logo

लखीमपुर खीरी हत्याकांड की तुलना जलियावाला बाग हादसे से करना कितना सही

13652news.jpg

प्रेमकुमार मणि, पटना:

उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में पिछले 3 अक्टूबर जो हुआ उस पर लिखने केलिए शब्द नहीं मिल रहे हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र के नेतृत्व में तेज रफ़्तार गाड़ियों का  एक काफिला प्रदर्शनकारी किसानों को कुचलते हुए निकल गया, जिससे अनेक किसानों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। दर्जनों लोग बुरी तरह घायल हैं। ये किसान केंद्रीय सरकार द्वारा लाए गए तीन किसान विरोधी कानूनों के विरोध में थे और इसी क्रम में उस रोज उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के दौरे को रोकने के लिए सड़क जाम प्रदर्शन कर रहे थे। घटनास्थल की मुकम्मल जाँच रिपोर्ट अभी आनी है ।  लेकिन इतना तो तय है न  कि किसानों ने खुदकशी नहीं की है ! यह  घटना किसी भी संवेदनशील इंसान के रोंगटे खड़ी कर सकती है। यह सब हमारे लोकतान्त्रिक समाज में हो रहा है इससे अधिक परेशानी होती है। एक मंत्री पुत्र की इस दरिंदगी पर किस तरह टिप्पणी की जाय कुछ समझ में नहीं आता।

पूरा देश इस घटना से हतप्रभ है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार द्वारा  जलियावाला बाग़ की घटना से इसकी तुलना कोई गलत नहीं है। जलियावाला बाग में ऐसा ही हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी सैफुद्दीन किचलू और कुछ दूसरे नेताओं की  गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के आम आदमी जब जलियावालाबाग में  13 अप्रैल 1919 को  शांतिपूर्ण  सभा कर रहे थे , तब अचानक से ब्रिटिश हुक्मरान जनरल डायर ने अपने सिपाहियों द्वारा घेर लिया और भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। घटना में 379 लोग मारे गए थे और एक हज़ार से अधिक घायल हुए थे । इस घटना ने पूरे मुल्क को झकझोर कर रख दिया था। लखीमपुर की घटना में अन्तर यही था कि ब्रिटिश हुक्मरानों की जगह केंद्रीय हुक्मरान के चट्टे-बट्टे थे। संख्या के हिसाब से कम लोगों की मौत हुई , लेकिन किसी सभा -प्रदर्शन  पर अचानक से हमला वाला चरित्र इसे जलियावाला बाग की  घटना से ही जोड़ता है। 

क्या भाजपा के लोग खुली हिंसा की चुनौती दे रहे हैं ? या अपनी तरह से उन्होंने एक गृहयुद्ध जैसी कोई योजना बना ली है ? यह भी तय करना मुश्किल है कि भाजपा को कौन -कौन से सामाजिक समूह देशद्रोही दिख रहे हैं। नागरिकता प्रमाणपत्र  से यह मामला आरम्भ होता है। सी ए ए कानून आता है। फिर उन्हें कुछ अर्बन नक्सली दिख जाते हैं। मुसलमान -इसाई तो उनके जानी दुश्मन हैं ही। कम्युनिस्ट भी पुराने दुश्मन हैं। कांग्रेस -मुक्त भारत तो उनका मुख्य नारा ही है । समाजवादी -स्कूल के लोग उनकी नजर में दिग्भ्रमित बंदे हैं। दलित -ओबीसी भी संदिग्ध समूह हैं। अब नए दुश्मन किसान-मजदूर  हुए हैं, तो कुल मिला कर प्रश्न यह है कि भाजपा किन लोगों का राष्ट्र बनाना चाहता है ? क्या अडानी )-अम्बानी जैसे पूंजीपति , आसाराम जैसे बाबा -पण्डे -पुरोहित और सामंतों-ज़मींदारों के अवशेष  इस देश के केन्द्रक होंगे और इन्हें स्वीकारने वाले लोग ही उनके वृत्त के भीतर होंगे ?  शेष लोग उनके तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की परिधि से  बाहर रहेंगे ? इस राष्ट्रवाद पर विचार की जरुरत है। लखीमपुर-खीरी की घटना के बड़े राजनीतिक मायने हैं । इस पर हमें गहराई से विचार करना होगा। 1922 में उसी उत्तरप्रदेश में चौराचौरी की  घटना हुई थी। उग्र किसानों के एक जत्थे ने इलाके के पुलिस मुख्यलय पर हमला कर दिया था। घटना ने हिंसक रूप ले लिया और अनेक पुलिसकर्मी मार दिए गए। इस घटना ने गाँधी के असहयोग आंदोलन को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।  लखीमपुर खीरी की घटना से गुजरते हुए इन घटनाओं का स्मरण लाज़िम है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि छोटी -छोटी बातों पर घड़ियाली आंसू टपकाने वाले प्रधानमंत्री मोदी इस घटना पर  बिलकुल चुप हैं । उनके चट्टे-बट्टों के मुंह भी सिले हुए हैं। क्या लखीमपुर की घटना एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है ? 

किसी  भी तरह की हिंसा का हम विरोध करना चाहेंगे। आज की लोकतान्त्रिक दुनिया में हिंसा मुसीबतें पैदा कर सकती हैं, कोई समाधान नहीं। लेकिन जब हिंसा में गृह राज्य मंत्री का परिवार और सत्ताधारी दल शामिल हो जाय, तब मामला गंभीर हो जाता है। गृह राज्य मंत्री के बेटे पर मुकदमा दायर हुआ है। हम चाहेंगे कि उसपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो। देश केवल एक भूगोल नहीं है। केवल पहाड़ और नदियाँ ही देश नहीं है। वास्तविक देश यहाँ की जनता है। किसान जो हमारे देश के  प्राणतत्व हैं ,पर यह बर्बर हमला देश पर हमला है। इससे बड़ा कोई देशद्रोह हो नहीं सकता। भारतीय जनता पार्टी को अपनी गलतियों को स्वीकारना चाहिए। इसके लिए सार्वजनिक तौर पर मुआफी माँगनी चाहिए और हो सके तो प्रायश्चित करना चाहिए।

(प्रेमकुमार मणि हिंदी के चर्चित कथाकार व चिंतक हैं। दिनमान से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक पांच कहानी संकलन, एक उपन्यास और पांच निबंध संकलन प्रकाशित। उनके निबंधों ने हिंदी में अनेक नए विमर्शों को जन्म दिया है तथा पहले जारी कई विमर्शों को नए आयाम दिए हैं। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।