रांची
अलग सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर बीजेपी के पूर्व सांसद सुदर्शन भगत ने 2014 में केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार को पत्र लिखा था, लेकिन उस समय इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया। अब यह मामला एक बार फिर से सुर्खियों में है। बीजेपी की ओर से कहा गया है कि जब 2014 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के सांसद सुदर्शन भगत ने सरना धर्म कोड की मांग उठाई थी। अब बीजेपी सवाल कर रही है कि सभी सामाजिक और राजनीतिक व्यक्तियों को इस विषय पर विचार कर प्रश्न उठाने की आवश्यकता है।
बीजेपी ने सवाल किया है कि आज जो कांग्रेस रांची में सरना स्थल के समीप रैंप विरोध कर रही है और राज्य की जनता से किए गए वायदों पर पूरी तरह से असफल रही है, क्या वह जनता के आक्रोश से बचने के लिए भोले-भाले ग्रामीणों को सड़कों पर उतार रही है? सच्चाई यह है कि कांग्रेस और जेएमएम के नेता अपने ही झूठे आश्वासनों में उलझते नजर आ रहे हैं, जिससे उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। राज्य की जनता, विशेषकर आदिवासी समाज, अब इनके वायदाखिलाफ रवैए और तुष्टिकरण की राजनीति को पहचान चुका है।
पूर्व सांसद सुदर्शन भगत के पत्र का क्या जवाब दिया था मंत्री ने
जनजातीय मामले और पंचायती राज मंत्री वी.एस. किशोर चंद्र देव ने पूर्व सांसद सुदर्शन भगत के पत्र का उत्तर दिया था। उन्होंने अपने उत्तर में लिखा:
प्रिय सुदर्शन भगत जी,
कृपया दिनांक 13.08.2013 को लोकसभा में नियम 377 के अंतर्गत "देश में अनुसूचित जनजातियों को धार्मिक कोड प्रदान करने की आवश्यकता" के संबंध में आपके द्वारा उठाए गए मामले के संदर्भ में।
1. सरकार ने आदिवासी धर्मों के लिए अलग संहिता प्रदान करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। भारत के महापंजीयक द्वारा कोड का आवंटन किसी विशेष भेदभाव के बजाय केवल गणना की सुविधा के उद्देश्य से किया जाता है। परिचालन सुविधा के लिए, जनगणना अनुसूची में संख्या के आधार पर छह प्रमुख धर्मों के कोड दर्शाए गए हैं। यह किसी धर्म को कोई लाभ या विशेषाधिकार प्रदान नहीं करता है।
इन छह धर्मों में—हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, और जैन—को अलग कोड दिया गया है, जबकि अन्य धर्मों/संप्रदायों/विश्वासों को “अन्य धर्म और विश्वास” श्रेणी में रखा गया है।
2. 2001 की जनगणना में 100 से अधिक जनजातीय धर्मों और विभिन्न संप्रदायों को शामिल किया गया था। इनमें कुछ प्रमुख जनजातीय धर्म जैसे सरना (झारखंड), सनमाही (मणिपुर), डोनी पोलो (अरुणाचल प्रदेश) और जनजातीय समूह जैसे संथाल, मुंडा, उरांव, गोंड, खासी, भील शामिल हैं।
साथ ही, संप्रदायों में वैष्णव, आनंदमार्गी, ब्रह्मो समाज, लिंगायत/वीर शैव (हिंदू), शिया/सुन्नी (मुस्लिम), हीनयान/महायान (बौद्ध) आदि को भी गिना गया है। इन सभी को जनगणना रिपोर्टों में “अन्य धर्म और संप्रदाय” के भाग के रूप में शामिल किया गया है और उनके लिए छह अंकों का कोड निर्दिष्ट किया गया है।
3. अन्य छह प्रमुख धर्मों की तरह प्रत्येक जनजातीय धर्म को अलग-अलग कोड देना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। यदि ऐसा किया गया तो सैकड़ों अन्य धर्मों द्वारा भी इसी तरह की मांग उठ सकती है, जिससे स्थिति और जटिल हो जाएगी।
इसके अतिरिक्त, "आदिवासी धर्म" या "आदि धरम" के नाम से एक ही कोड देना भी उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि इससे जनजातियों की विशिष्ट धार्मिक पहचान का नुकसान हो सकता है। हर आदिवासी समुदाय की अपनी अलग धार्मिक मान्यताएं होती हैं, और वे सामान्य नामों से पहचाने जाने की बजाय अपने पारंपरिक धर्मों से ही पहचाने जाना पसंद करते हैं।
4. चूंकि इन धर्मों की कोई एकल "पवित्र पुस्तक" नहीं होती, अतः इन्हें एक सामान्य शब्दावली के अंतर्गत समाहित करना तर्कसंगत नहीं होगा।
5. जनजातीय धर्म एक विशिष्ट आस्था प्रणाली है जो तार्किक रूप से अलग और पहचाने जा सकने योग्य है। अतः किसी भी जनजातीय धर्म को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए अलग धर्म कोड की आवश्यकता नहीं है।
फिर भी, जनजातीय मामलों का मंत्रालय नृवंशविज्ञान अध्ययनों के एक भाग के रूप में विभिन्न जनजातियों की धार्मिक प्रथाओं के दस्तावेजीकरण का समर्थन करता है। ये अध्ययन कहीं अधिक प्रामाणिक होते हैं और जनजाति-विशिष्ट धार्मिक परंपराओं को दर्शाते हैं।