द फॉलोअप टीम, डेस्क:
प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु परब के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया था। उन्होंने कहा था कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में संसदीय व संवैधानिक प्रक्रिया के तहत कृषि कानूनों को वापस लिया जायेगा। इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि जब तक संसद में न्यूनतम समर्थन मूल्य का लिखित आश्वासन नहीं मिलता आंदोलन जारी रहेगा।
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक का एजेंडा
इस बीच जानकारी मिल रही है कि रविवार को संयुक्त किसान मोर्चा की अहम बैठक होने वाली है। इस बारे में जानकारी देते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि कानूनों को निरस्त कर दिया गया है। संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में अन्य मुद्दों पर चर्चा होगी। बैठक का एजेंडा अलग होगा। उन्होने कहा कि आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने और मारे गये किसानों के विषय में चर्चा होगी। उनके आश्रितों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। राकेश टिकैत ने ये भी बताया कि मैं आज लखनऊ जाऊंगा जहां कल महापंचायत होगी।
बीते 11 माह से आंदोलनरत हैं किसान
गौरतलब है कि नवंबर 2020 से ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है। कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर किसान बीते 10-11 माह से दिल्ली-हरियाणा-पंजाब बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे थे। इस दरम्यान कई हिंसक घटना हुई। दावा है कि तकरीबन 800 किसानों ने जान गंवाई। इसमें लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा की घटना भी शामिल है। इस बीच गुरु परब के मौके पर पीएम राष्ट्र के सामने आये और कहा कि सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों किसानों के हित में ही लाए गये थे लेकिन हम किसानों के ठीक से नहीं समझा पाये। आगे इस पर विचार होगा।
प्रधानमंत्री के फैसले के अलग-अलग मायने
प्रधानमंत्री के इस फैसले को राजनीतिक विश्लेषक आगामी पंजाब और यूपी चुनाव को देखते हुए लिया गया फैसला बता रहे हैं। गौरतलब है कि आंदोलन में ज्यादातर पंजाब और पश्चिमी यूपी के किसान शामिल थे। जाट समर्थन का मुद्दा भी है। कुछ लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार किसान आंदोलन के दवाब में झुक गई वहीं एक धड़ा पीएम मोदी से नाराज है क्योंकि उन्होंने इसे वापस लिया। फिलहाल, जब तक चुनाव है ये मुद्दा सुर्खियों में रहेगा।