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एक ट्वीट पर मदद को हाजिर हो जाते हैं रामगढ़ SP प्रभात कुमार, द फॉलोअप के जरिये दिया खास संदेश

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द फॉलोअप टीम, डेस्क: 

ये पुलिस अधीक्षक एक बीमार और चोटिल बच्ची के घर पहुंच जाते हैं। फल और दवाइयां लेकर। बच्ची जिसका इलाज उन्होंने खुद कराया है। एक गरीब बच्चे के हाथ में नया स्मार्टफोन आ जाता है ताकि वो ऑनलाइन क्लास कर सके। उसकी पढ़ाई में कोई बाधा ना हो, ये सुनिश्चित करते हैं ये पुलिस अधीक्षक। एक मेधावी बच्चा 10वीं बोर्ड परीक्षा में टॉप करने के बाद घबराया हुआ है कि अब उसकी पढ़ाई छूट जायेगी तभी उसके पास तकरीबन 20 हजार रुपये की पाठ्य सामग्री पहुंच जाती है। इस बच्चे की उम्मीदों को जिंदा रखता है एक पुलिस अधीक्षक। इस पुलिस अधीक्षक का नाम प्रभात कुमार है। प्रभात कुमार झारखंड के रामगढ़ जिले में पदस्थापित हैं। इन्होंने ऐसे काम किये हैं कि आप पुलिस की अपनी बनी-बनाई छवि को भूल जायेंगे। 

सामुदायिक पुलिसिंग में उदाहरण पेश किया है
रामगढ़ जिला के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने सामुदायिक पुलिसिंग के क्षेत्र में ऐसा काम किया है कि जानकर आप भी वाह कहे बिना नहीं रह सकेंगे। उनके काम करने का अंदाज आपको दीवाना ना बना दे तो कहियेगा। प्रभात कुमार कोई एक्सट्रा एफर्ट नहीं लगा रहे, बस कर्तव्यनिष्ठा और दृढ़ इच्छाशक्ति से वो कर जा रहे हैं जिसे अब तक केवल इवेंट्स में औपचारिकता के तौर पर भाषणों के रूप में दोहराया भर जाता था। आप केवल कहने से क्यों मानेंगे। कोई बात नहीं। यहां हम तीन कहानियां पेश करेंगे जो सच्ची हैं। इससे आपको अंदाजा हो जायेगा कि एसपी प्रभात कुमार कैसे लोगों की सुरक्षा करने के साथ-साथ उनकी जिंदगी में नया सवेरा ला रहे हैं। चलिये शुरुआत करते हैं। 

नन्हीं सुमित्रा कुमारी को दिया हौसलों का पंख
रामगढ़ जिला के पांकी पंचायत स्थित चिट्टो गांव में सुमित्रा कुमारी नाम की बच्ची रहती है। 6 साल पहले बच्ची एक दुर्घटना का शिकार हो गई थी। ट्रैक्टर ने सुमित्रा का पैर कुचल दिया था। पिता चमन गंझू रांची में रेजा-कुली का काम करते हैं। किसी तरह दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने वाला परिवार बच्ची का महंगा इलाज कैसे करवाता। इलाज के अभाव में बच्ची का पैर खराब होने लगा। घाव सड़ने लगा। इस बीच हिंदी दैनिक अखबार दैनिक भास्कर में बच्ची की दशा बताते हुये रिपोर्ट छपी।

समाजसेवी अनुप कुमार सिंह ने दी थी जानकारी
जिले के समाजसेवी अनुप कुमार ने खबर पढ़ी और बच्ची की तस्वीर और खबर को ट्वीट किया।ट्वीट में पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार को भी टैग किया। एसपी प्रभात खबर को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली, उन्होंने बच्ची के परिवार से संपर्क स्थापित किया और बच्ची को रिम्स में भर्ती करवाया। चिकित्सकों का निर्देश दिया कि बच्ची के इलाज में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। 2 लोगों को वहां तैनात भी किया ताकि बच्ची के इलाज की मॉनिटरिंग की जा सके।
 
सुमित्रा के इलाज और दवाइयों का पूरा खर्च उठाया
आप जानकर हैरान होंगे कि केवल बच्ची को भर्ती करवाकर ही एसपी ने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर ली बल्कि इलाज का खर्च, दवाइयां, फल, टॉनिक, भोजन और कपड़ा भी बच्ची को मुहैया करवाया। अब भी एसपी प्रभात कुमार उपरोक्त सामग्री बच्ची तक पहुंचाते हैं। हाल ही में एसपी प्रभात कुमार खुद चट्टो गांव पहुंचे थे। पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने इस बार खुद बच्ची को फल और दवाई दी। एसपी ने परिवार से कहा कि यदि बेहतर इलाज के लिए वे बच्ची को दिल्ली ले जाना चाहें तो वो भी किया जायेगा। प्रभात कुमार ने परिजनों को आश्वासन दिया है कि बच्ची का नामांकन कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में करवाया जायेगा। बच्ची का दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने और दिव्यांगता पेंशन शुरू करने का आश्वासन भी पुलिस अधीक्षक ने परिजनों को दिया है। बच्ची का आधार कार्ड भी बनेगा। 

सागर नायक की जिंदगी में एसपी लाये नया सवेरा
पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार के प्रयासों से सागर नायक की जिंदगी में भी नया सवेरा हुआ। सागर रामगढ़ जिला के हुडूमगड़ा का रहने वाला है। 10वीं की परीक्षा में सागर ने टॉप 10 में स्थान हासिल किया था। 10वीं में टॉप करने के बाद भी सागर को भविष्य अंधकारमय दिख रहा था। आर्थिक तंगी की वजह से सागर की आगे की पढ़ाई संभव नहीं थी। सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये किसी तरह ये जानकारी पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार को मिली। उन्होंने तुरंत सागर और उनकी मां को पुलिस अधीक्षक कार्यालय रामगढ़ बुलाया। भरोसा दिया कि सागर की पढ़ाई नहीं छूटेगी। बाद में एसपी प्रभात कुमार खुद सागर के घर पहुंचे और तकरीबन 20 हजार रुपये की पाठ्य सामग्री भेंट की। पुलिस अधीक्षक की तरफ से सागर को समय-समय पर ट्यूशन फीस भी दी जाती है। सागर बेहतर भविष्य के सपने बुन रहा है। 

मासूम किशन कुमार को दिलाया नया स्मार्टफोन
हाथों में पॉपकॉर्न और चने का पैकेट एक प्लास्टिक बैग में लेकर छोटा सा बच्चा भुरकुंडा की सड़कों पर घुमता था। बच्चे का नाम किशन कुमार है। उसके पिता का नाम श्रीकांत कुमार है। वो जिले के सुदंर नगर पंचायत का रहने वाला है। उसकी मासूमियत ऐसी है कि आप ना चाहते हुए भी स्नेहवश कुछ ना कुछ खरीदने पर मजबूर होंगे। क्या किशन का ये पुस्तैनी काम है, नहीं! किशन राजकीय मध्य विद्यालय भुरकुंडा में कक्षा 3 में पढ़ता है। समाजसेवी अनुप कुमार ने एक दिन उससे पूछा कि क्यों ये काम करते हुए। किशन ने मासूमियत से कहा कि पिताजी फेरी लगाने का काम करते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनकी कमाई कम हो गई। यही वजह है कि मैं प्रतिदिन पॉपकॉर्न और चना बेचता हूं। रोज तकरीबन 100 रुपये कमा लेता हूं। किशन ने बताया कि घर में मोबाइल नहीं है इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाता। पेट के लिए ये सब करना पड़ता है। ये बात पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार तक पहुंचाई गई। एसपी प्रभात कुमार ने तुरंत भुरकुंडा थाने में नया स्मार्टफोन भिजवाया और बच्चे को सौंपने का निर्देश दिया। बच्चे का चेहरा भी मोबाइल पाकर खिल उठा। उसने एसपी साहब का शुक्रिया अदा किया। 

पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने क्या स्पेशल किया
क्या ये उपरोक्त काम मुश्किल हैं, कतई नहीं। क्या ये काम केवल प्रभात कुमार ही कर सकते हैं, ऐसा भी नहीं है। तो एसपी प्रभात कुमार ने क्या खास किया। उन्होंने सामुदायिक पुलिसिंग की अवधारणा को महज भाषणों तक सीमित नहीं रखा। केवल इवेंटबाजी नहीं की बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति से उसे धरातल पर उतारा। सामुदायिक पुलिसिंग को महज अवधारणा नहीं रहने दी बल्कि उसे हकीकत बनाया। पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने जिले के सभी थाना प्रभारियों को निर्देश दिया है कि वे सामुदायिक पुलिसिंग के तहत सामाजिक कार्यों को प्राथमिकता दें। 

रामगढ़ एसपी ने सामुदायिक पुलिसिंग पर क्या कहा
रामगढ़ के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार से द फॉलोअप संवाददाता सूरज ठाकुर ने इस पूरे मसले पर बातचीत की और उनके प्रयासों के बाबत विस्तृत जानकारी हासिल करना चाहा। एसपी प्रभात कुमार से हमने पूछा कि सामुदायिक पुलिसिंग की जो अवधारणा महज सरकारी कार्यक्रमों तक सीमित हो जाती है, उसे उन्होंने धरातल पर कैसे उतारा। प्रभात कुमार ने कहा कि, सामुदायिक पुलिसिंग के तहत मैंने जो भी किया वो किसी प्रशिक्षण का हिस्सा नहीं है। ये मामला एटीट्यूट और इच्छाशक्ति का है। सामाजिक कार्य करना मेरी परवरिश का हिस्सा है। ये समाज में बढ़ते हुए आप अपने आसपास के वातावरण से सीखते हैं, मैंने भी सीखा। ये इनहैरिट होता है। उन्होंने बताया कि कॉलेज या स्कूल में पढ़ाई करते समय भी वो अपने क्षमता के मुताबिक जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाना और उनकी आर्थिक मदद करना जैसे काम करते थे। वे कहते हैं कि परिवार में माता-पिता और समाज की गतिविधियों से ही लोग सीखते हैं। समाज और परिवार की गतिविधियां और समाज आपमें मदद करने की भावना विकसित करती है। 

एसपी प्रभात कुमार ने किन चुनौतियों का सामना किया
हमने पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार से पूछा कि बड़े प्लेटफॉर्म पर काम करते समय बड़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि निश्चित रूप से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से दो तरह की चुनौती है। पहली चुनौती ये है कि लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। लोग ब़ड़ी संख्या में अपनी-अपनी समस्या के साथ सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि मैं एक पुलिस अधिकारी हूं और मेरी कुछ लिमिटेशन्स हैं। मैं एक तय सिस्टम के तहत ही लोगों की सहायता कर सकता हूं। मैं आम इंसान नहीं हूं, जिले का पुलिस अधीक्षक हूं। ऐसी परिस्थिति में लोगों की उम्मीदें मुझसे ज्यादा है। उनकी उम्मीदों को जिंदा रखना भी चुनौती है। 

सामुदायिक पुलिसिंग से पाटी जा सकेगी निगेटिव खाई
क्या सामुदायिक पुलिसिंग से वो खाई पाटी जा सकती है जिसमें पुलिस और आम जनता के बीच भय और शंका होती है। इसके जवाब में पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने कहा कि निश्चित रूप से। सामुदायिक पुलिसिंग का यही सबसे बड़ा फायदा है। एसपी प्रभात कुमार कहते हैं कि सामुदायिक पुलिसिंग के तहत भले ही मैंने एक परिवार की सहायता की हो लेकिन आसपास के 20 परिवारों में सकारात्मक संदेश जाता है। वे पुलिस को लेकर अपनी अवधारणा बदलते हैं। एक अच्छी छवि बनती है। पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार कहते हैं कि सामुदायिक पुलिसिंग, पुलिस अधिकारियों का व्यक्तिगत व्यवहार और पुलिस थानों की शिकायत पर प्रतिक्रिया, ये सभी बातें मिलकर, आम जनता और पुलिस व्यवस्था के बीच की खाई को पाटती है। प्रभात कुमार कहते हैं कि आज से 10 साल पहले पुलिस की छवि काफी खराब थी। मैं जब इस सिस्टम का हिस्सा नहीं था तो मैं भी ऐसे ही सोचता था लेकिन अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही। पुलिस और आम लोगों के बीच परस्पर विश्वास का माहौल विकसित हो रहा है। आने वाले वर्षों में ये और भी अच्छा होगा। 

सामुदायिक पुलिसिंग के लिए किस सिस्टम की जरूरत
बतौर आखिरी सवाल हमने पूछा कि जिले में आपने कुछ लोगों की सहायता की लेकिन जरूरतमंद सैकड़ों लोग होंगे। आप व्यक्तिगत रूप से हर किसी के पास मौजूद नहीं हो सकते। जिले के प्रत्येक जरूरतमंद तक सहायता पहुंच सके, आपने इसके लिये क्या कोई सिस्टम विकसित किया है। जवाब में एसपी प्रभात कुमार ने कहा कि मैंने बच्ची का इलाज करवाया। एक बच्चे के लिए ट्यूशन फीस की व्यवस्था की लेकिन ऐसा नहीं है कि पूरे रामगढ़ में केवल इन्हीं 2 लोगों को मदद की जरूरत थी। कम से कम 1000 लोग वैसे होंगे जिन्हें सहायता चाहिए। लोग सामने आकर अपनी समस्या बताते भी हैं। ऐसे में निश्चित रूप से एक व्यवस्था कायम करनी होगी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मदद पहुंचाई जा सके। ऐसे काम से समाज के बाकी लोग और मेरे जैसे पुलिस अधिकारियों को भी सामने आना होगा। उम्मीद है कि लोग सामुदायिक पुलिसिंग के लिए जागरूक होंगे। लोगों की मदद के लिए आगे आएंगे। 

समाजसेवी अनुप कुमार सिंह की मामले में अहम भूमिका
जिले के सक्रिय समाजसेवी अनुप कुमार ने द फॉलोअप से बातचीत में कहा कि मैं बीते 2 साल से एसपी साहब को जानता हूं। जब भी बात पब्लिक पुलिसिंग की आती है एसपी साहब की प्रतिक्रिया काफी अच्छी और सकारात्मक होती है। वे मामले में त्वरित कार्रवाई करते हैं। अनुप ने कहा कि अच्छा लगता है कि जिले का कप्तान समाज के हित में अच्छा काम करता है। इससे लोगों का मनोबल ऊंचा होता है। अगर सभी जिलों में ऐसा हो तो सकारात्मक बदलाव आयेगा।