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चीन और पाकिस्‍तान को भी अंदर-अंदर सता रहा तालिबानियों का डर

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पुष्परंजन, दिल्‍ली:

चीन न सिर्फ शिन्चियांग में अलगाववाद की आग फैलने को लेकर चिंतित है, अफ्रीका में उसकी 10 हज़ार से अधिक कम्पनियाँ जिहादियों के प्रकोप से प्रकम्पित हैं. चीन का ऑल वेदर फ्रेंड पाकिस्तान भी चैन से नहीं दिखता. 'तहरीके तालिबान पाकिस्तान' की नज़र इस्लामाबाद की गद्दी पर है.  मीडिया में कहानियां खूब गढ़ी जा रही हैं कि तालिबान को चीन-पाकिस्तान ने साध लिया है और आने वाले दिनों में उसके लड़ाकों को भारत की तरफ मोड़ देंगे। मगर, जो आदमखोर शेर पालते हैं, वो क्या खुद सुरक्षित हैं? इमरान खान और शी चिनफिंग (शी जिनपिंग) के गिर्द जो लोग हैं, सच पूछिए तो सहज नहीं हैं। अभी से खतरे की घंटी बजने लगी है कि तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की नजर पाकिस्तान की सत्ता पर है। यह इमरान खान के लिए ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़े’ जैसी खबर है। इससे उलट भारत में जो लोग टीवी बहस में यह कहते फुले नहीं समा रहे थे कि खून का एक कतरा नहीं गिरा और तालिबान का फतह हो गया। ऐसे दिव्य दृष्टि वालों को फिलहाल काबुल एयरपोर्ट पर 12 लाशों और गजनी में तालिबान के सितम के शिकार नौ मृतकों की दास्तां को जरूर दरपेश करना चाहिए। तालिबान क्या वाकई बदल गए? बाहरी दुनिया की खबरों में ऐसा ही प्रस्तुत हो रहा है। ह्यूमन राइट्स वाच ने गजनी प्रांत स्थित मलिस्तान जिले के मुंडारक्त गांव में 4 जुलाई 2021 को घटित एक भयावह घटना का ब्योरा दिया है, जिसमें हजारा समुदाय के नौ लोगों की हत्या की गई थी। पश्तून, ताजिक के बाद हजारा अफगानिस्तान का तीसरा बड़ा समुदाय है, जिसके अधिकांश लोग शिया मत को मानने वाले बताए जाते हैं। लगभग सत्तर लाख की जनसंख्या वाले हजारा, दारी-पर्शियन भाषी हैं। सरकारी सैनिकों और तालिबान लड़ाकों के बीच गोलाबारी की खबरों को सुन कर मुंडारक्त गांव के 30 परिवार पास की पहाड़ी पर छिप गए थे। उनमें से पांच मर्द और चार औरतें 4 जुलाई 2021 को पहाड़ी से नीचे उतर कर अपने घरों से रसद लाने गए। ये लोग तालिबान के हत्थे चढ़ गए । दो दिनों तक इन्हें तड़पा-तड़पा कर तालिबान ने मारा और सभी नौ लोगों की लाशें छोड़ गए। इस लोमहर्षक दृश्य का वीडियो एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जारी किया है। तालिबान अपने सर्च ऑपरेशन के नाम पर जिस तरह के दहशत फैला रहा है, उससे भी स्थानीय लोग भयातुर हैं। 

 

एक बार फिर चीन पर आते हैं, जिसकी सांसें फुली हुई हैं। इस्लामिक स्टेट (आईसिस), अल कायदा और ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) इन तीन अतिवादी समूहों की जड़ें अफगानिस्तान के अंदरूनी हिस्से समेत डुरंड लाइन तक पसरी हुई हैं। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया कि चीन इन तीनों समूहों के निशाने पर है। वह अपने बचाव का रास्ता ढूंढ़ ले। यूएन खुफिया सूत्रों का अनुमान है कि आइसिस फाइटर्स ने 35 से 50 अरब डॉलर की संपत्ति जुटा रखी है। अल कायदा सरगना अयमान अल जवाहिरी अभी मरा नहीं है, वह छद्म पहचान से कहीं छिपा हुआ है। उसका उत्तराधिकारी सैफ अल-अदेल ईरान में कहीं भूमिगत है। ‘यूएनएससी’ की रिपोर्ट में जानकारी दी गई कि ईटीआईएम के मिलिटेंट्स अल कायदा के साथ अफगानिस्तान और सीरिया के फ्रंट पर संपर्क में रहे थे। यही ग्रुप तालिबान से बगलगीर रहा है। ईटीआईएम के सैकड़ों लड़ाके शिन्चियांग सीमा से लगे अफगानिस्तान के बदाकस्तान और दूसरी सीमा फरयाब, नूरिस्तान तथा काबुल तक घुसपैठ किए हुए थे। ईटीआईएम हर हाल में चीनी आधिपत्य वाले शिन्चियांग को उईगुर देश के रूप में देखना चाहता है। 28 जुलाई 2021 को नौ सदस्यीय तालिबान टीम के साथ मुल्ला गनी बारादर ने उत्तरी चीन के शहर थिएनचिन में विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। उस भेंट का मकसद तालिबान पर दबाव बनाना था कि वह ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) से छुटकारा पा ले।

 

यों उस बैठक के बाद तालिबान प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने जानकारी दी थी कि उभयपक्षीय बातचीत सुरक्षा, व्यापार और कूटनीति पर ही केंद्रित थी। हमने चीनी विदेश मंत्री को भरोसा दिया कि अफगानिस्तान की जमीन पर किसी भी देश के विरुद्ध कोई साजिश नहीं रची जाएगी, इस तरह की कोई गतिविधियां नहीं होंगी। मगर, तालिबान ईटीआईएम से संबंध विच्छेद कर लेगा, ऐसा कोई भरोसा विदेश मंत्री वांग यी को नहीं दिया गया। इस मुलाकात का महीना भी नहीं हुआ है। यूएन रिपोर्ट और तालिबान का अस्पष्ट रुख की चिंता चीन को खाए जा रही है। तालिबान नेता कोई पहली बार चीन के संपर्क में नहीं आए हैं। मुल्ला बारादर सितंबर 2019 में भी नौ सदस्यीय डेलीगेशन के साथ पेइचिंग गए थे। उनके अलावा छोटे-मझोले तालिबान नेता चीन जाते रहे हैं। मगर बात घूम-फिर कर भरोसे पर आकर टिक जाती है। शिन्चियांग बरसों से सुलगता रहा है। 5 जुलाई 2009 को शिन्चियांग की राजधानी उरूम्छी में लोग सरकार के दमन के विरुद्ध हिंसक हो उठे, जिसमें 197 प्रदर्शनकारी मारे गए और 1700 से अधिक घायल हुए थे। 25 फरवरी 1992 में उरूम्छी शहर से गुजरने वाली एक बस में विस्फोट हुआ, जिसमें नौ लोग मारे गए और 68 घायल हो गए। चीनी खुफिया तंत्र को शक हुआ कि इस कांड के पीछे कहीं न कहीं तालिबान के लोग शामिल रहे थे। इस तरह की हिंसक वारदातें समय-समय पर होती रही हैं। चीन दावा करता है कि अब तक 270 लोगों की मौत के लिए तुर्किस्तान समर्थक अतिवादी जिम्मेदार हैं। 2002 से ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) अमरीका की आतंकी सूची में था, मगर 2020 आते-आते अमरीका ने इसे उस सूची से बाहर कर दिया। चीन ने आरोप लगाया कि ‘ईटीआईएम’ को सीआईए मदद दे रहा है।

 

ईटीआइएम की सीरियाई शाखा का नाम है, टीआईपी ( तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी). उत्तर-पश्चिम सीरिया इनका गढ़ रहा है. इसके कोई तीन हज़ार लड़ाके अल क़ायदा से सम्बद्ध हयात तहरीक अल-शाम से मिलकर सीरिया में लड़ रहे हैं. टीआईपी और ईटीआइएम ने सीरिया से अफ़ग़ानिस्तान तक कॉरिडोर बना रखा है.  तुर्की में उईगुर डायसपोरा से इन्होंने नई भर्तियां की हैं. चीन को अफ़ग़ानिस्तान से कहीं ज़्यादा डर अफ्रीका में है, जहाँ अल क़ायदा का इक़बाल कम नहीं हो पाया है. कोई दस हज़ार चीनी कम्पनियाँ अफ्रीका में ऑपरेट कर रही हैं. चीनी नेता अफ़ग़ानिस्तान में टीआईपी और ईटीआइएम को यदि तालिबान के माध्यम से दबाएंगे, तो अफ्रीका में जिहादियों से मार खाएंगे. चीन के साथ-साथ रूस भी अफ्रीका में नए प्लेयर के रूप में उभरा है। चीन का ऑल वेदर फ्रेंड पाकिस्तान भी चैन से नहीं दिखता। आज की तारीख में पाकिस्तान का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड तालिबान नेता मुल्ला अब्दुल गनी बारादर हैं, जिनके गिर्द सत्ता की गोट बैठाई जा रही है। 24 अक्टूबर 2018 को तालिबान कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बारादर को पाकिस्तान की जेल से रिहा किया गया था। मुल्ला अब्दुल गनी बारादर आठ वर्षों तक पाकिस्तान की कस्टडी में थे। यह भी एक तथ्य है कि मुल्ला अब्दुल गनी बारादर के माध्यम से तालिबान के बाकी नेताओं को बातचीत के लिए राजी कराया गया था। इस वजह से यह खटका रहता है कि इमरान खान आने वाले दिनों में मुल्ला बारादर से अपनी दोस्ती का दुरुपयोग कश्मीर के लिए न करे। लेकिन क्या जरूरी है कि तालिबान केवल कश्मीर के लिए सोचे? वह अपना विस्तार पाकिस्तान में क्यों नहीं चाहेगा। चीन और पाकिस्तान कुछ विचित्र तरीके से अतिवादियों के बीच फंसे हुए हैं। शुक्रवार, 20 अगस्त 2021 को ग्वादर में एक बार फिर चीनियों पर आत्मघाती हमला हुआ है, जिसमें दो बच्चों की मौत हो गई और तीन घायल हैं। इसकी जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और मजीद ब्रिगेड ने ली है। पिछले महीने कराची में एक चीनी इंजीनियर को गोली मारी गई थी। 14 जुलाई 2021 को खैबर पख्तूनख्वा के कोहिस्तान में दासू डैम की ओर चीनी कर्मियों को ले जा रही बस पर आत्मघाती हमला हुआ था, जिसमें नौ चीनियों समेत 13 लोग मारे गए थे और 28 घायल हो गए। पहले इसे तोपने के वास्ते इमरान सरकार ने दुर्घटना बताया, बाद में चीनी दूतावास के विरोध करने पर उन्होंने आत्मघाती हमला स्वीकार किया। मगर फिर टोपी पहना दी ‘रा’ और अफगान इंटेलीजेंस एनडीएस (नेशनल डायरेक्टोरेट ऑफ सिक्योरिटी) को। चीनियों पर जब भी हमला होता है, अकर्मण्य पाकिस्तानी विदेश मंत्री सीधा भारत-अफगानिस्तान पर दोष चस्पा कर देने की आदत से लाचार रहे हैं। अब तो उन्हीं के हम प्याला-हम निवाला काबुल की सत्ता पर हैं।

 

जो कुछ काबुल में हो रहा है पाक रणनीतिकार इसे गेम चेंजर मानने लगे हैं। उन्हें लगता है, पाकिस्तान अब सीधा सेंट्रल एशिया से जुड़ जाएगा। उल्टा, सेंट्रल एशियाई देश उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान अफगान शरणार्थियों की बाढ़ को देखकर प्रकंपित हैं। उत्तरी अफगानिस्तान में अलगाववादी ग्रुप ‘इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेकिस्तान’ पनाह लिए हुए है, जो कभी आइसिस के साथ सीरिया और इराक में लड़ चुका है। आमू दरिया इलाके में ऐसे कई समूह सेंट्रल एशिया से 1990 और 2001 के बाद आकर जमे हुए थे। मगर, लाहौर, कराची, इस्लामाबाद में बैठे विश्‍लेषक मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखते हुए बोलने लगे हैं कि तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ शासन के जो मतभेद हैं, वाया काबुल उसे हम सुलझा लेंगे। टीटीपी के तीन प्रमुख बैतुल्ला मसूद (जो संस्थापक भी थे), अमरीकी हमले में मारे गए। उनके बाद के दो अमीर हकीमुल्ला मसूद और मौलाना फजुल्लाह भी अमरीकी ड्रोन हमले में मारे गए। यह पाक सेना-आईएसआई के साझा सहयोग का परिणाम था, इस बात को तहरीके तालिबान पाकिस्तान के नेता भूलते नहीं। पाक विश्‍लेषकों को पता होना चाहिए कि टीटीपी के सर्वेसर्वा अमीर नूर वली मसूद कई संगठनों को अपने से जोड़ने की कवायद में दिसंबर 2020 से लगे हैं। उनमें लश्करे झंगवी के अमजद फारूकी ग्रुप, करवान ग्रुप के मूसा शहीद, टीटीपी के मुल्ला महसूद, जमात उल अहरार के मोहमंद तालिबान और बजौर तालिबान को जोड़ने के पीछे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही है। कुछ दिन पहले हिज्ब-उल अहरार का टीटीपी में विलय हुआ है। उत्तर-पश्‍चिमी क्षेत्र में सक्रिय 'पश्तून तहफूज मूवमेंट' ने इमरान खान के विरुद्ध पिछले हफ्ते जबर्दस्त जुलूस निकाला था। अफगान गुरिल्ला ग्रुप 'हक्कानी नेटवर्क' भी इस्लामाबाद की सत्ता में साझेदारी चाहता है। ऐसे समूहों के अरमान तालिबान के दोबारा से आने के बाद जग गए हैं।

 

 

(कई देशी-विदेशी मीडिया  हाउस में काम कर चुके लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। संंप्रति ईयू-एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक)

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