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विडंबना: हिंदुस्तान में रहे सेकुलरिज्‍म और आस-पड़ोस में चाहिए इस्लामिक स्टेट!

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तनवीर आलम, मुंबई:

भारतीय मुसलमानों को तालिबान के मामले में कोई भी राय बनाने से पहले अपनी स्थिति को समझना होगा। एक आम भारतीय होने के नाते हमारे देश पर इनके आने से क्या प्रभाव पड़ेगा ये हमारे लिए ज़्यादा महत्पूर्ण है बजाए इसके कि कोई कट्टर इस्लामिक स्टेट पड़ोस में पैदा हो गया। पाकिस्तान हम से ही अलग होकर एक इस्लामिक स्टेट बना और पिछले 75 सालों में उनसे हमारे कैसे रिश्ते रहे ये जग जाहिर है। कोई भी मुल्क अपने मफ़ाद को आगे रखता है और फिर वैसी ही पालिसी बनाता है। ये सरकारों का काम है कि वो किसी मुल्क से कैसे तालुकात रखता है। हम अपने मुल्क के मफ़ाद के साथ खड़े हैं ये स्पष्ट रहना चाहिए। धार्मिक कट्टरता वाली सरकार या संगठन चाहे हमारे मुल्क में हो, चाहे हमारे पड़ोस में हो या दुनिया में कहीं हो हम उसके विरोध में खड़े रहेंगे। यही हमारे मुल्क के आईन की रूह है और यही इंसानी उसूल भी।


हिंदुस्तानी मुसलमानों के एक बड़े हिस्से का अलमिया ये है कि उसको हिंदुस्तान में तो चाहिए शुद्ध सेकुलर स्टेट और आस पड़ोस में चाहिये इस्लामिक स्टेट। ऐसे लोगों को हिंदुस्तान में तो सेकुलरिज्‍म चाहिए। लेकिन सेकुलरिज्‍म मज़बूत कैसे होगा उसके लिए कुछ नहीं करेंगे। अब तो ओवैसी छाप पढ़े लिखे मुसलमान भी सेकुलरिज्‍म को गाली बकते और लान-तान करते नज़र आते हैं। अरे भाई शुक्र मनाओ यहां के हिंदुओं का जो अपनी बिसात भर आपकी लड़ाई लड़ते रहा है वरना मौजूदा सरकार 14% को रोहिंग्या बनाने में कोई कसर नहीं छोड़े। ये जो बोलने की भी आज़ादी है वो भी सेकुलरिज्‍म की देन है वरना एहसास ए कमतरी का शिकार होकर कहीं सिकुड़े हुए नज़र आते। मैं देश भर घूमते रहता हूं और खूब अच्छे से जानता हूं मुसलमान आज या तो अपने मोहल्ले में उछल कूद करेगा या सोशल मीडिया पर। और ऐसी हालत हुई क्यों वो सोचने को तैयार नहीं। ऐसी हालत से निकला कैसे जाएगा उसकी कोई तैयारी नहीं। उल्टे जो लोग लड़ रहे हैं उन्हें सेक्युलर, लिबरल, वामपंथी बोलकर कटाक्ष करते हैं। ये लोग  कभी हागिया साफिया पर कूदेगा तो कभी तालिबान के अफ़ग़ान विजय पर। बहस ऐसे करेंगे जैसे सारी दुनिया की जानकारी हो और सच ये है कि वास्तविकता और व्यवहारिकता से कोसों दूर हैं।

 

मुझे मालूम है ऐसे लोगों से किसी बदलाव की उम्मीद नहीं लेकिन नौजवानों को ऐसे लोगों के प्रभाव में नहीं आना चाहिए। मुस्लिम नौजवानों को चाहिए अपने मुल्क के सेकुलर ढांचे को मजबूत करने में अपना योगदान करे। आस-पास की घटनाओं पर नज़र ज़रूर रखिये लेकिन प्रतिक्रिया नपी तुली दीजिये। आपकी प्रतिक्रिया को नोटिस किया जाता है और उसपर फिर बहुत सारे सियासी नैरेटिव भी बनते हैं।

(लेखक गांधीवादी हैं। महाराष्ट्र एल्‍युमनी एसोसिएशन के अध्‍यक्ष हैं। मूलत: बिहार के रहने वाले।संप्रति मुंबई में रहकर स्‍वतंत्र लेखन )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।