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बहू सीता ने याचिका डाली और फंस गये शिबू सोरेन, कैश फोर वोट मामले में MP-MLA पर चलेगा केस

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द फॉलोअप डेस्कः 
जामा से झामुमो की विधायक सीता सोरेन की मुश्किलें बढ़ सकती है। उनपर हार्स ट्रेडिंग के आरोप में मुकदमा चलने वाला है। मामला साल 2012 का है, जो पैसा लेकर वोट करने का आरोप है। दरअसल, सीता सोरेन पर साल 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी आरके अग्रवाल से डेढ़ करोड़ रु लेकर वोट देने का आरोप लगा था। उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था। उनके आवास की कुर्की भी हुई थी। बाद में उन्होंने सीबीआई कोर्ट में सरेंडर किया था। जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था। उन्होंने हाईकोर्ट में इसको चुनौती दी थी लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई थी। तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने ससुर सह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1993 के संसद रिश्वत कांड में 1998 में मिली राहत का हवाला देते हुए क्रिमिनेल केस से छूट की मांग की थी। तब साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने सीता की याचिका को वृहद पीठ को भेज दिया था। उन्होंने पूर्व के फैसले पर दोबारा विचार करने का फैसला दिया था। उन्होंने कहा था कि क्या किसी सांसद या विधायक को वोट के बदले नोट लेने की छूट दी जा सकती है। क्या कोई ऐसा कर आपराधिक मामलों से बचने का दावा कर सकता है। 


सीता सोरेन ने इसी मामले को आधार बनाकर राहत देने की मांग की थी 
अब सांसद और विधायकों द्वारा रिश्वत लेकर वोट देने या सदन में सवाल पूछने पर आपराधिक मुकदमों से मिली छूट वाले विशेषाधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचुड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव मामले में आए फैसले को पलट दिया है। संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि रिश्वत से जुड़े मामले में सांसद और विधायक मुकदमों से नहीं बच सकते हैं। इस फैसले का सीधा असर झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पड़ सकता है। क्योंकि संसद रिश्वत कांड मामले में झामुमो के शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1998 में सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय बेंच द्वारा 3:2 के फैसले से आपराधिक मुकदमें से छूट मिल गई थी। इसी केस का हवाला देकर झामुमो विधायक सीता सोरेन ने राज्यसभा हॉर्स ट्रेडिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत की मांग की थी लेकिन पूरा मामला उलटा पड़ गया। 

फिर कैसे उठा मामला?
झारखंड के पूर्व CM हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन के कारण यह मामला फिर उठा. यह बात 2012 के राज्यसभा चुनाव की है। सीता तब विधायक थीं, अब भी हैं। तब सीता पर आरोप लगे कि उन्होंने रिश्वत लेकर राज्यसभा चुनाव में वोट दिया। उन पर केस दर्ज हुआ. सीता हाई कोर्ट गईं, 17 फरवरी, 2014 को हाई कोर्ट ने मामला रद्द करने से इनकार दिया। फिर सीता सोरेन सुप्रीम कोर्ट गईं। अपने ससुर शिबू सोरेन के मामले के तर्ज पर वे कार्रवाई से छूट चाहती थीं लेकिन अब कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार दिया है। अब सीता सोरेन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। 


शिबू सोरेन से जुड़ा क्या है संसद रिश्वत कांड
दरअसल 1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार थी। तब भाजपा ने अल्पमत का हवाला देते हुए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। लेकिन झामुमो के सांसद शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी ने पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था। इसकी वजह से नरसिम्हा राव की सरकार बच गई थी। इसमें जनता दल समेत अन्य सांसदों ने भी मदद की थी। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। तब झामुमो सांसदों ने दलील दी थी कि बरामद पैसे पार्टी फंड के थे। फिर 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संसद रिश्वत कांड का खुलासा किया था। तब शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया था कि नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए वोट के बदले चारों सांसदों को 50-50 लाख रुपए की घूस मिली थी। इसी के बाद सीबीआई जांच शुरु हुई थी। 


क्यों मिल गई थी सांसदों को राहत
1993 में नरसिम्हा राव के खिलाफ भाजपा के अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में झामुमो के चार सांसदों ने वोट दिया था।  इसकी जांच सीबीआई कर रही थी। लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में मामला चलता रहा। 1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 3:2 के अनुपात से फैसला सुनाया था कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसदों को संसद के अंदर दिए गये भाषण या वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। इसी फैसले को आधार बनाकर राज्यसभा चुनाव में पैसे लेकर वोट की आरोपी शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।