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ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विरोध का हथियार बनी थी इक़बाल की रचना: डॉ. एम. एन. जुबैरी

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द फॉलोअप टीम, रांची: 
शिक्षाविद् डॉ. एम. एन. जुबैरी ने कहा कि ‘‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा’’ जैसी बेमिसाल नज़्म भारत की स्वतंत्रता के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विरोध का हथियार बनी। उसके रचयिता अल्लामा इकबाल की शायरी और उनके फिक्र को समझने के लिए हमें इतिहास के पन्ने उलटने होंगे।क्योंकि कोई भी फ़नकार अपने आस-पास जो कुछ देखता है उसे ही अपनी कविता व लेखनी में पिरोता है। उक्त बातें  डॉ. एम. एन. जुबैरी ने आज आजद बस्ती स्थित रेड सी इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित ‘‘जश्न-ए-इक़बाल’’ कार्यक्रम में कही। इकबाल जयंती व विश्व उर्दू दिवस के अवसर पर इसका आयोजन अल्लामा इकबाल फाउण्डेशन, रांची ने किया था।

डॉ. एम. एन. जुबैरी ने बताया कि इक़बाल ने उर्दू में बांग-ए-दरा, बाल-ए-जिबरील, ज़रबे कलीम और अरमुग़ान-ए-हिजाज़, फारसी में असरारे खुदी, रूमूज-ए-बेखुदी, प्याम-ए-मश्रिक, जुबुर-ए-अजम, पस चे बायद कर्द, जावेद नामा तथा इंगलिश में ‘‘दि रि-कंस्ट्रक्शन आॅफ रिलिजियस थाउट इन इस्लाम’’ इत्यादि किताबें लिखीं, जो अपनी ख्याति व विश्वसनियता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इनमें से कई किताबों के अंग्रेजी, जर्मनी, फ्रांसिसी, चीनी, जापानी और दूसरी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। 

कार्यक्रम की शुरुआत इक़बाल आदिल की तिलावते से हुई। सीबान हुसैन ने इकबाल की प्रसिद्ध रचना ‘‘खुदी का सिर्रे निहाँ ....’’ मनमोहक आवाज़ में सुनाई। ऐनुल हक ने ‘‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा’’ को स्वर दिया। शकील अख्तर ने इकबाल की जीवनी पर प्रकाश डाला। मुजाहिद इस्लाम ने धन्यवाद ज्ञापन किया। मौके पर मो. असदुल्लाह, मो. असदुल्लाह, मो. सलाहउद्दीन, एनायत करीम, अफरोज अंसारी, शोऐब रहमानी, तनवीर अहमद, कैसर हयात, मो. खलील आदि मौजूद थे।