मनोहर महाजन, मुम्बई:
एक जौहरी के परिवार में 6 जून 1918 को जन्मे फ़ारूक़ क़ैसर भारतीय हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार थे, जिन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह 1950 से 1980 के दशक के दौरान उन्होंने 115 से अधिक फिल्मों और 390 गीतों में योगदान दिया। वह 12 बच्चों के परिवार मे दूसरे सबसे बड़े होने वाले फ़ारूक़ की शिक्षा बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में हुई थी। अपने भाई-बहनों के विपरीत, फ़ारूक़ का दिमाग़ जिज्ञासु था और एक बच्चे के रूप में, 'किताबें' और 'समाचार पत्र' पढ़ने में उनकी गहरी रुचि थी। जब वह 18 वर्ष के थे, तब उनकी मां की मृत्यु हो गई। इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने अपने घर-परिवार को छोड़ दिया और एक दोस्त के टेलरिंग परिसर में रहने की जगह पाई। यहां उन्होंने अपना समय आगे की शिक्षा के लिए समर्पित किया: कविता, साहित्य, शैक्षिक पुस्तकों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और प्रिंट में उपलब्ध लगभग सभी चीजों में खुद को समर्पित कर दिया - साथ ही अपनी मूल उर्दू के अलावा अन्य भाषाएं भी सीखीं।
फ़ारूक़ का कविता के प्रति प्रेम और पड़ोसी कामरान ख़ान (फ़राह ख़ान और साजिद ख़ान के पिता) के साथ उनकी दोस्ती ने हिंदी सिनेमा के रचनात्मक कार्यों के लिए उनके उत्साह को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चूंकि कामरान खान फिल्मों के अभिनय और निर्माण से जुड़े हुए थे उन्होंने फ़ारूक़ को बॉलीवुड में एक सहायक निर्देशक के रूप में पेश किया जिसकी काम अक्सर संवादों को संशोधित करने और दृश्यों को सुधारने के लिए किया जाता था।उन्होंने इसे तब तक कई फिल्मों में अंजाम दिया जब तक कि उन्हें एक गीतकार के रूप में अपनी जगह नहीं मिल गई। अभिनेता कमल मोहन जो छह बेटों और एक बेटी के पिता थे, फ़ारूक़ के बहुत अच्छे दोस्त थे। कमल मोहन ने अपनी बेटी आयशा का हाथ अपने प्रिय और विश्वासपात्र मित्र फ़ारूक़ के हाथ मे देने का प्रस्ताव किया- जिसे उसने फ़ौरन स्वीकार कर लिया। उनकी एंगेजमेंट हो गई। दोनों एक दूसरे से दीवानावार प्यार करने लगे।तभी उनकी होने वाली बीवीआयशा को तपेदिक ने घेर लिया और एक साल के लिए उन्हें बॉम्बे में अस्पताल रखा गया । इसी पीड़ामय हालात में उन्हें 'अजी बस शुक्रिया' (1958) के लिए गीत लिखने का अवसर मिला।
इसी फिल्म के एक गीत "सारी सारी रात तेरी याद सताए ..." फ़ारूक़ क़ैसर ने अपना सारा दर्द उड़ेल दिया। 1959 में अस्पताल से छुट्टी मिलने के तुरंत बाद उन्होंने शादी कर ली। इस एक ही फ़िल्म ने फ़ारूक़ को गीतकारों की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया। अपनी पत्नी और जीवन साथी आयशा को वो अपना 'लकी चार्म' मानने लगे। 1963 में एक शूटिंग के दौरान, उन्होंने उन्ही को याद करते हुए फिल्म पारसमणि (1963) के लिए 'ओई मा ओई मा ये क्या हो गया ...' गीत लिखा था। फ़ारूक़ और आयशा के तीन बच्चे थे- एक बेटा, शकील और दो बेटियां - बिलकिस और तबस्सुम फ़ारूक़ क़ैसर का निधन 10 नवंबर 1987 को मुंबई में हुआ था।
फारुक कैसर के कुछ दिलकश गाने
◆सारी सारी रात तेरी याद सताए... अजी बस शुक्रिया (1958)
◆दिल लूटनेवाले जादूगर... मदारी (1959)
◆आगर मैं पूछूं जवाब दोगे... शिकारी (1963)
◆ओई मां ओई मां, ये क्या हो गया... पारसमणि (1963)
◆चोरी चोरी जो तुमसे मिली... पारसमणि (1963)
◆तेरी नज़र ने किया क्या इशारा ... जलसाज़ (1969)
◆तुम को पिया दिल दिया कितने नाज़ से..
शिकारी (1963)
◆चमन के फूल भी तुझे गुलाब कहते हैं...
शिकारी (1963)
◆औवा औवा कोई यहां आहा नाचे नाचे..
डिस्को डांसर (1982)
◆ज़िद ना करो अब तो रुको... लहू के दो रंग (1979)
◆मौसम मस्ताना है दिल दीवाना है... लालाच (1983)
◆नज़र भी खोई है कदम भी दगमगाये है...
मदारी (1959)
◆आई सावन रूथ मलिका... सलोमी (1953)
◆नज़र में बिजली अदा में शोले... प्रिंस (1969)
◆तुझे पे कुर्बान मेरी जान... कुर्बानी (1980)
◆संभल के बैठो जरा ... रूप लेखा (1962)
◆महफ़िल में तेरे हुसैन का दीवाना कौन...
रूप लेखा (1962)
◆हम भी तुम्हारे हैं दिल भी तुम्हारा है...
सखी लुटेरा (1955)
◆तू जान से प्यार है...सत्यमेव जयते (1987)
(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।