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जन्माष्टमी: कोविड से छटपटाते शहर में गुलाब-बेला की खुशबू के बीच जागी उम्मीद 

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धीरेंद्र मोहन तिवारी, बनारस:

आज कृष्ण जन्माष्टमी है। और तमाम भागम भाग के बीच कुछ पुरानी यादों की ऊर्जा से प्रेरित मैं और मेरा 11 साल का बेटा अलख, इस उत्सव की तैयारियों के लिए बनारस की उन सड़कों पर निकल पड़े, जो आज विकास के नाम पर लगभग खंडहर से प्रतीत होती है। चौक से होकर ज्ञानवापी के पास पहुंचते ही ढेर सारे खिलौने छोटे-छोटे सुंदर वस्त्रों के बीच चलते हुए हम उन खिलौनों की तलाश कर रहे थे जो हमारी सजी हुई जन्माष्टमी में चार चांद लगा दे। चारों ओर कमल, दौना, गुलाब, बेला की खुशबू के बीच कोविड-19 से मछली की तरह के छटपटाते शहर को एक उम्मीद दिखाई दे रही थी। चौक से निकलकर हम लक्सा औरंगाबाद पहुंचे यह वह जगह है जहां शहर के बीच में मिट्टी में जान डाल देने वाले कुम्हार रहा करते थे। अब उन हुनरमंद और जहीन 50 से अधिक परिवारों की संख्या सिमटकर 10 -12 में रह गई है फिर भी उम्मीदें जिंदा है।

 

यहां हमारी मुलाकात होती है बैजू प्रसाद प्रजापति से जो बहुत सारे पुरस्कारों से पुरस्कृत है और मिट्टी को आकार देने के मामले में विशेष योग्यता रखते हैं। मुलाकात होने पर सबसे पहले उन्होंने मुझे देखा और मेरे झोले की ओर देखकर पूछा इसमें क्या है मैंने उन में मिट्टी का खिलौना होना बताया एक खिलौने को उन्होंने हाथों में लिया और उसकी तली को हल्का तक खुरच कर  देखा और काफी हिकारत से मेरी आंखों में देख कर बोले प्लास्टर ऑफ पेरिस।

 

इसके बाद उन्होंने मुझे अपनी मिट्टी की बहुत सारी सुंदर प्रतिमाएं दिखाएं और यह वादा किया कि मेरे सामने एक चित्र रखिए मैं 1:30 से 2 घंटे में उसे मिट्टी पर उतार दूंगा उन्होंने मुझे नरेंद्र मोदी ,मदन मोहन मालवीय, रविंद्र नाथ टैगोर, पंडित रवि शंकर, किशन महाराज, बिस्मिल्लाह खान सुंदर प्रतिमा दिखाई और मुझसे वादा किया कि मेरे आने वाले नाटक के मंचन के दौरान वाह मंच पर उपस्थित चरित्रों को शो के दौरान ही मूर्तियों में उतार कर दिखाएंगे। इस रोचक मुलाकात का मुझे इंतजार रहेगा।

 

पूरी बातचीत के दौरान बैजू प्रसाद प्रजापति अपनी गोद में एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला लिए रहते हैं और बताते हैं की मिट्टी में जान मैं डालता हूं और उम्र में रंगों को भरता है मेरा पोता। एक 12 से 13 साल का बालक जो मुस्कुराते हुए हमारी और दादा की बातचीत को सुन रहा था रंगों की बात होने पर वह हल्का सा मुस्कुरा देता है और मैं एक शानदार कला को अगली पीढ़ी में पहुंचता देख कर रोमांचित हो जाता हूं। बैजू प्रसाद प्रजापति जैसे कलाकार बनारस में अपनी कला को जिंदा रखने के बावजूद सरल और मुस्कुराते इंसान हैं और प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल से मिलने के बाद भी बिल्कुल जस के तस है मेरे प्यारे बनारस की तरह। मुझे बैजू प्रसाद प्रजापति के साथ उनके बनाए घोड़े, हिरण शेर, कृष्ण, सपेरा, सेठ सेठानी, जंगली लड़की, भामाशाह झोपड़ी, दाना चुगती चिड़िया, जैसी सुंदर प्रतिमाएं बनारस को जीने का एक नया रास्ता और अपने चटक रंगों से एक नई ऊर्जा देती हैं।

(उत्‍तर प्रदेश निवासी धीरेंद्र मोहन तिवारी लेखक,पेंटर, डिजाइनर और  नाट्य निर्देशक हैं। संप्रति फ्री लांसिंग)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।