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वनरक्षियों की हड़ताल जारी, मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने दिया समस्याओं के शीघ्र समाधान का आश्वासन

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रांची
झारखंड में अपनी मांगों को लेकर 14 दिनों से हड़ताल पर डटे वनरक्षियों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। झारखंड राज्य अवर वन सेवा संघ के बैनर तले हड़ताल कर रहे वनरक्षियों ने मंगलवार को जल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री मिथिलेश ठाकुर से मुलाकात की। संघ के महामंत्री मनोरंजन कुमार,  पलामू जिलाध्यक्ष विकास दुबे, सदस्य नित्यानंद तिवारी एवं अरविंद प्रसाद  के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री ठाकुर को अपनी समस्याओं और मांगों से अवगत कराया। मुलाकात के दौरान वनरक्षियों ने बताया कि उनकी मांगों पर लंबे समय से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उनकी प्रमुख मांगों में सरकार से 2014 की वनरक्षी नियुक्ति नियमावली को बहाल करने की मांग की गई है। 

बता दें कि राज्य सरकार ने 7 अगस्त को एक कैबिनेट बैठक में वनरक्षी नियुक्ति नियमावली 2014 में बदलाव करते हुए "झारखंड राज्य अवर वन सेवा नियमावली 2024" को मंजूरी दी। इस नए संशोधन के अनुसार, वनपाल पद पर नियुक्ति के लिए अब 50 प्रतिशत सीधी भर्ती का प्रावधान किया गया है, जबकि पूर्व में यह पद सौ प्रतिशत प्रमोशन के माध्यम से भरा जाता था। साथ ही, इस संशोधन में वनरक्षकों के 1315 पदों को प्रधान वनरक्षी पद के लिए सृजित किया गया है। संशोधन के बाद राज्यभर में वनरक्षियों में असंतोष फैल गया है,पदोन्नति के नियमों में संशोधन शामिल हैं। प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि हड़ताल के बावजूद सरकार की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की गई है, जिससे  वनरक्षक में गहरी नाराजगी है। मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने वनरक्षियों की बातों को गंभीरता से सुना और उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के समक्ष रखा जाएगा। 


ठाकुर ने कहा, "सरकार आपके साथ है और आपकी समस्याओं का समाधान जल्द ही किया जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व्यक्तिगत रूप से इस मामले पर ध्यान देंगे।" मंत्री के इस आश्वासन से वनरक्षियों में कुछ हद तक संतोष देखा गया, लेकिन उन्होंने साफ किया कि जब तक उनकी मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, हड़ताल जारी रहेगी। हड़ताल के चलते राज्य में वन सुरक्षा कार्यों पर असर पड़ा है। जंगलों में अवैध कटाई और शिकार जैसी गतिविधियों में इजाफा हुआ है, जिससे वन विभाग की चिंताएं बढ़ गई हैं। इस बीच, सरकार पर हड़ताल को समाप्त करने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है, ताकि वन्यजीवों और जंगलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। वनरक्षियों का कहना है कि अगर उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं की गईं तो वे अपना आंदोलन और तेज करेंगे।


 

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