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राज कपूर के पहले संगीत निर्देशक राम गांगुली, जिनके लिए 'जिया बेक़रार है...'

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मनोहर महाजन, मुंबई:  

संगीत निर्देशक राम गांगुली "पृथ्वी थिएटर्स" में एक प्रसिद्ध सितार वादक और संगीत निर्देशक थे। उन्हें असिस्ट किया करते थे बांसुरी और शहनाई पर रामलाल। तबले एवं ढोलक पर शंकर. और हारमोनियम पर जयकिशन। बाद में उनके ये तीनो असिस्टेंट स्वतंत्र संगीतकार बने एवं आपार लोकप्रियता अर्जित की। पृथ्वीराज कपूर के सुझाव पर राज कपूर ने अपनी पहली  फ़िल्म 'आग' के लिए राम गांगुली को संगीत निर्देशक के रूप में लिया। संगीत काफी हिट हुआ। 1948 में एक दिन बंबई फ़ेमस महालक्ष्मी के रिकॉर्डिंग स्टूडियो में संगीत निर्देशक अनिल विश्वास के लिए लता मंगेशकर एक गाना रिकॉर्ड कर रही थीं। अनिल दा ने राज कपूर (जो अपनी अगली फिल्म 'बरसात' के लिए किसी नई गायिका की तलाश कर रहे थे) को लता जी की आवाज़ सुनने के लिए आमंत्रित किया। राज कपूर ने लता जी को सुना और चले गए। अगले दिन अनिल दा ने लता को फ़ोन किया और कहा कि राज कपूर ने उन्हें अपने कार्यालय में बुलाया है।

जिया बेकरार है,छाई बहार है....

दूसरे दिन लताजी तय समय पर राज कपूर के ऑफिस पहुंची। राज कपूर ने लता से कहा : "मैं चाहता हूं कि आप मेरी फिल्म के लिए गाएं, मैं जानना चाहता हूँ कि आपकी फ़ी क्या होगी?" लता जी ने जवाब दिया: "जो भी राशि आप तय  करेंगे मुझे स्वीकार्य होगी। "उन्होंने उसी समय 500 रुपये लता जी को दे दिए और ."..जिया बेकरार है,छाई बहार है.. गीत का "पूर्वाभ्यास" करने का अनुरोध किया, जो हसरत जयपुरी का लिखा हुआ था। यहां बता दूँ कि फ़िल्म 'बरसात' के लिए राम गांगुली बतौर संगीत निर्देशक साइन किये जा चुके थे और उस समय की मशहूर फिल्म-मेगज़ीन 'फ़िल्म-इंडिया' में इसकी घोषणा भी हो चुकी थी। इस फ़िल्म में शंकर और जयकिशन राम गांगुली के संगीत सहायक थे और बहुत हद तक  "जिया बेक़रार है" की धुन के सर्जक थे।

1947 से 1974 तक का  सफ़र

गाने के पूर्वाभ्यास पर शंकर तबके पर और जयकिशन हारमोनियम पर थे। लता जी गाने की रिहर्सल करने लगीं। पर इस पहले गीत-सत्र में ही राज कपूर का राम गांगुली से मतभेद हो गया। राज कपूर ने उसी समय निर्णय लिया कि फिल्म के लिए संगीत-निर्देशक शंकर-जयकिशन होंगे न कि राम गांगुली, इस तथ्य के बावजूद कि राम गांगुली ने राज साहब की डेब्यू फिल्म'आग' में सुपरहिट म्यूज़िक दिया था।  राज कपूर द्वारा शंकर जयकिशन को स्वतंत्र संगीतकार लेने का यह एक 'ऐतिहासिक फ़ैसला' था जिसने आने वाले समय में संगीत और आर.के.फिल्म्स की दिशा,एवं दशा दोनों ही बदल दीं। राम गांगुली ने अच्छा संगीत देने का सिलसिला जारी रखा लेकिन बड़े बैनरों के समर्थन की कमी और अच्छी फिल्मों के न मिलने के कारण उन्हें वो सफलता न मिल पाई जो फ़िल्म आग में मिली थी। 1947 से शुरु हुआ उनका सफर 1974 में उनकी अंतिम फ़िल्म सुहानी रात के साथ ही सिमट गया। पर फ़िल्म संगीत में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।