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पहले कभी सुनी नहीं होगी ऐसी प्रेमकथा- दूर दुनिया से जब आई राजकुमारी

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ध्रुव गुप्ता, पटना:

हाल के दिनों में प्राचीन विश्व की चर्चित मिथकीय प्रेम कथाओं के बारे में पढ़ रहा था। ऐसी कुछ मिथकीय प्रेम कहानियों में आयरलैंड की एक बड़ी प्राचीन कथा ने मन भिंगो दिया। इस रोमांचक प्रेमकथा का नायक है वहां का एक नेकदिल योद्धा ओईसीन। ओईसीन एक दिन शिकार की तलाश में जंगल की खाक छान रहा था कि उसकी मुलाक़ात परियों जैसी एक खूबसूरत स्त्री से हुई जिसने अपना नाम फिन बताया। बातों का सिलसिला चला तो ओईसीन ने उसके समक्ष शादी का प्रस्ताव रख दिया। फिन ने बताया कि वह इस पृथ्वी की नहीं, किसी दूसरे लोक की बाशिंदा है। एक ऐसा लोक जहां भूख नहीं, बीमारी नहीं, बुढापा नहीं। वहां के वासी हजारों साल तक युवा बने रहते हैं। वह पृथ्वी पर रहकर कुछ ही सालों में खुद को और ओईसीन को भी बूढा होते, मरते नहीं देख सकती। दिल के हाथों मजबूर ओईसीन ने उसके साथ दूसरे लोक में जाना स्वीकार कर लिया।  फिन अपने उड़ने वाले घोड़े पर बिठाकर उसे एक ऐसे अद्भुत लोक में ले गई जहां हर सौंदर्य, रंग और प्रकाश बिखरा हुआ था। 

 

दोनों ने  प्रेम में डूबकर उस लोक में एक लंबा समय गुज़ारा। उनके तीन प्यारे-प्यारे बच्चे भी हुए। ओईसीन को एक दिन अपने गांव और अपने सगे-संबंधियों  की याद आ गई। उसने फिन से कुछ दिनों के लिए गांव जाने की अनुमति मांगी। फिन ने उससे कहा कि उसे धरती को छोड़े तीन सौ साल हो चुके हैं और वहां उसे वैसा कुछ भी नहीं मिलेगा जैसा वह सोच रहा है। बावजूद इसके जब ओईसीन ने  गांव जाने की ठान ली तो फिन ने अपना घोड़ा देते हुए उसे इस शर्त पर जाने की अनुमति दी कि वह घोड़े से उतरकर जमीन पर अपने पांव हरगिज़ नहीं रखेगा। उसने इस शर्त का उल्लंघन किया तो दोबारा फिन के लोक में उसकी वापसी असंभव हो जाएगी। 

ओईसीन अपने गांव पहुंचा तो तीन सदियों में वहां सब बदल चुका था। घर के नाम पर वहां कुछ नहीं था।  परिवार की कई पीढ़ी बाद के लोगों ने उसे पहचानने तक से इंकार कर दिया। हताशा में वह फिन की शर्त भूल गया और गांव की अपनी पहचानी नदी में स्नान करने के लिए जमीन पर उतर गया। जमीन पर पांव रखते ही ओईसीन की युवा देह तीन सौ साल की जीर्ण-शीर्ण देह में तब्दील हो गई। फिन का दिया घोड़ा भी अदृश्य हो गया। वह पागलों की तरह कई-कई दिनों तक फिन को पुकारता रहा, मगर उसकी आवाज़ फिन तक पहुंचती भी तो कैसे ! गांव के लोगों ने पागल मानकर उसे गांव के बाहर एक खंडहर में विस्थापित कर दिया। 

खंडहर के एकांत में ओईसीन के पास फिन को याद करने और ज़ार-ज़ार रोने के सिवा कोई काम नहीं था। भूले-भटके उधर से किसी बच्चे का गुजरना हुआ तो उसे अपने पास बुलाकर वह  फिन, अपने प्यारे बच्चों और उस अद्भुत, रहस्यमय लोक की कहानियां सुनाता। फिन को याद करते और उसकी कहानियां सुनाते-सुनाते ही कुछ वर्षों बाद उसकी मौत हो गई।

 

 

(लेखक आईपीएस अफ़सर रहे हैं। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।