रांची
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कांके रोड स्थित उनके आवासीय कार्यालय में मरांङ बुरू बचाओ संघर्ष समिति (संथाल समाज) के 51 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपते हुए पारसनाथ पर्वत (मरांङ बुरू), पीरटांड़, गिरिडीह को संथाल आदिवासियों का धार्मिक तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग की। इसके साथ ही पर्वत के संरक्षण, प्रबंधन, निगरानी, नियंत्रण और अनुश्रवण की जिम्मेदारी ग्राम सभा को सौंपे जाने की मांग भी उठाई गई। इस मौके पर समिति के अध्यक्ष रामलाल मुर्मू, साहित्यकार भोगला सोरेन एवं राज्य के दर्जा प्राप्त मंत्री फागू बेसरा विशेष रूप से उपस्थित थे।
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को बताया कि पारसनाथ पर्वत (मरांङ बुरू) को संथाल समुदाय प्राचीन काल से ईश्वर स्वरूप मानकर पूजता आ रहा है। इस पर समुदाय का प्रथागत (customary) धार्मिक अधिकार है, जिसे छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, विभिन्न न्यायालयों और भूमि अभिलेखों द्वारा भी मान्यता प्राप्त है। अतः सरकार से मांग है कि इस स्थल को आधिकारिक रूप से संथालों का धार्मिक तीर्थ स्थल घोषित किया जाए।
प्रमुख मांगें:
• आदिवासी धार्मिक स्थलों की सुरक्षा हेतु विशेष कानून: मरांङ बुरू, लुगू बुरू, अतु ग्राम, जाहेर थान (सरना), मांझी थान, मसना, हड़गड़ी आदि धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए "आदिवासी धार्मिक स्थल संरक्षण अधिनियम" बनाया जाए।
• असंवैधानिक अधिसूचना रद्द हो: पर्यावरण मंत्रालय की 2 अगस्त 2019 की अधिसूचना, जिसमें पारसनाथ पर्वत को ईको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है, उसे ग्राम सभा की सहमति के बिना जारी किया गया और यह संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है। इसे अविलंब रद्द किया जाए।
• वन भूमि पर जैन समुदाय के अवैध निर्माण हटाए जाएं: पर्वत क्षेत्र में मठ-मंदिर, धर्मशालाओं जैसे ढांचों का अवैध निर्माण किया गया है, जिसे अतिक्रमण मानते हुए हटाया जाए।
• मरांङ बुरू महोत्सव को राजकीय मान्यता: फागुन शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाए जाने वाले मरांङ बुरू युग जाहेर, वाहा-बोंगा पूजा महोत्सव को झारखंड सरकार राजकीय महोत्सव घोषित करे।
• ग्राम सभा को जिम्मेवारी मिले: सुप्रीम कोर्ट केस संख्या 180/2011 एवं वन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 3 के तहत सामूहिक वनभूमि पर समुदाय को अधिकार मिले, और पारसनाथ क्षेत्र की निगरानी व प्रबंधन की जिम्मेदारी स्थानीय ग्राम सभा को दी जाए।
• एकतरफा आदेश रद्द हों: पर्यावरण मंत्रालय एवं राज्य सरकार के विभिन्न दिशा-निर्देशों में केवल जैन धर्मस्थल के रूप में पारसनाथ का उल्लेख है, जबकि यह संथालों के लिए भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। ऐसे निर्देश असंतुलित और असंवैधानिक हैं, इन्हें रद्द किया जाए।
मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया कि उनकी मांगों पर सरकार विधिसम्मत और संवेदनशील रुख अपनाते हुए आवश्यक कार्रवाई करेगी। इस अवसर पर झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से आए संथाल समाज के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रतिनिधि उपस्थित रहे।