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अंतिम संस्कार पर गांव में अब खामोशी, सवर्णों के खिलाफ कुछ भी बोलने से डरते हैं लोग

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द फॉलोअप टीम, हाथरस  
उत्तर प्रदेश के हाथरस में गैंगरेप और फिर बर्बरता का शिकार हुई 19 साल की लड़की के परिवार की दुनिया एक 'सीमारेखा' में कैद है। जिस गांव में वह पली-बढ़ी, वहां पर दो अलग दुनिया बसती हैं। एक, जिसमें वह रहती थी। और दूसरी, जिसमें उच्च जाति के लोग रहते थे। 

वाल्मीकि समुदाय के 4 गांव
गांव के एक दलित व्यक्ति ने कहा- 'यह सीमा कभी तोड़ी नहीं गई।' उसके परिजन कहते हैं कि दलित होना ही हमारा गुनाह है, हम चाहते हैं कि बच्चे यहां से चले जाएं। हाथरस के गांव में एक दलित लड़के ने बताया, 'हम अपने में खाते हैं, अपने में ही जीते हैं, अपने में ही बात करते हैं। 'उनसे' कोई लेना-देना नहीं है।' 64 परिवार वाले इस छोटे से गांव में वाल्मीकि समुदाय के 4 गांव हैं। इनमें से अधिकतर उच्च जाति के लोगों के खेतों में काम कर अनाज इकट्ठा करते हैं।

अंतिम संस्कार पर गांव में अब चुप्पी
इन दलित परिवारों के पास आजीविका के लिए पशु हैं और पैसे खत्म हो जाने पर मनरेगा योजना का सहारा होता है। एक महिला ने बताया, 'कोरोना काल में हमें एक भैंस बेचनी पड़ी।' गैंगरेप पीड़िता के जबरन अंतिम संस्कार पर गांव में अब चुप्पी पसरी है। 50 साल की किरन देवी ने कहा, 'उच्च जाति के खिलाफ हम कुछ नहीं कह सकते हैं। हमें कुछ नहीं पता।'

दलितों के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे
पीड़िता के भाई ने कहा, 'उच्च जाति के लोग हमें कुछ समझते ही नहीं। उनके लिए तो हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। पढ़ने और खेलने के दौरान भी उनके बच्चे, हमारे बच्चों से दूर ही रहते हैं।' आठवीं क्लास में पढ़ने वाली 14 साल की लड़की ने बताया कि कई सालों तक तो दलितों के बच्चे स्कूल ही नहीं जाते थे।