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मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना !

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ध्रु्व गुप्‍त, पटना:

अपने निजी जीवन में उदास, खंडित और रहस्यमय किशोर कुमार (4 अगस्‍त 1929 -13 अक्‍टूबर 1987) रूपहले परदे के ऐसे पहले अदाकार थे जिनके पास अपने समकालीन अभिनेताओं के बरक्स मानवीय भावनाओं और विडंबनाओं को अभिव्यक्त करने का एकदम अलग-सा खिलंदड़ा अंदाज़ था। वे सिनेमा के ऐसे विदूषक थे जो त्रासद से त्रासद परिस्थितियों को एक हंसते हुए बच्चे की मासूम निगाह से देख सकते थे। ऐसे नायक थे जिन्होंने नायकत्व की स्थापित परिभाषाओं को बार-बार तोडा। हाफ टिकट, चलती का नाम गाड़ी, रंगोली, मनमौजी, झुमरू, दूर गगन की छांव में, दूर का राही, पड़ोसन जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय के नए मुहाबरों से हमें परिचित कराया । वे ऐसे गायक थे जिनकी आवाज़ में शरारत भी थी, संज़ीदगी भी और बेपनाह दर्द भी।

 

उनके कुछ गीत - छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं, कोई हमदम न रहा,ठंढी हवा ये चांदनी सुहानी,ये रातें ये मौसम नदी का किनारा, दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना, तेरी दुनिया से होके मजबूर चला, पल पल दिल के पास तुम रहती हो, फूलों के रंग से दिल के कलम से, हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते,मेरे नैना सावन भादों, ओ मेरी प्यारी बिंदु, जीवन से भरी तेरी आंखें, चिंगारी कोई भड़के, ये क्या हुआ कब हुआ कैसे हुआ, ये शाम मस्तानी, ये जो मुहब्बत है ये उनका है काम, रिमझिम गिरे सावन, मुसाफिर हूं यारों, ज़िंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम, तुम बिन जाऊं कहां, दीवाना लेके आया है दिल का तराना, मेरे महबूब क़यामत होगी, दिल आज शायर है, शोख़ियों में घोला जाय फूलों का शबाब, छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा जैसे सैकड़ों गीत हमारी संगीत विरासत का अहम हिस्सा हैं। किशोर दा हिंदी सिनेमा के सबसे अबूझ और विवादास्पद व्यक्तित्व रहे जिनकी एक-एक अदा, जिनकी एक-एक हरकत उनके जीवन-काल में ही किंवदंती बन गईं।

 

नायकत्व की स्थापित परिभाषाओं को बार-बार तोडा

अपने सार्वजनिक जीवन में बेहद चंचल, खिलंदड़े, शरारती और निजी जीवन में बहुत उदास,खंडित और तन्हा किशोर कुमार रूपहले परदे के सबसे रहस्यमय और सर्वाधिक विवादास्पद व्यक्तित्वों में एक रहे हैं। बात अभिनय की हो तो वे अपने समकालीन दिलीप कुमार, राज कपूर, देवानंद, अशोक कुमार जैसे अभिनेताओं की तुलना में कहीं नहीं ठहरते, लेकिन वे ऐसे पहले अदाकार थे जिनके पास अपने समकालीन अभिनेताओं के बरक्स मानवीय भावनाओं और विडंबनाओं को अभिव्यक्त करने का कुछ अलग-सा खिलंदड़ा अंदाज़ था। हिंदी सिनेमा के वे ऐसे नायक थे जिन्होंने नायकत्व की स्थापित परिभाषाओं को बार-बार तोडा। वे ऐसे विदूषक थे जो जीवन की त्रासद से त्रासद परिस्थितियों और विडम्बनाओं को एक हंसते हुए बच्चे की मासूम निगाह से देख सकते थे। हाफ टिकट, चलती का नाम गाड़ी, रंगोली, दूर का राही, मनमौजी, झुमरू, दूर गगन की छांव में, पड़ोसन जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय के नए अंदाज़ और नए मुहाबरों से हमें परिचित कराया। 

 

अभिनय से ज्यादा गायन से मिली मिली शोहरत

अभिनय से ज्यादा स्वीकार्यता उन्हें उनके गायन से मिली। उनकी आवाज़ में शरारत भी थी, शोख़ी भी, चुलबुलापन भी, संज़ीदगी भी, उदासीनता भी और बेपनाह दर्द भी। मोहम्मद रफ़ी के बाद वे अकेले गायक थे जिनकी विविधता सुनने वालों को हैरत में डाल देती है। 'ओ मेरी प्यारी बिंदु' की शोख़ी, 'ये दिल न होता बेचारा' की शरारत, 'ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना' की मस्ती, 'ये रातें ये मौसम नदी का किनारा' का रूमान ,'चिंगारी कोई भड़के' का वीतराग, 'सवेरा का सूरज तुम्हारे लिए है' की संजीदगी, 'घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं' की निराशा, 'कोई हमदम न रहा' की पीड़ा, 'मेरे महबूब क़यामत होगी' की हताशा, 'दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना' का वैराग्य - भावनाओं की तमाम मनःस्थितियां एक ही गले में समाहित ! उनके गाए सैकड़ों गीत हमारी संगीत विरासत का अहम हिस्सा हैं। 

(लेखक IPS अधिकारी रहे हैं।  स्‍वेच्‍छा से रिटायरमेंट लेने के बाद पटना में रहकर संप्रति स्‍वतंत्र लेखन। कई किताबें प्रकाशित )