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प्रश्न भाषा: एक तरफ अपने तो दूसरी ओर कांग्रेस और राजद, किस ओर जायेंगे हेमंत सोरन

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द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के लिए ये परीक्षा की घड़ी है। ये वक्त ऐसे इम्तिहान देने का है, जिसमें बड़े- बड़े राजनीतिज्ञ फेल कर जाते हैं। अब इस परीक्षा की घड़ी में राज्य में हेमंत सोरेन की बारी है। उन्हें अपने एक ही फैसले से उसके समर्थक और विरोधी दोनों को खुश करना है। दरअसल झारखंड भले ही पहले बिहार का हिस्सा रहा हो, लेकिन अलग राज्य का गठन होने के बाद यहां भीतरी-बाहरी का विवाद अक्सर तूल पकड़ता है। कुछ ऐसा ही नियुक्तियों के लिए स्थानीय भाषाओं के नीति निर्धारण में भी हो रहा है। राज्य सरकार ने हाल ही में पूर्व में जारी किए गए आदेश में संशोधन करते हुए बिहार में प्रचलित मगही, भोजपुरी और अंगिका को भी जोड़ा है। सरकार के इस आदेश के बाद कई जगह पर भाषा को जिला स्तरीय नियुक्तियों से हटाने की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है। इस आंदोलन को तब बल और मिल गया जब राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने सरकार को अपने फैसले पर फिर से विचार करने को लेकर सीएम को पत्र लिख दिया है।


कांग्रेस के दबाव से संशोधन
संशोधन के पीछे सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस और राजद का दबाव बताया जाता है, लेकिन इस निर्णय पर अंतर्विरोध भी है। महतो ने तर्क दिया है कि बोकारो और धनबाद की जिला स्तरीय नियुक्तियों में मगही और भोजपुरी को शामिल करना ठीक नहीं है। इस पत्र से इस विवाद के और तूल पकड़ने के आसार हैं।


नहीं हुआ तो भाजपा का होगा फायदा
कांग्रेस का आधार इन भाषाओं का प्रयोग करने वाले जिलों में है और पार्टी इसे हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। अगर इस दिशा में संशोधन नहीं होता तो भाजपा को राजनीतिक तौर पर लाभ मिलता। वहीं कांग्रेस के कई विधायक सरकार के फैसले से पूरी तरह खुश नहीं हैं, उनका मानना है कि जिला स्तरीय नियुक्तियों के साथ साथ राज्य स्तरीय नियुक्तियों में भी इन भाषाओं को जगह देनी होगी। वहीं भाजपा सरकार पर इस मुद्दे को लेकर पहले से ही तुष्टीकरण का आरोप लगी रही है। भाजपा का आरोप है कि सरकार तुष्टिकरण की नीति अपना रही है। यही वजह है कि एक खास तबके को खुश करने के लिए उर्दू को शामिल किया गया है।


 

सभी को वोट बैंक की चिंता
राज्य में सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष हर किसी को अपनी वोट बैंक की चिंता सता रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते किसी भी वर्ग पर खास मेहरबानी नहीं दिखाना चाहती वहीं उर्दू को शामिल करने को लेकर सत्ता पक्ष इसे अपना बड़ा दाव मान रही है। जेएमएम नेताओं का मानना है कि माटी की पार्टी अगर इन भाषाओं को बराबर की तर्जी देगी तो एक बड़ा वर्ग उनसे नाराज हो जायेगा। वहीं कांग्रेस को लगता है कि इन भाषाओं का राज्य में बड़ा वोट बैंक है, जिसमे कांग्रेस का भी वोट है, और पार्टी वहां पार्टी का बड़ा जनाधार भी है। अब देखना होगा की राज्य के सीएम हेमंत सोरेन क्या फैसला लेते हैं या फिर इसे सरकार फिलहाल टालने की कोशिश करेगी।