द फॉलोअप डेस्कः
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में बुधवार को बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण झारखंड के डेमोग्राफी में बदलाव आने और आदिवासियों की संख्या में कमी होने की बात कही। उन्होंने झारखंड में आदिवासी समुदाय की आबादी घटने का मुद्दा उठाते हुए इसकी जांच और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने की मांग की। कहा कि यह हिन्दू-मुस्लिम का सवाल नहीं है, बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण झारखंड ही नहीं, बल्कि बिहार और पश्चिम बंगाल के डेमोग्राफी में भी बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे को आज 100वीं बार उठा रहे हैं। झारखंड आदिवासी बहुल राज्य था। आदिवासियों की संख्या अधिक होने के कारण बिहार से अलग कर झारखंड राज्य का गठन किया गया।
24 प्रतिशत ही रह गई आदिवासियों
सांसद निशिकांत दुबे ने बताया कि 1951 में झारखंड क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की संख्या 36 प्रतिशत थी। लेकिन आज झारखंड में आदिवासियों की संख्या घटकर 24 प्रतिशत रह गई है। जब देश की आबादी 33 करोड़ से बढ़कर 140 करोड़ हो गई। सभी वर्ग-समुदाय के लोगों की आबादी बढ़ी, लेकिन झारखंड में आदिवासियों की संख्या कम हो गई। पूरे देश में परिसीमन हुआ, लेकिन वर्ष 2008 में झारखंड में परिसीमन नहीं हो सका। 2008 में जब देश के अन्य राज्यों में परिसीमन हुआ, उस दौरान यदि झारखंड में भी परिसीमन होता, तो राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित लोकसभा की एक सीट और विधानसभा की 3 सीटें कम हो जाती। इस कारण परिसीमन नहीं होने दिया गया।
संताल परगना के इलाके में घुसपैठ
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने बताया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण झारखंड के संताल परगना क्षेत्र के गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़, देवघर और जामताड़ा जिले के डेमोग्राफी में बदलाव आया है। बांग्लादेशी घुसपैठिए जमीन की चक्कर में आदिवासी युवतियों के साथ शादी कर रहे हैं और फिर वहां बस जा रहे हैं। जब ममता बनर्जी सांसद थी, उस दौरान उन्होंने भी पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया था। यही हाल बिहार में पूर्णिया, भागलपुर और किशनगंज समेत अन्य जिलों का है। घुसपैठ के कारण पूरे इलाके की डेमोग्राफी बदलती जा रही है। इसलिए एनआरसी लागू करने की जरूरत है।