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Holi 2022 : रंग ही नहीं! कहीं फूल तो कहीं कीचड़ से खेली जाती है होली, पढ़िये त्योहार के दिलचस्प तरीके

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डेस्क: 

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हंसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहारो में से एक है। हालांकि, भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है।  5 प्रकार की होली के बारे में हमने चर्चा की है, जिसमें सबसे प्रसिद्ध होली फूलों की होती है। आइये जानते हैं। और कितने प्रकार की होलियां मनाई जाती है। 

बरसाने में खेली जाती है लड्डुओं की होली
ब्रज में  लड्डू की भी होली खेली जाती है। फागुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने में श्रीजी मंदिर में लड्डू की होली खेली जाती है। श्रीजी लाडली मंदिर में लड्डुओं के साथ होली खेलने की परंपरा द्वापर युग से शुरू हुई थी। पौराणिक कथा के मुताबिक, राधा रानी के पिता बृज भानू ने होली खेलने का न्यौता दिया था जिसे कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया था। नंद बाबा ने बरसाने में एक पुरोहित को पत्र लिखकर भेजा। पुरोहित का बरसाने में काफी स्वागत किया गया था और थाली में लड्डू दिए गए थे। इसके बाद बरसाने की गोपियां पुरोहितों को रंग लगाना शुरू करती हैं और मेहमानों को  लड्डू मारती हैं। जिसके बाद इसे लड्डू की होली खेलने की परंपरा  में शामिल कर लिया गया। 

इन गांवों में खेली जाती है लठमार होली
नंदगांव, बरसाना, मथुरा और वृंदावन में लठमार होली भी खेली जाती है.। इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग ब्रज में आते हैं। लठमार होली का आनंद लोगों को काफी पसंद आता है। फागुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता राधा रानी की नगरी में बरसाने में लठमार होली खेली जाती है।  इस होली को खेलने के लिए नंद गांव के ग्वाले अपने गाय चराने वाले लाठी के साथ पहुंचते हैं। साथ ही माता राधा रानी के महल आते हैं फिर बरसाने की सखियों के साथ मिलकर लठमार होली खेलते हैं।  इसके बाद बरसाने के ग्वाले नंद गांव जाते हैं जिनको हुरियारे कहते हैं। 

ब्रज भूमि की फूलों वाली होली भी है खास
कृष्णा और राधा रानी के भक्त फूलों की होली खेलते हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्णा होली खेलने की शुरुआत ब्रज भूमि के स्थान से करते थे, इसलिए ब्रज में होली का शुभारंभ फूलों की होली के साथ किया जाता है। यहां कृष्णा और राधा को फूलों से पूरी तरह ढक दिया जाता है और होली मनाई जाती है। साथ-साथ सभी एक दूसरे पर रंगो की तरह फूल से खेलते है।  

हरियाणा में खेली जाती है दुल्हन्डी होली
हरियाणा के राजस्थान समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरसाने की तरह ही लठमार होली खेली जाती है जिसे दुल्हनडी होली कहते हैं। इस होली में फर्क यह है कि यहां देवर भाभी को रंगने की कोशिश करते हैं और बदले में भाभी देवर के दुपट्टे से बनाए गए गोरे से पीटते हैं। 

ब्रज में होती है गोबर और कीचड़ की होली
ब्रज में गोबर या कीचड़ की भी होली खेली जाती है। कीचड़  और गोबर से होली खेलने की परंपरा यहां सदियों से चली आ रही है। लोग एक दूसरे को कीचड़ डालकर होली मनाते हैं। यहां पर एक दिन रंगों की होली खेलने के बाद अगले दिन गोबरिया कीचड़ की होली खेली जाती है। बताया जाता है कि पहले मिट्टी में पानी डालकर एक दूसरे को उससे सराबोर करते थे लेकिन अब लोग नालियों का कीचड़ व जिंदगी एक दूसरे पर डालते हैं जिससे यह अनोखा रंग बदरंग होता जा रहा है।