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SIMDEGA : सावन का महीना और बाजार में मटन से भी ज्यादा पसंद किया जा रहा है झारखंडी पुटू 

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द फॉलोअप डेस्क, सिमडेगा (अमन मिश्रा)

आज हम आपको ऐसी सब्जी के बारे में बताएंगे जिसकी कीमत चिकन और मटन से कहीं ज्यादा है और झारखंड में इसकी अलग ही पहचान है. इस सब्जी की खास बात ये है कि ये सिर्फ बारिश के दिनों में ही पाई जाती है. यह सब्जी सिर्फ खाने भर के लिए नहीं अपितु आजीविका का साधन भी है. सीजन में इसे बेचकर झारखंड की आदिवासी महिलाएं अच्छा खासा पैसा कमा लेती है. इसे चाहने वाले बड़ी कीमत चुकाकर भी इसका स्वाद लेने से पीछे नहीं हटते. जो लोग सावन में मांसाहार का सेवन नहीं करते. वे इस सब्जी को वैकल्पिक तौर पर इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि ये स्वाद में बिल्कुल मांस जैसा ही लगता है.

मानसून की पहली दस्तक में पुटू बिक्री शुरु 

सिमडेगा के ग्रामीण से लेकर शहरों तक के बाजारों में छोटे आलू के आकार की एक सब्जी देखने को मिल जाएगी. दूर दराज के ग्रामीण इस सब्जी को लेकर बिक्री करते हैं. लेकिन यदि आप सोच रहे होंगे कि ये सब्जी सस्ती होगी तो आपकी सोच गलत है.क्योंकि जिस सब्जी को आप साधारण रूप में समझ रहे हैं उसे खरीदना हर किसी की बात नहीं है. स्थानीय भाषा में इस सब्जी को पुटू कहा जाता है. मॉनसून की पहली दस्तक के साथ ही धरती के अंदर पुटू का मिलना शुरू हो जाता है इसमें खास बात यह है कि जंगल की पत्तियां पहली बारिश में ही सड़ गल कर खरपतवार बन जाती है और उसी से जमीन के अंदर से पुटू का  उगना शुरु हो जाता है. इस पुटू में पौष्टिकता की एक अलग ही सीमा होती है इसे खाने से स्वादिष्ट के साथ भरपूर पौष्टिक प्राप्त होती है. इसलिए इसकी मांग बड़े-बड़े शहरों में अधिक होती है. 

कितनी दूर से आती हैं महिलाएं 

पुटू के रेट ग्रामीणों की कमाई का एक बड़ा जरिया है. साल में सिर्फ एक या दो महीने मिलने वाली ये सब्जी दूरदराज के ग्रामीणों को अच्छी खासी रकम दे जाती है. यही वजह है कि बाजार की तलाश में 60-70 किलोमीटर दूर से महिलाएं इसे बेचने सिमडेगा आई हैं. जबकि ये सब्जी जंगली इलाकों में प्राकृतिक तौर पर मिलती है.


स्थानीय बाजारों में पुटू बेचने का तरीका 

झारखंड की ग्रामीण महिलाएं अहले सुबह उठकर जंगल निकल जाती है साथ में सुप और एक छोटा सा डंडा पकड़कर उसके द्वारा एक-एक पुटू को जमा किया जाता है. उसके बाद उसे घर में लाकर सुप में रगड़ कर धोया जाता है, तब तक रगड़ा जाता है जबतक कि पुटू सफेद न हो जाए. जब पुटू से सारा मिट्टी छुट जाता है तब उसे बाजारों में बेचने के लिए लिया जाता है. पुटू बेचने के लिए सखुआ के पत्तों से छोटे आकार का दोना बनाया जाता है उसी में पुटू को भरकर लाइन में रखा जाता है और ग्राहक उसे अपने पसंदानुसार छांटकर अपने घर ले जाते हैं. एक दोना पुटू को 30-50 रूपये तक लिया जाता है .