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अंतरराष्ट्रीय मुशायरा में देश-विदेश से पहुंचे शायर, बिखेरते रहे प्यार-सद्भाव के रंग

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द फॉलोअप डेस्क
रांची में शनिवार की रात देश-विदेश के शायर-कवियों का जमावड़ा लगा। झारखंड- बिहार की सांस्कृतिक- साहित्यिक संस्था बज्म-ए- कहकशां के अंतरराष्ट्रीय मुशायरे में शामिल होने आए शायरों को सुनने के लिए शौकिनों का मजमा लगा। रांची के मेन रोड अंजुमन प्लाजा स्थित मौलाना आजाद हॉल में हिंदुस्तानियत के इंद्रधनुषी रंग मोहब्बत और भाईचारे में पिरोए हुए शेरों को सुनकर लोग वाह-वाह कह उठे। खानकाह करीमिया, बीथो शरीफ़, गया के सज्जादानशीं वरिष्ठ सूफ़ी-शायर मौलाना गुफरान अशरफी की अध्यक्षता में देश-विदेश से पहुंचे नामचीन शायर, कवि और कवयित्रियों ने रचना पाठ किया। कलाम से नवाज़ा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उर्दू दैनिक कौमी तंजीम के संपादक एसएम अशरफ फरीद थे तो सान्निध्य सोशल एक्टिविस्ट शफी अहमद अशरफी का रहा। मुशायरे का संचालन करते हुए खालिक हुसैन परदेसी बोले: हिंदू न मुसलमान न हैं सिख ईसाई हैं, 'परदेसी' अपने मुल्क में हम भाई भाई हैं। वहीं, मोहब्बत के इस रंग को दिल्ली से पहुंची चर्चित शायरा अना देहलवी ने आगे चढ़ाया, कहा- जब कभी हुस्न की पाकीज़ा कहानी लिखना, श्याम के इश्क़ में मीरा को दिवानी लिखना।

खुद बदल जाएगा नफरत की फिजाओं का मिजाज

माजिद देवबंदी (दिल्ली) ने अपने कलाम से लोगों का दिल जीत लिया। उन्होंने नफरत को मुहब्बत से खत्म करने की सीख देते हुए इसे अपने कलाम में यूं पेश किया…
ख़ुद बदल जाएगा नफ़रत की फ़ज़ाओं का मिज़ाज

प्यार की ख़ुशबू लुटाओ मुश्कबारी सीख लो।

फिर तुम्हारे पाँव छूने ख़ुद बुलंदी आएगी

सब दिलों पर राज कर के ताजदारी सीख लो।

 

उनके इस कलाम को भी लोगों ने जमकर सराहा

अल्लाह मेरे रिज्क की बरकत न चली जाए

दो रोज़ से घर में कोई मेहमान नहीं है।
माजिद के बाद दिल्ली के ही सरफराज अहमद ने लोगों को अपनी इस शेर से झुमा दिया। "
मैं किसी की भी परस्तिश का गुनहगार नहीं, तू किसी का भी खुदा होगा, सनम है मेरा।

सवाल ये था कि पत्थर निचोड़ लाऊं मैं

कोलकता की रौनक अफ़रोज़ ने अपने कलाम से लोगों को दाद देने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने सुनाया कि “तलब तो ये थी कि पानी तलाश लाऊं मैं, सवाल ये था कि पत्थर निचोड़ लाऊं मैं”… वहीं, कोलकाता की एक अन्य शायरा रिहाना नवाब का लहजा ही अलग रहा उन्होंने “ मैं अपने पांव की ज़ंजीरों से बोझल थी, थके थकाए हुए काफ़िले भी छोड़ गए”… पेश कर खूब वाहवाही लूटी। वहीं, खाड़ी देश कतर से आए जलील निजामी ने “दिल को दोनों हाथों से थामिए जलील अपने, ये ज़मीं है रांची की, शहर है जियालों का… पेश कर रांची को इस तरह सलाम किया। इनके अलावा विभिन्न जिलों व राज्य से आए कई शायरों ने अपने कलाम पेश किए।

उर्दू की वर्तमान स्थिति पर हुआ सेमिनार
मुशायरा के संयोजक व कवि- लेखक शहरोज क़मर ने बताया कि भाईचारे को समर्पित इस काव्य संध्या में अनवर कमाल अनवर (बहरैन), फूल मोहम्मद नेपाली, फैयाजी फ़ैज़ (नेपाल), मुजाविर मालेगांव, सरवर साजिद (अलीगढ़), मोईन गिरिडीही,  दर्द दानापुरी (पटना), पलामू से अमीन रहबर व शमीम रिज़वी, आफताब अंजुम (गुमला), परवेज़ रहमानी (लोहरदगा),  ज़ैन रामिश (हजारीबाग), गया से सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र व सुमन कुमार सुमन, शोभा किरण (जमशेदपुर) के अलावा रांची के अज़फर जमील आदि ने भी अपने गीत और गजलों से महफिल को परवान चढ़ाया। बिहार और झारखंड में उर्दू की वर्तमान स्थिति पर मुशायरा से पहले एक सेमिनार भी हुआ। जिसकी अध्यक्षता डॉक सैयद रिहान गनी ने की। जिसमें कई रिसर्च स्कॉलर ने अपने पेपर पढ़े।

 सम्मानित किए गए पत्रकार, शायर और एक्टिविस्ट

कार्यक्रम में स्थानीय उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार, शायर और एक्टिविस्ट सम्मानित भी किए गए। इनमें खुर्शीद परवेज़ सिद्दीकी व जफर उल्लाह सादिक को एसएम उमर फरीद अवार्ड, आमिर हुसैन रिज़वी को एमए जफर अवार्ड, मुजफ्फर हुसैन को समरुल हक़ अवार्ड डॉ. मोहम्मद तारीक को समीउल्लाह शफक अवार्ड, जबकि सुहैल सईद और निहाल सरैयावी को सिद्दीक़ मुजीबी अवार्ड से नवाजा गया।

कार्यक्रम में ये लोग रहे मौजूद

जलेस सचिव एमजेड खान, शाहनवाज अहमद खान (पूर्व श्रम आयुक्त), हाजी मुख्तार अहमद (सदर, अंजुमन इस्लामिया), वरिष्ठ पत्रकार खुर्शीद अकबर (पटना), मरहबा के निहाल अहमद, लहू बोलेगा के नदीम खान, उजैर हमजापुरी, डॉ. महफूज आलम, कुदरत उल्लाह कुदरत, फ़ैज़ दरवेश अशरफी, कैसर आलम अशरफी, अधिवक्ता सुरैया, एजाज़ अनवर, एहसान ताबिश, सैयद अबरार अहमद अशरफी (खड़गपुर), एके अल्वी (सासाराम), डॉ. अरशद असलम (रांची विवि), नुद्रत नवाज, प्रेम प्रकाश के अलावा शहर के ढेरों अदबनवाज शामिल रहे।

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