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नाज़िम उर्फ़ सुरेश -सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे...

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मनोहर महाजन, मुम्बई:

बॉलीवुड के सुनहरे दौर के एक हैंडसम और कामयाब अभिनेता सुरेश को नई पीढ़ी शायद ही जानती हो...थोड़ा बहुत जानती भी है तो  फिल्म 'दुलारी' (1949) में उनपर  फिल्माए गए मो.रफी साहब के प्रसिद्ध गीत "..सुहानी रात ढल चुकी,न जाने तुम कब आओगे.."की वजह से जानती है। 
सुरेश का असली नाम नाज़िम अहमद था। उनका जन्म 13 नवम्बर 1929 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था। उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत एक 'बाल कलाकार' के रूप में बॉम्बे टॉकीज के साथ फ़िल्म झूला (1939) अनजान (1940) नया संसार (1941) और बसंत (1942) से की थी।

 

 

सुरेश उन कलाकारों में से एक हैं जो 'बाल कलाकार' से एक सफल 'वयस्क अभिनेता' बने। निर्माता-निर्देशक ए.आर. कारदार ने उन्हें संरक्षण दिया और एक पिता की तरह सुरेश को अपनी नायिकाओं का चयन करने की अनुमति दी और कई फिल्मों में वो नायक के रूप में सामने आए जिनमें मधुबाला और गीताबाली के साथ 'दुलारी' (1949), नलिनी जयवंत के साथ 'जादू' (1951), सुरैया और सुमित्रादेवी के साथ 'दीवाना' (1952) और वैजंतिमाला के साथ 'यास्मीन' शामिल हैं।

 

 

बाद में  फ़िल्म क़ैदी में, पद्मिनी उनकी नायिका थीं और 'तीन उस्ताद' (1961) में, उन्होंने अमीता के साथ नायक के रूप में काम किया। बाद में श्यामा के साथ 'चार चंद' (1953) में निगार सुल्ताना के साथ 'रिश्ता' (1954)  और उषा किरण  के साथ 'दोस्त' (1954) उनकी प्रमुख फिल्में थी। 

 

 

1950 में वे वहां बसने के इरादे से वो पाकिस्तान गए। वहां 2 फिल्में कीं जो ज़्यादा कुछ न कर सकीं और वापस लौट आये क्योंकि उन्हें लगा कि उनका वहां कोई भविष्य नहीं। 50 के  ही दशक के मध्य में,उन्होंने 'बी'और 'सी' ग्रेड फिल्मों के साथ-साथ छोटी-मोटी भूमिकाएँ करना शुरू कर दिया। कुल मिलाकर, उन्होंने भारत में 52 हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। बतौर अभिनेता उनकी अंतिम फिल्म 'परदे के पीछे' (1971) थी। 

 

 

सुरेश ने फिल्म 'गंगा और सूरज' (1980) का निर्माण भी किया, जिसमें सुनील दत्त और शशि कपूर थे। मुख्य-विलेन अनवर हुसैन की बीमारी ने इस फ़िल्म को आर्थिक संकट में डाल दिया वो पाई पाई को मोहताज हो गए। ये फ़िल्म उनकी मृत्यु के बाद रिलीज़ हुई थी। 14 जुलाई 1979 में घोर दरीद्रता में उनका देहांत हो गया। पूरी तरह बिसरा दिए गए इस कलाकार को 108 वीं वर्षगाँठ पर उनकी अभिनय कला और उनके योगदान को को हम सलाम करते हैं।

 

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।