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सचिवालय का सच : जब बेईमान हो हाकिम तो...

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द फॉलोअप डेस्क

जी हां। यह सचिवालय है। यहां कायदे-कानून बनाये और उसे तोड़े भी जाते हैं। कानून बनानेवाला ही उसे तोड़ने की शुरुआत भी करता है। वह भी शीर्ष स्तर से ही। तय प्रक्रिया के अनुसार कोई संचिका सचिवालय सहायक से प्रशाखा पदाधिकारी, अवर सचिव, उप सचिव, संयुक्त सचिव होते हुए ऊपर तक विभागीय सचिव के पास पहुंचती है। विभागीय सचिव के द्वारा अंतिम निर्णय लेने के बाद, फाइल उसी क्रम में फिर संबंधित अधिकारियों से होते हुए नीचे तक आने का प्रावधान है। लेकिन अब इस प्रक्रिया का पालन अनिवार्य नहीं रह गया है। विषय और उसकी गंभीरता के अनुसार फाइलों के मूवमेंट का क्रम बदल दिया जाता है। सचिव अपनी इच्छानुरूप मध्य क्रम के किसी अधिकारी के साथ विमर्श के बाद उस पर निर्णय ले रहे हैं।

इसका सबसे बड़ा ताजा उदाहरण झारखंड सचिवालय सहायक सेवा व निजी सहायक संवर्ग के प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी से 19.75 लाख रुपए की वसूली संबंधी निर्णय प्रमुख है। वित्त विभाग द्वारा लिए गए इस निर्णय पर मध्य क्रम के किसी भी अधिकारी को फाइल पर कुछ लिखने की बात छोड़ दीजिए,उसे देखने तक नहीं दिया गया। ऊपर के ही स्तर पर दो शीर्ष अधिकारी बैठ कर निर्णय लेते हुए उस फाइल को कैबिनेट रूम तक पहुंचा दिए। कैबिनेट की बैठक में भी इतने बड़े गंभीर विषय पर आनन-फानन में निर्णय ले लिया गया। हालांकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले पर स्टे लगा दिया है। राज्य सरकार के शीर्ष स्तर पर निर्णय का एक उदाहरण मात्र है। प्रतिदिन दर्जनों ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं। मध्य क्रम के किसी भी अधिकारी को किक-आउट कर अंतिम निर्णय ले लिया जाता है। अब ऐसा क्यों हो रहा है, क्यों होता है, इसके लिए बहुत कुछ कहने की जरूरत नहीं है। सचिवालय के इस सच को सब जानते हैं। समझते हैं। चर्चा भी करते हैं। लेकिन जब बेईमान हो हाकिम तो फरियाद किससे करना...

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