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निशिकांत दूबे पर FIR मामले में देवघर DC को शो-कॉज, निर्वाचन आयोग ने तीखे सवालों का मांगा जवाब

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द फॉलोअप टीम, देवघर: 

26 अक्टूबर को देवघर डीसी व निर्वाचन अधिकारी मंजूनाथ भजंत्री ने गोड्डा सांसद पर एक, दो या तीन नही बल्कि 5 एफआईआर दर्ज करवा दिए। अब इस एफआईआर पर चुनाव आयोग सवाल उठा रहा है। चुनाव आयोग ने मंजूनाथ भजंत्री को शो-कॉज किया है। 

गौरतलब है कि आयोग ने देवघर DC से पूछा है कि आदर्श आचार संहिता उल्लंघन मामले में गोड्‌डा सांसद पर 6 महीने बाद क्यों FIR दर्ज कराई गई है? आयोग ने DC से कारण बताने के लिए कहा है कि आखिर मौखिक तौर BDO से केस दर्ज कराने के लिए किस आधार पर कहा गया? जहां आचार संहिता लागू नहीं था उस क्षेत्र के थानों में भी केस क्यों दर्ज कराया गया? FIR करने से पहले आयोग को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई? जवाब मांगा गया है। 

क्या है पूरा मामला
दरअसल, मधुपुर विधानसभा उप-चुनाव के दौरान सांसद ने DC की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कई पोस्ट किए थे। उन्हीं को आधार बनाते हुए नगर थाना, देवीपुर थाना, बुढैई थाना, मधुपुर थाना और चितरा थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। आयोग ने मामले को गंभीरता से लिया है। झारखंड के मुख्य निवार्ची पदाधिकारी को इलेक्शन कमिशन ऑफ इंडिया के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने DC से 7 दिन के भीतर जवाब पूछने को कहा गया है। 10 दिन के भीतर राज्य के मुख्य निवाची पदाधिकारी को भी यह जवाब सब्मिट करने के लिए कहा है।

इनके बयान के आधार पर प्राथमिकी
गौरतलब है कि  सभी प्राथमिकी अलग-अलग अधिकारियों के बयानों के आधार पर दर्ज करवाई गई है। मधुपुर उपचुनाव के दौरान सांसद निशिकांत दूबे ने उपायुक्त की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुए कई ट्वीट किये थे। सिटी थाना में डीपीआरओ रवि कुमार के बयान पर, देवीपुर में देवीपुर बीडीओ अभय कुमार के बयान पर 2 प्राथमिकी दर्ज की गई है। मधुपुर थाना में बीडीओ राजीव कुमार सिंह के बयान पर वो चितरा थाना में सारठ बीडीओ पल्लवी सिन्हा के बयान पर प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है। 

कारण साक्ष्य पर आधारित नहीं है 
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के प्रमुख सचिव अरविंद आनंद ने झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को जो पत्र भेजा है, उसमें देवघर के उपायुक्त की कार्यवाही पर गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं। पत्र में कहा गया है कि देवघर के उपायुक्त सह जिला निर्वाचन अधिकारी मंजूनाथ भेजंत्री द्वारा 26 अक्टूबर के पत्रांक 2472 और 27 अक्टूबर के पत्रांक 2497 के साथ सौंपे गये दस्तावेज से स्पष्ट होता है कि एफआइआर दर्ज कराने में हुई देरी का उनके द्वारा बताया गया कारण साक्ष्य पर आधारित नहीं है और इसलिए उनसे स्पष्टीकरण पूछा जाना चाहिए।