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महारानी के लेखक का सवाल: एक दलित, पिछड़ा, महिला को नायक के रूप में कब करेंगे स्वीकार

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उमाशंकर सिंह,  मुंबई:

'महारानी' वेब सीरीज कुछ कट्टर सवर्ण जातिवादियों को बहुत नागवार गुजर रही है, तो कथित पिछड़ी जातियों के कुछ कट्टर लोग इसे पिछड़ा विरोधी बता रहे हैं। मुझे तुलसीदास याद आते हैं, जिन्होंने कहा था- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। भाजपा कार्यकर्ता और उनके असंख्य पत्रिकाओं में से किसी एक के पत्रकार या संपादक टाइप पंकज कुमार झा  लिखते हैं,  महारानी घनघोर सवर्ण और हिंदू विरोधी है। उन्होंने पांचजन्य के 'समीक्षा' कॉलम में भी अपनी भड़ास छपवा भी दी है। एक दूसरे मित्र हैं। क्रांतिकारी और प्रोफेसर हैं। उनका कहना था कि महारानी दलित पिछड़ा आंदोलन को भ्रष्ट और बेईमान बताने की सवर्ण साजिश है और इन साजिशकर्ताओं और इसे लिखने बनाने वालो को फांसी होनी चाहिए। ये सवर्ण कभी दलितों-पिछड़ों को अच्छा नहीं बता सकते! एक तीसरे सज्जन हैं। भाजपा के कटु आलोचक हैं। वे बेचारे महारानी रिलीज के शुरुआती दस दिन तक जब जहां भी कोई महारानी के बारे में कुछ लिखता वहां उसे घटिया सीरीज बताते हुए आप ऐसा कैसे लिख सकते हैं टाइप करते रहे।  

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

जहां तक हमारा मानना है महारानी आपको अच्छी लग सकती है बुरी भी लग सकती है। जैसी लग रही है लगाइये। बुराई करनी है सीरिज की कीजिये। पर जो हमने दिखाया नहीं है वो तो मत देखिये और लिखिये। उसकी आलोचना से गुरेज नहीं है, पर उसे षडयंत्र बताना और हमसे उम्मीद करना कि इज्जत बख्शें वह नहीं हो पाएगा।  जो है नहीं सीरिज में, वही देखे जा  रहे हैं। राबड़ी देवी नाम का कोई कैरेक्टर नहीं है पर उनको रानी भारती को राबड़ी समझना है और बिहार का जो अपना इंटरपेटेशन है उसे स्क्रीन पर देखना है। अगर ऐसा है तो अपनी सीरीज बना लें। पंकज झा के मुताबिक हम आरजेडी का सपोर्ट कर रहे हैं। उनसे फंडेड है। अब अक्ल के दृष्टिहीन अगर ऐसा रहेगा तो आपके तर्क से हम उनकी पार्टी के सबसे बड़े आइकॉन को करप्ट कह कर जेल भिजवा रहे हैं?? स्क्रिप्ट क्या अब नागपुर से आकर पास करवाऊं? एक दलित, पिछड़ा, महिला को नायक के रूप में कब स्वीकार कर पाएंगे कुंठित जातिवादी।  

राजनीति में प्राथमिकता क्‍या रहनी चाहिए
राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में प्राथमिकता क्‍या रहनी चाहिए। क्‍या महज सरकार की इस बात पर ताली बजाया जाएगा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा। कोई रोजगार की स्थिति खराब नहीं है। कोई व्यापार धंधा-चौपट नहीं हुआ है। अगर आप अच्छा पार्टी कार्यकर्ता हैं तो अपनी पार्टी पर प्रेशर बनाना चाहिए कि थोड़ा प्रो-पीपुल हो जाए। अभूतपूर्व महंगाई, रोजगार संकट के दौर से गुजर रहे देश को थोड़ा राहत दी जाए। ना कि फर्जी मुद्दे उठाकर लोगों को बिजी रख और सरकार को सेफ पैसेज दिया जाए। फालतू का वितंडा खड़ा करने से बेहतर है कि कुछ अच्‍छा काम किया जाए। बिहार की राजनीति पर हमने डॉक्यूमेंट्री नहीं बनाई है। इसमें कुछ चीजें 1990 के दशक की ली हैं। हमारा दावा किसी की जीवनी पर सीरीज बनाने का नहीं है। 

(उमाशंकर सिंह हिंदी के युवा लेखक हैं। बिहार के सुपौल के रहनेवाले हैं। कई फिल्‍मों की पटकथा लिख चुके हैं। इनदिनों  'महारानी' वेब सीरीज को लेकर चर्चा में हैं।संप्रति एमुंबई में रहकर स्‍वतंत्र लेखन । )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।