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JPSC गड़बड़ी मामला: आयोग के जवाबों पर आंदोलनकारी अभ्यर्थियों का काउंटर सवाल

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द फॉलोअप टीम, रांची: 

सातवीं से दसवीं जेपीएससी में  महाघोटाला के विरूद्ध अनिश्चितकालीन आंदोलन 27 वें दिन मोराबादी बापू वाटिका में जारी है। मौके पर छात्र नेता देवेन्द्र नाथ महतो ने जेपीएससी की लीपा-पोती का जवाब देते हुए कहा कि JPSC ने अभ्यर्थियों के प्रश्नों का उत्तर न देकर केवल लीपा-पोती का काम किया है। हां इस बीच उसने कटऑफ जरूर जारी कर दिया। फिर भी रिजेक्शन सूची और अभ्यर्थियों का मार्कशीट गोल कर गया। आयोग कहता है कि हमने 41 दिन के रिकॉर्ड टाइम में पीटी का रिजल्ट जारी कर दिया। भले ही रिजल्ट लीपा-पोती से ओत-प्रोत हो। जेपीएससी कहता है कि 3,69,327 फॉर्म वैध पाए गए, लेकिन यह नहीं बताता है कि परीक्षा में कुल 2.48 लाख अभ्यर्थी ही शामिल हुए थे।

प्रश्न-1- सबसे मजबूत साक्ष्य ये है कि कुछ होनहार छात्र अधिक अंक लाकर भी प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम में अनुतीर्ण हुए हैं जबकि बहुतायात में कम अंक लाने वाले कतिपय छात्र उतीर्ण हुए हैं। इसका प्रमाण ये है कि एक छात्र की उत्तर-पुस्तिका को कार्बन कॉपी के रूप में संलग्न किया गया है। जिसका  अनुक्रमांक 52236888 है और अंक 230 है, जबकि 266 अंक लाने वाले अभ्यर्थी इसमें अनुतीर्ण हो जाता है। OMR में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं है। अनुक्रमांक 52077036 है। यह सबसे मजबूत और पुष्ट आधार इंगित करता है कि व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है जो परिकल्पना से बाहर है। 

जेपीएससी का जवाब- ऐसा तर्क दिया गया है कि एक अभ्यर्थी जिसका क्रमांक 52077036 है उसे 266 अंक मिलने के बावजूद भी उसका चयन नहीं हुआ है। हालांकि बिना कट ऑफ़ की जानकारी हुए तर्क आधारविहीन है। फिर भी यह स्पष्ट किया जाता है कि उक्त अभ्यर्थी को अपने कोटे की अनारक्षित के कटऑफ से 260 से कम 240 अंक ही प्राप्त है।

अभ्यर्थियों का काउंटर-  जेपीएससी यह तो बतलाता है कि रोल नंबर 52077036 इसलिए पास नही किया, क्योंकि उसे कटऑफ से कम मार्क्स मिले हैं,  लेकिन यह नहीं बताता कि BC-2 कोटे का अभ्यर्थी जिसका रोल नंबर 52236888 है और अंक 230 है, वह कैसे पास कर जाता है? जबकि BC-2 कोटे का कटऑफ मार्क्स 252 गया है।  दरअसल इस अभ्यर्थी का रोल नंबर सीरियल से पास करने वालो के समूह में देखा जा सकता है।

प्रश्न-2 क्रमवार तीनों जिलों लोहरदगा, साहेबगंज और लातेहार के एक-एक परीक्षा केंद्रों से परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए है। कई केंद्रों से 2,3,4 और 5 की श्रेणी में क्रमवार परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए है, जो इस बात को इंगित करना है, परीक्षा हॉल में सही तरीके से पर्यवेक्षण नही हुआ या फिर स्थानीय स्तर पर केन्द्र का प्रबंध किया गया। चूंकि इस तरह का परिणाम किसी भी लोक सेवा आयोग द्वारा परिणाम में देखने को नहीं मिलता है। एक-दो केन्द्रों से संयोग हो सकता है मगर इतने सारे केन्द्रों में इस तरह ही परिणाम आना काफी संदेहास्पद है। इसके कारण परिणाम काफी प्रभावित हुआ।

जेपीएससी का जवाब- ऐसा दावा किया गया है कि तीन जिलों लोहरदगा, साहेबगंज और लातेहार के एक-एक परीक्षा केन्द्र से क्रमवार परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए है, जबकि कई केन्द्रों से 2,3,4 और 5 की श्रेणी की क्रमवार परीक्षार्थी उतीर्ण हुए है। ऐसे उदाहरण मात्र दो जिलों, लोहरदगा और साहेबगंज में प्रतिवेदित हुए है। उल्लेखनीय है कि 7वीं जेपीएससी की परीक्षा 3.7 लाख अभ्यर्थियों के लिए आयोजित कि गयी थी, जो जेपीएससी द्वारा आयोजित पूर्व कि कई अन्य परीक्षाओं के अभ्यर्थियों कि संख्या से कई गुना अधिक थी। परीक्षा कि वृहद प्रकृति के परिपेक्ष्य में दो परीक्षा कक्षों के संबंध में अपरिहार्य परिस्थिति उत्पन्न हुई, जिसके लिए अभ्यर्थियों को उत्तरदायी ठहराया नहीं जा सकता। 

ये अपरिहार्य परिस्थितियां किसी कदाचार से संबंधित नहीं है। आयोग ने ऐसे अभ्यर्थियों के हितो को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया कि उन्हें औपबंधिक रूप से क्वालिफाइड घोषित किया जाये तथापि अग्रेतर जांच की कार्यवाही जारी रहेगी। ऐसा निर्णय इसलिए भी आवश्यक था क्योकि एक छोटी संख्या के मामले को लेकर सम्पूर्ण परीक्षा परिणाम को रोक कर नहीं रखा जाये। इस संबंध में आयोग द्वारा अग्रेतर कार्यवाही की जाएगी।

अभ्यर्थियों का काउंटर- आयोग ने माना कि दो परीक्षा केन्द्रों पर गड़बड़ियां हुई है, जिसे वह पहले अस्वीकार कर रहा था। आयोग का कहना है वृहद पैमाने पर परीक्षा करवाने के कारण ऐसी गड़बड़ियां हुई। सवाल है क्या वृहद पैमाने पर परीक्षा करवाने वालों को गड़बडियों में छूट का अधिकार है? क्या अन्य राज्य लोक सेवा आयोग वृहद स्तर पर परीक्षा नही करवाते है? आयोग कहता है कि दो परीक्षा कक्षों के संबंध में अपरिहार्य परिस्थिति उत्पन्न हुई, जिसके लिए अभ्यर्थियों को उत्तरदायी ठहराया नहीं जा सकता। सवाल है कि अपरिहार्य परिस्थिति उत्पन्न हुई या जानबूझकर की गयी। आयोग के जवाब में भी विरोधाभास है एक तरफ आयोग अपरिहार्य परिस्थितियों के लिए अभ्यर्थियों को उत्तरदायी नही ठहरता और दूसरी ओर उनके रिजल्ट को औपबंधिक मानते हुए अग्रेतर जांच की बात करता है। आयोग कहता है कि एक छोटी संख्या के मामले को लेकर सम्पूर्ण परीक्षा परिणाम को रोकना उचित नही है। जबकि कानून की नज़रों में एक रुपये की चोरी या एक करोड़ चोरी, आखिर चोरी-चोरी होती है। फिर उनलोगों का क्या जो उसी छोटी संख्या के स्थान पर पीटी परीक्षा में पास करते।

प्रश्न-3 कोटिवार श्रेणी का कट ऑफ Marks का जारी नहीं करना अपने आप में अत्यंत संदेहास्पद स्थिति उत्पन्न करता है जिसके परिणाम स्वरूप छात्र इस दुविधा में है कि कितने अंको में उत्तीर्णता हुई है। जैसा की बिहार लोक सेवा आयोग व अन्य लोक सेवा आयोग का परिणाम साक्ष्य के रूप में संलग्न किया गया है।      
 
जेपीएससी का जवाब- इस संबंध में आयोग किसी तथ्य को छिपाने कि मंशा नहीं रखती है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को आयोग अपनाने कि मंशा रखता है, जिसमे परीक्षा का कटऑफ अंक अंतिम परीक्षाफल के समय ही जारी किया जाता है।   फिर भी अभ्यर्थियों को किसी निहित उदेश्य से लगातार दिग्भ्रमित किए जाने के प्रयासों के परिपेक्ष्य में आयोग ने कटऑफ मार्क्स जारी करने का निर्णय लिया है। कोटिवार कटऑफ संलग्न है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- आयोग कहता है हम संघ लोक सेवा आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को अपनाने की मंशा रखते है, जो कि कटऑफ अंतिम में जारी करता है। सवाल है क्या इससे पूर्व जेपीएससी पीटी परीक्षा के रिजल्ट के साथ ही अभ्यर्थियों का कटऑफ मार्क्स और मार्क्सशीट जारी नही किया जाता था? क्या जेपीएससी ने अपनी नयी नियमावली में यह प्रावधान किया है कि वह कटऑफ और मार्क्सशीट अंतिम में ही जारी करेगा? यूपीएससी अपने परीक्षा के वार्षिक कैलेंडर के प्रति प्रतिबद्ध है। क्या बीते 19 सालों में जेपीएससी ने कभी भी  अपने परीक्षा कैलेंडर का पालन किया है? क्या यूपीएससी अपना परीक्षा केन्द्र ग्रामीण और सीसीटीवी रहित स्कूलों में बनाता है?

प्रश्न-4 कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग द्वारा जारी संयुक्त सैनिक सेवा परीक्षा नियमावली- 2021 के खंड 17(ii) में सभी श्रेणियों का एक सिंगल कटऑफ की बात कही गई है जिसका पालन प्रारंभिक परीक्षा में नहीं किया गया है।

जेपीएससी का जवाब- यह दावा नियमों को गलत रूप से पढ़ने के फलस्वरुप किया गया है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- नयी नियमावली Rule-17(ii) कहता है कि आयोग के द्वारा एक सिंगल कट ऑफ निश्चित किया जाएगा और यदि उस निश्चित कट ऑफ पर #आरक्षित #वर्ग के अभ्यर्थी Adequate Numbers में नहीं आ पाते हैं तो उनका Cut off तब तक नीचे किया जाएगा जब तक उस आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी Adequate Numbers में न आ जाए। लेकिन यह Cut off Minimum Qualifying Marks (प्रत्येक आरक्षित वर्ग का अलग-अलग है) से नीचे नहीं किया जाएगा। चूंकि इस विधि से रिजल्ट बनाने में आयोग को परेशानी हो रही थी इसलिए नियमावली को ताक पर रखकर एक अलग ही विधि से रिजल्ट तैयार कर दिया गया।

प्रश्न-7 सभी अभ्यर्थियों चाहे वे पास हो या फेल सभी का मार्क्सशीट जारी किया जाए।

जेपीएससी का जवाब- यह अनावश्यक है। प्रत्येक अभ्यर्थी को OMR Answer Sheet की कार्बन कॉपी दी जा चुकी है। अतः यह अनुरोध परीक्षा प्रक्रिया की जानकारी के अभाव को दर्शाता है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- क्या परीक्षा लेनी वाली अन्य संस्थायें जो अभ्यर्थियों को OMR शीट की कार्बन कॉपी उपलब्ध कराती है, वह मार्क्सशीट नही देती है? क्या दस्तावेज के रूप मे कार्बन कॉपी प्रामाणिक है? जब आयोग के पास सभी अभ्यर्थियों के मार्क्स है तो उसे जारी करने में क्या समस्या है?

प्रश्न-10 इसके अलावा प्रश्नपत्र लीक होने की चर्चा भी जोरों पर है, आयोग इसकी उपयुक्त कमेटी द्वारा जांच करवाएं।

जेपीएससी का जवाब- इस प्रकार की परीक्षा में प्रश्न पत्र का लीक होना एक वृहद समाचार होगा। ऐसी घटना कुछ ही पलों में Public Knowledge बन जाती है। आयोग की यह परीक्षा जो 19 सितंबर 2021 को संपन्न हुई है, को 2 माह से अधिक हो गया है और इस अवधि में प्रश्न पत्र लीक होने का तनिक भी साक्ष्य नहीं मिलना दर्शाता है कि यह दावा निरर्थक है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- बिना जांच कराए केवल तर्कों के आधार पर प्रश्न पत्र लीक होने की घटना को सिरे से खारिज कर देना न्यायसंगत नही है।

प्रश्न-15 PT के पेपर-1 एवं पेपर-2 में लगभग 20 प्रश्नों में गड़बड़ियां थी। जेपीएससी के द्वारा एक्सपर्ट कमेटी के गठन के बाद भी जेपीएससी उनका सही निराकरण नहीं कर पाया, जिसके कारण मेधावी छात्रों को काफी हानि हुई है। यह जेपीएससी की निष्क्रियता और अक्षमता को इंगित करता है।

जेपीएससी का जवाब- यह तथ्यात्मक रूप से गलत है। मॉडल उत्तर पर अभ्यर्थियों से आपत्ति प्राप्त करने के पश्चात विशेषज्ञों की समिति गठित कर प्रश्नों की जांच कराई गई। यह प्रक्रिया नियमों के अनुरूप की गई है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- विशेषज्ञ समिति की जांच के बाद अभी भी 4-5 प्रश्नों के उत्तर गलत है। यदि विशेषज्ञ समिति इतनी ही विशेषज्ञ होती तो सर्वविदित डोम्बारी बुरु को बिरसा उलगुलान की जगह किसी अन्य विद्रोह से सम्बंधित न करती और मीडिया में प्रचारित होने के बाद अपनी गलती सुधारती।

प्रश्न-16 गृह जिला एवं पंचायत स्तर पर परीक्षा केंद्र बनाए जाने के कारण स्थानीय अभ्यर्थियों को उनके परिचित एवं परिजन जैसे invigilator के द्वारा प्रश्नों को हल करने में अनुचित लाभ पहुंचाया गया, जिसके परिणाम स्वरूप अनेक जिलों के अनेक सेंटरों से एक ही रूम से लगातार क्रमांक वाले अभ्यर्थी पास कर गए हैं, जो भारी अनियमितता को दर्शाता है।

जेपीएससी का जवाब- संबंधित उपायुक्तों द्वारा राज्य में उपलब्ध सर्वोत्तम संसाधनों का उपयोग किया गया है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- जब आयोग UPSC द्वारा अपनायी जाने वाली प्रकिया को अपनाने की मंशा रखता है तो चोरी रोकने के संसाधनों की व्यवस्था करने में पिछड़ कैसे जाता है।

प्रश्न-19 जेपीएससी के सभी candidate (सफल एवं असफल दोनों) यह मांग कर रहे हैं कि जेपीएससी के इस रिजल्ट को रद्द किया जाए और तत्पश्चात जेपीएससी को भंग कर परीक्षा का आयोजन यूपीएससी के द्वारा कराया जाए, ताकि जेपीएससी की परीक्षा और candidate का चयन निष्पक्ष एवं तटस्थ तरीके से हो सके और राज्य के मेधावी छात्र इस सेवा में आ सके। संविधान के अनुच्छेद 315 (4) में प्रावधान है कि यदि राज्यपाल राष्ट्रपति से अनुरोध करें और राष्ट्रपति इस अनुरोध को स्वीकार कर ले तो यूपीएससी राज्य को सेवाओं की परीक्षा का संचालन कर सकता है।

जेपीएससी का जवाब- आयोग इस बिन्दू पर टिप्पणी कारण उचित नही समझता है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- बात सही है कोई भी आयोग भला अपनी अक्षमता पर टिप्पणी कैसे कर सकता है।

प्रश्न-20 वार्ता के क्रम में चार जिलों यथा रांची, बोकारो जमशेदपुर एवं धनबाद के अपेक्षाकृत पर्याप्त संख्या में अभ्यर्थियों ने परीक्षा उत्तीर्ण नहीं किया (मौखिक प्रश्न)

जेपीएससी का जवाब- यह प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क मे पूर्वाग्रह को दर्शाता है। आयोग इस पर टिप्प्णी करना उचित नही समझता है।

अभ्यर्थियों का काउंटर- रांची, जमशेदपुर, धनबाद एवं बोकारो के अधिकांश परीक्षा केन्द्र शहरी क्षेत्रों में बनाए गए थे, जहां चोरी रोकने की पर्याप्त व्यवस्था की गयी थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी व्यवस्था का अभाव था।