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कलमा पढ़कर कैसे बची हिंदू प्रोफेसर की जान? पढ़िए रूह कंपा देने वाली कहानी 

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द फॉलोअप डेस्कः
अगर मैं उस वक्त कलमा नहीं पढ़ता, तो शायद आज ज़िंदा न होता…", ये शब्द हैं डिब्रूगढ़ के असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य के हैं, जो उस खौफनाक पहलगाम आतंकी हमले में बाल-बाल बच गए, जहां 27 लोगों की जान चली गई। छुट्टियों पर परिवार के साथ कश्मीर गए बंगाली विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष अपनी पत्नी और बेटे के साथ बैसारन में एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। तभी अचानक उनकी नींद उस भयावह फुसफुसाहट से टूटी, जिसमें लोग कलमा पढ़ रहे थे।


वो बताते हैं, "मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन मैंने भी कलमा पढ़ना शुरू कर दिया। तभी एक आतंकवादी, जो आर्मी जैसी वर्दी में था, मेरी तरफ आया और मेरे बगल में लेटे एक शख्स के सिर में गोली मार दी। "वो फिर मेरी ओर घूमा और पूछा, 'क्या कर रहे हो?' मैंने और जोर से कलमा पढ़ा। पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो पलटा और चला गया" बस उसी पल प्रोफेसर ने अपनी पत्नी और बेटे का हाथ पकड़ा और पहाड़ की ओर भागने लगे। "हम दो घंटे तक चलते रहे, घोड़े के खुरों के निशानों का पीछा करते हुए। एक घुड़सवार मिला, जिससे मदद मिल सकी और हम होटल वापस पहुंचे" आज देबाशीष और उनका परिवार श्रीनगर में हैं, लेकिन दिल अभी भी उस पल में फंसा है। उन्होंने कहा, “मैं अब भी यकीन नहीं कर पा रहा कि जिंदा हूं,”