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अफगानिस्तान में तालिबान : धर्मान्धता ने बना दिया भस्मासुर

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कनुप्रिया, बिकानेर:

तालिबान के आने का दुख अफगानिस्तान की अवाम के लिये तो हुआ ही है उससे भी बड़ा दुख इस बात का हो रहा है जिस कट्टर मानसिकता और ध्रुवीकरण के ख़िलाफ़ बोलते लड़ते सेक्युलर लोगों को इतने साल हो गए अब वो फिर बढ़ेगी। मोदी और योगी सरकार के हाथ बटेर लग गई। एक कट्टरता दूसरी कट्टरता के लिये हमेशा खाद पानी का काम करती है, जब दुनिया मे लोगों की प्राथमिकता में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, समानता, न्याय और प्राकृतिक सन्तुलन होना चाहिये था (जिसके लिये महज 10 साल की चेतावनी जारी हो चुकी है) , तब फिर से मुद्दे हिन्दू और मुसलमान होंगे। धार्मिक सत्ता चाहने वाले और सेक्युलरिज़्म को गाली समझने वाले दोनों तरफ़ हैं। बस सत्ता अपने धर्म की होनी चाहिये। दोनों ख़ुद को एक दूसरे से बेहतर बताने में ही सारी ताक़त झोंक देना चाहते हैं और इस कुंठा और मूर्खता का फ़ायदा वो उठा रहे हैं। जिनके पास दुनिया के 90% लोगों की दौलत पहले ही है, सत्ताएँ उनकी बाँदी हैं, दलाल हैं. पिछले सालों में जब देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह गिर गई है, निर्मला सीतारमण पैट्रोल डीज़ल के दामों के लिये UPA के लोन को कोस रही हैं, अम्बानी अडानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो चुके हैं, हम धर्म का झुनझुना बजा रहे हैं।

 

देश अभी कोविड से निकला है, ग़ैर सरकारी आँकड़े 40 लाख मौतों का अनुमान करते हैं, ये मौतें आतंकवाद से नहीं हुई हैं। इसमें सरकार की लापरवाही, सम्वेदनहीनता, समय पर निर्णय न लेना, निर्णयों की ग़लती, और ग़ैर जिम्मेदारी-ग़ैर जवाबदेही शामिल है। मगर धार्मिक कट्टरता धार्मिक प्रेम नही असुरक्षा, भय, नियंत्रण की चाह और थोथे गर्व पर पलती है, तो चुनावों के मुद्दे न कोविड से हुई मौतें होंगी, न महँगाई, न आर्थिक अव्यवस्था, न शिक्षा, न बेरोज़गारी, फिर से भय का दोहन होगा, फिर से लोगों की असुरक्षा की भावना को हवा दी जाएगी। 

 

लोग कहते हैं कि महज पूँजीवाद को कोसों धर्म की बात मत करो, वही धार्मिक कट्टरता को पनपा रहा है, मगर जो धर्म इस पूँजीवाद का अंतिम आश्रयस्थल बना हुआ है, जो उसकी ढाल और आवरण बना हुआ है उसे जब तक तार तार नही किया जाएगा तब तक उसके पीछे की शक्तियों की नग्नता सामने नही आएगी, तब जनता उन्हें ख़ुद ब ख़ुद पत्थर कैसे मारेगी। सुनते हैं किसी पुजारी ने अफगानिस्तान में अपने मन्दिर को छोड़कर जाने से मना कर दिया, हिंदू धार्मिक इसलिये ख़ुश हैं कि वाह क्या पुजारी है। उसके लिये मन्दिर पहले है और वो मन्दिर अक्षुण्ण रहा तो तालिबान समर्थक ये दिखाएंगे कि देखो तालिबान के ख़िलाफ़ ख़बरें महज अमेरिकी प्रोपेगैंडा हैं। वो हिंदू मंदिर को नष्ट नही कर रहा. इस पागलपन का अंत इस पूरे दक्षिण एशिया में अब तो नज़र आता नहीं, हम दुनिया की महाशक्तियों के हाथों के खिलौने भर हैं, हमारे देश उनका अखाड़ा हैं, जैसे चाहे खेलेंगी, धर्मान्धता ने हमे भस्मासुर बना दिया है।

(कनुप्रिया बिकानेर में रहती हैं। मुखर होकर लिखती हैं। संंप्रति स्‍वतंत्र लेखन )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।