logo

दिल्ली : लोकतंत्र राजनैतिक बराबरी के सिद्धांत पर काम करता है- रवींद्रनाथ महतो

speaker4.jpg
द फॉलोअप डेस्क 

पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के 13वें वार्षिक सम्मेलन में बुधवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजत हुई। इस मौके पर विधेयक एवं बजट सहित विभिन्न विधायी मुद्दों पर देश के विभिन्न विधानसभा के कार्य प्रणाली पर चर्चा हुई। कार्यक्रम में झारखंड विधानसा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने हिस्सा लिया। जिसमें उन्होंने व्याख्यान प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस बदलते परिवेश में लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की आस्था बनाये रखने के लिए इस पूरी प्रक्रिया के प्रति उनकी जागरूकता एवं इसकी पूरी प्रक्रिया में उनकी सहभागिता भी उतनी ही जरूरी है। साथ ही कहा कि झारखंड विधानसभा में इन विषयों के सार्थक समाधान के लिए हम लोगों ने महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। झारखंड विधानसभा टीवी की स्थापना की गयी है।  जो वर्तमान में सोसल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आम जनों तक न केवल सदन की कार्यवाही को पहुंचा रही है। इसके साथ ही इसी कड़ी में हमने समाज के अलग-अलग Stake Holders (हीतधारकों) को भी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से जोड़ने की कोशिश किया है। इसके तहत लगातार दूसरे साल विधानसभा में छात्र संसद का आयोजन किया गया। प्रत्येक वर्ष इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस छात्र संसद में लाया गया विधेयक व्यापक सामाजिक विषय से जुड़ा हो।

प्रत्येक नागरिक को बराबर राजनैतिक अधिकार प्राप्त- रवींद्रनाथ महतो

झारखंड विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र राजनैतिक बराबरी के सिद्धांत पर काम करता है। बिना किसी धर्म, जाति, और भेदभाव के प्रत्येक नागरिक को बराबर राजनैतिक अधिकार प्राप्त है। बहुमत का शासन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल है। भारत का संविधान का स्वरूप एक गणतंत्र का है और इसकी संरचना संघीय है। भारत में हमने संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है। यूं तो सभा और समिति के रूप में यह व्यवस्था वैदिक काल से ही चली आई है। लेकिन, स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को अपनाते हुए West Minister System के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को स्थापित किया। संसद और विधानसभाएं इस लोकतांत्रिक प्रणाली में धुरी की भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा संसदीय संप्रभुता पर संवैधानिक सीमाएं तो अधिरोपित हैं, लेकिन, संसद और विधानसभाएं अपने कार्यक्षेत्र में पूर्णरूपेण स्वतंत्र है। संसद और विधानसभाओं को अपनी व्यवस्थाओं को संचालित करने का अक्षुण्ण अधिकार है और कोई भी प्रक्रियात्मक भूल को इसके द्वारा लिये गये निर्णयों को प्रभावित नहीं कर सकती।