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शर्मनाक : बेरोजगारी बन गई है झारखंडी युवाओं की नियति, देश का छठा सबसे बेरोजगार राज्य है झारखंड

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सूरज ठाकुर

वादा रोजगार का है लेकिन सच बेरोजगारी है। दावा काम का है लेकिन हकीकत बेकारी है। सुर्खियों में भले ही कारण महामारी को बताया जा रहा है लेकिन वजह सरकारी है। बेरोजगारी महज शब्द, आंकड़ा और तथ्य नहीं है बल्कि इसमें अधूरे ख्वाब, टूटा हुआ सपना, नाउम्मीदी, हताशा, निराशा, दबा हुआ आक्रोश और बर्बादी भी निहित है। सुख, खुशियां, और आराम को दबड़ेनुमा कमरों में माड़-भात और तहड़ी के सहारे तिलांजलि देने वाले युवाओं को सरकारी वादों का पुलिंदा अब बोझ लगने लगा है।

इसी बोझ से जब युवा टूट जाता है, तो खुद को खत्म कर लेता है। पीछे छोड़ जाता है कागज का छोटा सा टुकड़ा और उसमें चंद शब्द, जो ताउम्र उसके अपनों को नासूर की तरह चुभते रहते है। 

बेरोजगारी को लेकर नया आंकड़ा हैरान नहीं करता
बेरोजगारी को लेकर कुछ नए आंकड़े आये हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर मार्च 2022 में 7.60 फीसदी के मुकाबले अप्रैल 2022 में बढ़कर 7.83 फीसदी तक पहुंच गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दरम्यान शहरी और ग्रामीण इलाकों में 01 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां खत्म हो गई। असंगठित क्षेत्र में भी तकरीबन 30 लाख कामगार कम हो गये। नौकरी की तलाश कर रहे और नौकरी पाने में असमर्थ लोगो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

 

देश का छठा सबसे बेरोजगार राज्य है झारखंड
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि अपना झारखंड 14.2 फीसदी बेरोजगारी दर के साथ देश का छठा सबसे बेरोजगार राज्य है।

हैरानी नहीं होगी यदि सरकारें ये कहकर अपनी पीठ थपथपा ले कि क्या हुआ, 28 राज्य हैं और हम छठे सबसे बेरोजगार। पांच राज्य हमसे ज्यादा बेरोजगार हैं। इसमें पहले नंबर पर काबिज बीजेपी शासित  हरियाणा भी है। हरियाणा में 34.5 फीसदी बेरोजगारी दर है। राजस्थान 28.8 फीसदी के साथ दूसरा सबसे बेरोजगार राज्य है। अब बीजेपी शासित राज्य में सर्वाधिक बेरोजगारी के खंडन में झारखंड बीजेपी के नेता राजस्थान का उदाहरण दे सकते हैं। 

नियुक्ति वर्ष के वादे से लेकर वादाखिलाफी तक
सरकार बनते ही हर साल 5 लाख नौकरी का वादा। 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित करने की बात से लेकर मुख्यमंत्री द्वारा  कहे गये हमने नौकरी नहीं रोजगार कहा था कि सच्चाई तक झारखंड देश का छठा सबसे बेरोजगार राज्य बना हुआ है।

क्या इसपर गर्व करें। इसमें मुर्गीपालन, सुअरपालन और बकरीपालन की सलाह के साथ ताजा शराब सेल्समैन की नौकरी भी जोड़ लीजिए, समझ पाएंगे कि जुमला किसी एक पार्टी या सरकार की बपौती नहीं है, सियासत में इस पर सबका हक है।

युवाओं को हैरान नहीं होना चाहिए यदि कल को मंत्रियों का फॉर्च्यूनर धोने के लिए ग्रेजुएट स्वीपर्स की बहाली निकाली जाये। 

चमचमाते वादों का पुलिंदा थमाकर चुप करा दिया
झारखंड में युवाओं ने जब भी रोजगार के लिए आवाज ऊंची की, उनको चमचमाते वादों का नया गिफ्ट हैंपर थमा दिया गया। नियुक्ति वर्ष को खत्म हुए 1 साल बीता तो जनवरी 2022 में सीएम हेमंत सोरेन ने सभी विभागों से रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए कार्ययोजना पर रिपोर्ट मांगी। युवाओं को लगा, कुछ नया-ताजा होने वाला है, लेकिन कहां। ऐसा ही जुन-जुलाई 2021 में भी हुआ था।

तब झारखंड में बेरोजगार युवाओं ने झारखंडी युवा मांगे रोजगार नाम के हैशटेग के साथ ट्विटर पर कैंपेन चलाया। मानसून सत्र नजदीक था।

मुख्यमंत्री ने फौरन सभी विभागों से रिक्त पदों का ब्योरा मांगा और 1 महीने के भीतर बहाली प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। अब दोबारा जून आने को है लेकिन वो 1 महीना अभी तक नहीं आया।

 

स्वरोजगार ठीक है लेकिन खाली सरकारी पदों का क्या
सरकारें स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता का खूब राग अलापती है। ठीक है भाई। स्वरोजगार भी कर लेंगे लेकिन खाली पड़े सरकारी पदों का क्या। चलिए झारखंड का आंकड़ा जान लेते हैं।

झारखंड के अलग-अलग विभागों में 3 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। राज्य के प्राइमरी और प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों के 43 हजार पद खाली हैं। ग्रामीण विकास विभाग में 1600 पद खाली हैं। श्रम नियोजन, प्रशिक्षण और कौशल विकास विभाग में 900 पद खाली हैं। स्वास्थ्य विभाग में 750 पद खाली हैं। कल्याण विभाग में 500 पद खाली हैं। उत्पाद विभाग में 500 पद खाली हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग में 350 पद खाली हैं। 

झारखंड में नियुक्ति से ज्यादा बहालियां रद्द की गई हैं
नियुक्तियां हो नहीं रही। बहाली निकलती है तो विवाद पीछा नहीं छोड़ते। नियुक्ति प्रक्रिया रद्द हो जाती है। पंचायत सचिव अभ्यार्थियों की तो पूरी हो चुकी नियुक्ति प्रक्रिया रद्द कर दी गई। थका-हारा झारखंड का युवा आखिरकार, राजभवन के सामने एक कोने पर तख्तियां लिए बैठ जाता है। रोता है। चीखता है। चिल्लाता है। कभी गुस्साता है तो कभी याचना करता है, लेकिन ये आवाजें राजभवन की मजबूत दीवारों को भेद नहीं पाती।

दिक्कत ये भी है कि, युवाओं का जिस सोशल मीडिया और मीडिया से घंटों का वास्ता है वहां बेरोजगारी के आंकड़ों के लिए जगह नहीं है। वहां, अजान और हनुमान चालीसा का बोलबाला है। ये शोर इतना ज्यादा और आकर्षक है कि बेकारी, बेरोजगारी कहीं गुम सी हो जाती है।