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NFHS : बिहार में मांओं को नहीं है बेटियों की चाहत, आखिर क्यों है ये भेदभाव!

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डेस्क:
बेटा-बेटी में भेदभाव की शुरूआत घर से होती है। मां-बाप ही बेटा और बेटी को भेदभाव किए बिना दोनों को एक समान आगे बढ़ने का मौका देंगे तभी समाज में बेटियां आगे बढ़ सकेंगी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के पांचवें राउंड से एक हैरान करने वाली बात सामने आयी है। इस सर्वे के आकंड़ें कहते है कि  बिहार में 31.3% महिलाएं बेटियों से ज्यादा बेटों की चाह रखती हैं। सिर्फ 1.9% महिलाएं बेटियां ज्यादा चाहती हैं। जबकि 2.8% पुरुष चाहते हैं कि उन्हें बेटियां हों। वहीं अगर देश कि बात करें तो भारत में 15.4% महिलाएं बेटों की चाहत रखती हैं जबकि 16% पुरुष चाहतें हैं कि उन्हें बेटे हों। यह आकंड़े जुलाई 2019 से फरवरी 2020 के बीच किए गए सर्वे के हैं।


कम उम्र में मां बनने के मामले में बिहार देश के टॉप-5 राज्यों में 
बता दें कि कम उम्र में मां बनने के मामले में हमारा बिहार देश के टॉप-5 राज्यों में है। यहां 15-19 साल की 11% लड़कियां मां बन रही हैं।बिहार में 40% लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। वहीं, 25% लड़कों की शादी उनकी तय उम्र 21 साल से पहले की जा रही है। बता दें कि देश में सबसे अधिक 22% त्रिपुरा में, 16% पश्चिम बंगाल में, 13% आंध्र प्रदेश में, 12% असम में तथा 11%बिहार में लड़कियां कम उम्र में मां बनी या बनने वाली हैं। इनमें 6.8 प्रतिशत लड़कियां ऐसी हैं जिन्होंने पहले बच्चे को जन्म दे दिया है। 4.2 प्रतिशत लड़कियां प्रेग्नेंट हैं।


हैरान करने वाली है बिहार के पुरषों की सोच
बिहार में 49.6% पुरुष का मानना हैं कि गर्भनिरोध महिलाओं का काम है। हालांकि 55.5% मानते हैं कि कॉन्डोम से प्रेग्नेंसी से बचा जा सकता है। बता दें कि बिहार में 15-24 साल की 67.5% महिलाएं पीरियड्स में कपड़ों का उपयोग करती हैं। 17.3% स्थानीय नैपकिन, 59.2% महिलाएं हाईजिनिक मेथड का इस्तेमाल करती हैं। सर्वे में .8% महिलाओं ने कहा है कि वे किसी भी प्रोटेक्शन का इस्तेमाल नहीं करती हैं।