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शराब कारोबारी योगेंद्र तिवारी को HC से बड़ी राहत, 12 केस एक साथ खत्म; जानें पूरा मामला

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द फॉलोअप डेस्कः
ईडी ने शराब घोटाले की जांच के सिलसिले में दर्ज इसीआइआर में विभिन्न थानों में दर्ज 26 प्राथमिकी को शामिल किया था। इसमें से 12 मामलों में निचली अदालतों ने संज्ञान लिया था। जिसे झारखंड हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया है। ये मामले जामताड़ा जिले के अलग-अलग थानों में दर्ज कराये गये थे। हाइकोर्ट द्वारा पारित आदेश का मुख्य कारण पुलिस अधिकारियों द्वारा जब्त अवैध शराब की फोरेंसिक जांच नहीं कराना है। ऐसे में देखा जाए तो जेल में बंद कारोबारी योगेंद्र तिवारी को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। 


बता दें कि जामताड़ा के खूंटीडीह, नारायणपुर, नाला, करमाटांड़, बिंदापत्थर, फतेहपुर, बाधदेहरी थाने में केस दर्ज हुआ था। चार्जशीट हुई थी, इसके बाद स्थानीय कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया था। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। पूरे मामले में राज्य सरकार ने संज्ञान लेने को गलत बताने के मामले में कोई गंभीर आपत्ति दर्ज नहीं करायी। ऐसे में सभी मामलों में हाईकोर्ट ने पूर्व में लिए गए संज्ञान को गलत व गैरकानूनी बताते हुए खारिज कर दिया। अब योगेंद्र तिवारी समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ यह केस खत्म हो गया। 

इस आधार पर दिया गया राहत 

1.राज्य सरकार के हलफनामे में बताया गया कि याचिकाकर्ताओं को देशी-विदेशी शराब बेचने का लाइसेंस 2021-22 के लिए दिया गया था। लाइसेंस की अवधि एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 की थी। वर्ष 2021-22 के लिए रिन्यूअल होना था।

2.बाद में सरकार ने बताया कि पुलिस को यह अधिकार नहीं था कि वह छापेमारी कर शराब जब्त कर सके। यह अधिकार उत्पाद विभाग व उसके सक्षम प्राधिकार के पास है।

3. पुलिस ने चार्जशीट में बिहार एक्साइज एक्ट की धारा 47 ए लगायी थी। हाईकोर्ट को यह बताया गया कि शराब दुकानों में स्टॉक अधिक था, लेकिन यह बिहार एक्साइज एक्ट का मामला नहीं बनता।


क्या था पूरा मामला
जामताड़ा डीसी के मौखिक आदेश पर 15 जुलाई 2020 को कुंडाहित बीडीओ ने पुलिस टीम के साथ योगेंद्र तिवारी समेत अन्य की दुकानों पर छापेमारी की थी। पाया था कि शराब दुकानों के लाइसेंस 31 मार्च 2020 को ही एक्सपायर हो चुके हैं। सरकार की तरफ से 12 केस दर्ज कराए गए। पुलिस ने जांच के बाद अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र समर्पित किया था। इसी के आधार पर निचली अदालतों ने अभियुक्तों के खिलाफ संज्ञान लिया था। निचली अदालत की इस कार्रवाई को अभियुक्तों ने हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। अभियुक्तों की याचिका पर जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अभियुक्तों की ओर से यह दलील दी गयी कि जांच की अवधि में सभी व्यापारियों के पास शराब बेचने का लाइसेंस था। पहले जारी लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के बाद सरकार ने उसका नवीकरण कर दिया था। पुलिस ने जांच के दौरान शराब के नकली होने का दावा किया था। साथ ही शराब की अवैध बिक्री के लिए साजिश रचने के आरोप में प्राथमिकी में आइपीसी की धारा 420 का इस्तेमाल किया था। अभियुक्तों की ओर से यह दलील भी दी गयी कि जब्त शराब को व्यापारियों के पक्ष में रिलीज कर दिया गया था। इसलिए इसके नकली होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। अदालत ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद निचली अदालत द्वारा जामताड़ा के 12 मामलों में लिये गये संज्ञान को रद्द कर दिया। 

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