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सुप्रीम कोर्ट ने कहा-प्रथम दृष्टया अर्नब के खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता, अंतरिम जमानत की मियाद भी बढ़ी

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द फॉलोअप टीम, नई दिल्ली 
रिपब्लिक चैनल के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को मिली जमानत पर मचे बवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना तर्क पेश किया। वहीं शीर्ष कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के दो साल पुराने एक मामले में दी गई अंतरिम जमानत की मियाद शुक्रवार को बढ़ा दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो आरोपियों एन सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को 50-50 हजार रुपए के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दी और उन्हें सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करने और जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को 11 नवंबर को जमानत दे दी थी।

'अर्नब के खिलाफ आरोप स्थापित नहीं होता'
सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत के अपने पिछले दिनों दिए गए फैसले के पीछे का समुचित कारण भी बताया। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर का प्रथम दृष्टया मूल्यांकन अर्नब के खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य को राहत देने के कारणों पर प्रकाश डाला। पीठ ने कहा कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी को दो साल पुराने आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में मिली अंतरिम जमानत, बॉम्बे हाईकोर्ट की याचिका का निपटारा करने के चार सप्ताह बाद तक जारी रहेगी। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट, निचली अदालत को राज्य द्वारा आपराधिक कानून के दुरुपयोग के प्रति सतर्क रहना चाहिए। 

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'निजी स्वतंत्रता का हनन, न्याय पर आघात'  
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक कानून नागरिकों का चुनिंदा तरीके से उत्पीड़न करने के लिए हथियार ना बनें। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी की निजी स्वतंत्रता का हनन हुआ हो तो वह न्याय पर आघात होगा। पीठ ने कहा कि उन नागरिकों के लिए इस अदालत के दरवाजे बंद नहीं किए जा सकते, जिन्होंने प्रथम दृष्टया यह दिखाया है कि राज्य ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। बता दें कि अर्नब गोस्वामी ने अंतरिम जमानत देने से इनकार करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।