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Sharad Yadav journey : छात्र राजनीति से लेकर संसद तक ऐसा रहा शरद यादव का सफर, आपातकाल में गये थे जेल

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पटनाः 
जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। उनका जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन छात्र राजनीति से संसद तक का सफर उन्होंने मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश तीनों राज्यों में तय की। तीनों ही राज्य में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया। उनका जन्म एक जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव में हुआ था। वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। उन्होंने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की डिग्री ली। 


लोहिया से हुए प्रभावित 
पढ़ाई के दौरान ही राजनीति से प्रभावित हुए थे और कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज) के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। वह बोलते काफी अच्छा थे। उन्होंने अपनी डिग्री गोल्ड मेडल के साथ पूरी की थी। जब वह कॉलेज में थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की लहरें परवान चढ़ रही थीं। शरद यादव भी इनसे खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर आंदोलनों में भाग लिया और आपातकाल के दौरान जेल भी गए।  


27 की उम्र में लोक सभा चुनाव जीता
शरद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से हुई थी। वे 27 साल की उम्र में पहली बार 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट और बाद में बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गए। 1986 में पहली बार शरद यादव राज्यसभा पहुंचे। 1989 में यूपी की बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव जीते। इसके बाद इसी साल उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद भी मिला। 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। 1996 में बिहार से वे पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने। 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई और एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा। जीवन के अंतिम पड़ाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुछ आपसी मतभेद भी हुआ। इसलिए, शरद यादव ने जेडीयू से नाता तोड़ लिया था।