाल मरांडी पर बड़ा दांव लगाया है।
14 साल बाद फरवरी 2020 में बीजेपी में वापसी करने वाले बाबूलाल मरांडी को पार्टी ने जुलाई 2023 में प्रदेश की कमान सौंप दी। यह स्पष्ट रूप से आदिवासी समुदाय को साधने की कवायद थी। बाबूलाल मरांडी की गतिविधियां इसकी तस्दीक भी करती हैं। पिछली बार संताल परगना के एसटी सीटों पर बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था।
बाबूलाल मरांडी ने संकल्प यात्रा के जरिए भांपा राज्य का मूड
ये दोबारा ना हो इसलिए बाबूलाल मरांडी ने अपनी संकल्प यात्रा की शुरुआत संताल परगना से की। संकल्प यात्रा की शुरुआत के लिए बाबूलाल मरांडी ने संताल आदिवासी बहुल साहिबगंज जिले के बरहेट को चुना। बरहेट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का विधानसभा क्षेत्र भी है।
झारखंड बीजेपी के नेतृत्व में हालिया बदलाव इस बात की तस्दीक करते हैं कि पार्टी जातीय समीकरणों को साधकर मिशन-2024 की कामयाबी सुनिश्चित करना चाहती है। अमर बाउरी के रूप में दलित वोटरों को साधने की रणनीति है।
आदिवासी समुदाय की लामबंदी के लिए बाबूलाल मरांडी बतौर प्रदेश अध्यक्ष मैदान में हैं वहीं जेपी पटेल के रूप में ओबीसी समुदाय को लुभाने का बड़ा दांव चला गया है। चुनावों में अभी देर है लेकिन चुनावी रणभेरी बज चुकी है। उसी के हिसाब से सेनापति चुने जा रहे हैं।