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डोंबारीबुरु की बिरसा प्रतिमा जीर्णशीर्ण, निगरानी करने वाले को 1997 से नहीं मिला पैसा-दीपंकर भट्टाचार्य 

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द फॉलोअप टीम, रांची:

झारखंड के सबसे गौरवपूर्ण भूमि धरती आबा बिरसा मुंडा की युद्ध स्थली, डोंबारीबुरु सबसे अधिक उपेक्षित है। बिरसा की मूर्ति जीर्णशीर्ण अवस्था में है। देख रेख के काम में लगाए गए बिशु मुंडा की न्यूनतम मजदूरी भी वर्ष 1997 से बकाया है। ना सरकार और ना ही अधिकारी ही कोई सुधि ले रहे हैं। उक्त आरोप भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने लगाया है। वह बिरसा जयंती के दूसरे दिन उलीहातू पहुंचे थे।

 

 

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर विकृत करने का प्रयास

दीपंकर बोले कि स्वतंत्रता संग्राम की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर जब अमृतमहोत्सव मनाई जा रही है तब वीर बिरसा के संघर्ष और बलिदान को याद करना ही होगा। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ पंजाब में लड़ाकू योद्धा भगत सिंह और जलियांवाला बाग की शहादत है तो झारखंड में वीर बिरसा और सिद्धू कान्हु के संघर्ष की धरती डोंबारीबुरू और भोगनाडीह है। भाजपा का अमृतोत्सव स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को तोड़ मरोड़ विकृत तरीके से पेश करने की कोशिश है। आजादी भीख से नहीं शहीदों की संघर्ष और शहादत से मिली है। बिरसा की गिरफ्तारी के समय डोंबरीबुरू में सिर्फ छः नहीं बल्कि एक सौ से अधिक आंदलनकारियों की हत्या के बाद मिली है।

 

पत्थलगड़ी आदिवासी विद्रोह के प्रतीक

दीपंकर भट्टाचार्य बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू पहुंचे सर्वप्रथम बिरसा मुंडा के पैतृक निवास में बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद बिरसा मुंडा युद्ध स्थली डोंबारी गुरु पहुंचे। वहां से लौटते समय जानूमपीड़ी, आयुबहातुसमेत कई गांवों में ग्रामीणों द्धारा किए गए पत्थलगडी स्थल को देखे और उसमें लिखे पक्तियों को पढ़ने के बाद उपस्थित ग्रामीणों के बीच अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि रघुवर सरकार तो चली गई पर पत्थलगड़ी आज भी गांवों में मौजूद है। जिसपर संविधान प्रदत्त आदिवासी अधिकारों को अंकित किया गया है। यह कहीं से देशद्रोह का मामला नहीं है। त्थलगड़ी आदिवासी विद्रोह के सबूत हैं।