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विश्व के 2 प्रतिशत महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों में पलामू के डॉ संजय कुमार शुक्ला को मिला स्थान 

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द फॉलोअप डेस्क 
झारखंड के पलामू जिला में जन्में एक अद्वितीय प्रतिभा, डॉ. संजय कुमार शुक्ला, जियोसिंथेटिक्स और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक प्रमुख विशेषज्ञ बनकर उभरे हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में कई पुस्तकें लिखी हैं, जो छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही हैं। उनकी लेखनी में तकनीकी अवधारणाओं के साथ-साथ व्यावहारिक अनुप्रयोगों को भी प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे इस क्षेत्र को समझने में गहरी मदद मिलती है। 

डॉ. शुक्ला का जन्म पलामू जिले के लेस्लीगंज प्रखंड के ग्राम चौरा में हुआ है और वहीं से उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत की। हालांकि उनके लिए शुरुआत आसान नहीं रही, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से वैश्विक मंचों तक अपनी पहचान बनाई। वे वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के पर्थ स्थित एडिथ कोवान विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और जिओ टेक्निकल एंड जियो एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के रिसर्च ग्रुप के संस्थापक प्रमुख हैं। संजय शुक्ला के पिताजी का नाम स्व. युगल किशोर शुक्ला जो प्राचार्य थे और माताजी नाम स्व. नागवंशी देवी है। संजय शुक्ला 7 भाई हैं उनके बड़े भाई स्व. मदन कुमार शुक्ला है जिन्होंने प्राचार्य के रूप में अपनी सेवा दी और उन्हें भी राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ। संजय शुक्ला के भाई शंकर दयाल वर्तमान में ज्ञान निकेतन स्कूल के डायरेक्टर हैं। ज्ञात हो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर शुक्ला और झामुमो नेता सन्नी शुक्ला उनके भतीजे हैं। 

इसके अलावा, वे भारत के आईआईटी मद्रास, दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय और बीआईटी सिंदरी जैसे प्रमुख संस्थानों से भी जुड़े हुए हैं। डॉ. शुक्ला जियोसिंथेटिक्स के क्षेत्र में एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल "इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ज्योसंथेटिक एंड ग्राउंड इंजीनियरिंग" के संस्थापक संपादक-इन-चीफ भी हैं, जो स्प्रिंगर नेचर द्वारा प्रकाशित होता है। डॉ. शुक्ला ने अब तक 25 पुस्तकें लिखी है, जो विदेश के बड़े और सुप्रसिद्ध प्रकाशकों के द्वारा प्रकाशित की गई हैं और विश्व के प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज विश्वद्यालय में पढ़ाई जा रही है। 
शुक्ला ने अपनी पुस्तकों के माध्यम से जियोसिंथेटिक्स के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है, जिनमें "एन इंट्रोडक्शन टू ज्योसिंथेटिक इंजीनियरिंग", "कोर प्रिंसिपल ऑफ सॉल मैकेनिक्स" और "फंडामेंटल्स ऑफ फाइबर - रीइंफोर्स्ड सॉल इंजीनियरिंग" प्रमुख हैं। ये पुस्तकें दुनियाभर में तकनीकी शिक्षा के संदर्भ में उच्च मानक स्थापित कर रही हैं, तथा जिसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार भी मिले हैं। उन्हे दुनिया के टॉप 2% वैज्ञानिकों में भी स्थान मिला हुआ है। डॉ. शुक्ला ने जापान, चीन, मिस्र, फिनलैंड, फिजी और अफ्रीका के विभिन्न देशों में व्याख्यान दिए हैं। उनके शोध कार्य और वैश्विक योगदान ने न केवल उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि उन्होंने झारखंड का नाम भी गौरवांवित किया है। डॉ. संजय कुमार शुक्ला का जीवन यह साबित करता है कि यदि संकल्प मजबूत हो और दिशा स्पष्ट हो, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है, चाहे वह कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो।

 

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