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फॉलोअप स्पेशल : सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी जाने की चर्चा के बीच गौण हो गये राज्य के ये पांच बड़े मुद्दे

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डेस्क: 

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े खनन पट्टा लीज मामले को लेकर बीते करीब 1 महीने से झारखंड का माहौल गरमाया हुआ है। रोजगार, खतियान, भाषा और बिजली पानी के संकट पर चर्चा नहीं हो रही। मीडिया, सोशल मीडिया, घरों का डाइनिंग रूम हो या नुक्कड़ पर चाय की टपरी, हर जगह केवल और केवल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खनन पट्टा लीज मामले में चुनाव आयोग द्वारा जारी नोटिस के बारे में ही बात हो रही है।

31 मई को खनन पट्टा लीज मामले में होगी सुनवाई
आगामी 31 मई को केंद्रीय निर्वाचन आयोग में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े खनन पट्टा लीज मामले में सुनवाई होनी है। फिलहाल, इसी की चर्चा है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी जा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो झारखंड का सियासी भविष्य क्या होगा, चर्चा इसी बात की है।  लगता है कि इसके अलावा कोई मुद्दा मानो झारखंड में है ही नहीं। इस बीच बेरोजगारी, जनकल्याणकारी योजना, बिजली और पानी जैसी मूलभूत जरूरत तथा सार्थक राजनीति परिचर्चा कहीं गौण हो गई है। इस वीडियो स्टोरी में आपको पांच ऐसे मुद्दों के बारे में बताएंगे जो अचानक से गौण हो गये। 

मुख्यमंत्री की विधायकी जाने की चर्चा हो गई तेज
सबसे पहले बात करते हैं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और निर्वाचन आयोग द्वारा उन्हें जारी नोटिस के बारे में। 2 मई 2022 को चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खनन पट्टा लीज मामले में नोटिस जारी किया। 10 मई तक जवाब मांगा। बाद में सीएम ने 10 दिन का और वक्त लिया और 20 मई को नोटिस का जवाब दिया। इस बीच मुख्यमंत्री मां रूपी सोरेन के इलाज के सिलसिले में हैदराबाद गये। थोड़ा समय दिल्ली प्रवास में भी बिताया। इस दरम्यान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य में कम सक्रिय देखे। 

बीते 1 माह में कम ही दिखी है मुख्यमंत्री की सक्रियता
एकाध कैबिनेट मीटिंग को छोड़ दें तो उन्होंने ना किसी नई योजना का शिलान्यास किया औऱ ना ही उद्घाटन। सरकार के स्तर से जनहित से जुड़ा कोई बड़ा एलान भी नहीं किया गया, जबकि मानसून कुछ ही दिनों में दस्तक देगा। कृषि कार्य शुरू होंगे। इस दौरान मुख्यमंत्री कुछ शादियों में जरूर नजर आये। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री की सक्रियता काफी कम रही या यूं कह लें कि राज्य में जनहित से जुड़े मुद्दों पर नगण्य ही रही। 

खतियान और भाषा का मुद्दा राज्य में हो गया है गौण
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से संबंधित खनन न पट्टा लीज मामले से पहले राज्य में भाषा और खतियान का आंदोलन चरम पर था। अलग-अलग संगठन और राजनीतिक धड़ों के बीच भाषा और खतियान की प्रमुख मुद्दा था। कांग्रेस से इस्तीफा देने वालीं पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव और झारखंड मुक्ति मोर्चा से इस्तीफा देने वाले अमित महतो एक तरह से भाषा और खतियान आंदोलन का चेहरा बने, लेकिन बीते 1 महीने में शायद ही इनकी कोई गतिविधि रिकॉर्ड हुई हो। यही नहीं, खतियान आधारित स्थानीयता की मांग को लेकर अचानक से युवाओं के बीच लोकप्रिय हुए जयराम महतो भी इन दिनों कहीं दिखे नहीं हैं। भाषा और खतियान को लेकर जहां राजभवन से लेकर कई जिलों की सड़कें उद्देलित दिखती थीं, अब शांत है। 


कह सकते हैं कि हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले ने भाषा और खतियान आधारित आंदोलन को भी गौण कर दिया। आने वाले दिनों में भी इसकी कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है। ना सत्ताधारी पार्टी औऱ ना ही विपक्ष खतियान औऱ भाषा को लेकर आमने-सामने है। 

पूजा सिंघल प्रकरण ने राज्य की नौकरशाही को किया शांत
इस बीच पूजा सिंघल प्रकरण ने झारखंड की नौकरशाही जगत को भी सकते में डाल दिया है। प्रशासनिक धड़े की तरफ से भी कोई बड़ी हरकत नहीं दिखती। जिले अपेक्षाकृत शांत हैं। अधिकारी उतना ही कर रहे हैं जितना उनको बोला जा रहा है। चर्चा है कि पूजा सिंघल प्रकरण में जिस तरह से हैरान कर देने वाले मामले सामने आये हैं अधिकारी बहुत ज्यादा सक्रियता से बच रहे हैं। राज्य में फिलहाल पंचायत चुनाव जारी है। अधिकारियों ने फिलहाल उसी को कर्मस्थली बना लिया है। कुल मिलाकर अधिकारियों भी कमोबेश शांत ही हैं। 

पेयजल और बिजली का संकट ठंडे बस्ते में डाल दिया गया
गर्मियों की शुरुआत में राज्य में पेयजल संकट को लेकर चिंता जाहिर की जा रही थी। बिजली कटौती ने आम जनता को हलकान कर दिया था। मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने बिजली और पानी की समस्या को अपनी प्राथमिकता बताया। कहा कि सदन से सड़क तक आंदोलन करेंगे। प्रदेश बीजेपी कार्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किया। बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने संताल परगना का दौरा किया। ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं की। 


बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने जनंसपर्क अभियान चलाया लेकिन जैसे ही ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सीएम को नोटिस जारी हुआ, बीजेपी के लिए भी बिजली और पानी का मुद्दा गौण हो गया। बीजेपी नेताओं का सारा ध्यान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ आरोपों पर केंद्रित हो गया। बयानबाजियां होने लगी। बिजली और पानी जैसा मूलभूत मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया।  

झारखंड में पिछले 1 महीने से बेरोजगारों में भी है शांति
हाल ही में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट में कहा गया था कि झारखंड देश का छठा सबसे बेरोजगार राज्य है। बीते कई महीनों से राज्य में पंचायत सचिव अभ्यार्थी नियुक्ति पत्र की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। जेएसएससी द्वारा 956 पदों पर निकाली गई वेकैंसी में भाषा को लेकर विवाद है। शिक्षकों की कमी का मुद्दा भी छाया हुआ था।

रोजगार की मांग को लेकर युवा सड़क पर थे लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा नोटिस जारी किए जाने और उनकी विधायकी जाने की आशंका के बीच राजनीतिक चर्चा इतनी तेज हुई कि रोजगार का मुद्दा उड़ा ले गई। बेरोजगार युवा बीते 1 माह से भी ज्यादा वक्त से ठंडे पड़े हैं। कोई आंदोलन या आक्रोश नहीं दिख रहा। सब शांत हैं। 

सरकार गिरने की आशंका तथा चर्चा के बीच गौण हुए मुद्दे
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री की विधायकी जाने अथवा सरकार गिरने की आशंका तथा चर्चा के बीच राज्य के प्रमुख मुद्दे अचानक से गौण हो गये। ना तो भाषा-खतियान पर बात हो रही है और ना ही रोजगार की चर्चा है। अचानक से बिजली और पानी संकट छोटा लगने लगा। मुख्यमंत्री कैबिनेट की बैठकों को लेकर एकाध बार प्रोजेक्ट भवन में दिखने के अलावा निष्क्रिय ही हैं।