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वेबीनार में वक्ता बोले, मातृभाषा के बिना समाज और देश का विकास संभव नहीं

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द फॉलोअप टीम, रांची:
रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि मातृभाषा के बिना समाज और देश का विकास संभव नहीं है। मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम से हम समाज और देश को तेजी से विकसित कर सकते हैं। वो "नयी शिक्षा नीति और मातृ भाषाओं की प्रासंगिकता : वर्तमान परिपेक्ष में" विषय पर हुए वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने झारखंड सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया, जिसमें मातृभाषा में शिक्षा की बात कही गई है। 



आरयू के टीआरएल ने किया था वेबीनार
राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन आरयू के टीआरएल विभाग ने ही किया था। जिसका संचालन प्राध्यापक डॉ उमेश नंद तिवारी ने और धन्यवाद ज्ञापन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने किया। सूरत, गुजरात के गुजराती भाषा के ज्ञाता, विद्वान डॉ विक्रम चौधरी ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति से हमारी मातृभाषाओं की दशा व दिशा तय होगी। 

नई शिक्षा नीति में भाषा की शक्ति को पहचाना
दिल्ली के  वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक और भाषाविद् डॉ अशोक बाखला ने कहा कि सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के तहत मातृ भाषाओं में शिक्षा देने को अनिवार्य करना काफी सराहनीय कदम है। हमारे संविधान की धारा 343, 346 और 347 में भाषा की उपयोगिता के बारे में लिखा है। सिद्दू कान्हू बिरसा यूनिवर्सिटी, पुरुलिया, पश्चिम बंगाल के प्रो ठाकुर प्रसाद मुर्मू ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भाषा की शक्ति को पहचाना गया है।



सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना का प्रयास
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र की वरीय शोधार्थी दीप्ति एक्का ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। वेबिनार का विषय प्रवेश कराते हुये प्राध्यापक डाक्टर बीरेन्द्र कुमार महतो ने कहा कि हमारे जीवनमूल्य एवं छूटती सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना के प्रयास की नयी शिक्षा नीति आत्मा है। शोधार्थी योगेश कुमार महतो और विजय कुमार साहू ने भी विचार व्यक्त किए।