डॉ. तबस्सुम जहां, दिल्ली:
स्त्री प्रेम के नाम पर सदा छली गयी है कभी प्रेमी से तो कभी पति से। एक स्त्री जब किसी से मन से प्रेम करती है तब उस पर अपना सर्वस्व लुटाने की भावना रखती है। वे तन से नहीं अपितु मन की गहराइयों में डूब कर प्रेम करती है। जब वे प्रेम करती है तब उसके लिए शरीर गौण हो जाता है। पर इसके विपरीत स्त्री की इन्हीं कोमल भावनाओं का लाभ उठाकर कुछ पुरुष उसके साथ छल करते हैं। उनके लिए स्त्री प्रेम केवल उसकी देह को पाना व उस पर अधिकार की भावना रखना है। जिसे जब चाहे जैसा चाहे पुरुष इस्तेमाल करता रहे। इसी भावना से ओतप्रोत कुछ कलुषित मन व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए प्रेम का ढोंग करते हैं। वे प्रेम को केवल शारिरिक उपभोग तक सीमित रखते हैं। जब स्त्री उनकी इच्छाओं की पूर्ति नहीं करती तब वे उस पर दबाव बनाते हुए उसे हर संभव ब्लैकमेल करने की कोशिश करते हैं। व्यक्ति पहले प्रेम पत्रों द्वारा स्त्री को समाज मे बदनाम करने कोशिश करता था। फिर प्रेम पत्रों का स्थान फ़ोटो ने ले लिया। अब वे वीडियो रिकॉर्डिंग व एम एम एस द्वारा स्त्री को बदनाम करने की साजिश करता है। इसकी आड़ में स्त्री का मनमाना शोषण करता है। कुछ इसी विषय पर फ़िल्म पिज़्जा एम एम एस की कथा आधारित है।
निर्देशिका प्रतिभा शर्मा कृत यह फ़िल्म स्त्री जागरूकता व स्त्री सशक्तिकरण की बुलन्द आवाज़ है। इनकी खासियत यह है कि इनकी लघु फिल्में स्त्री का शोषित, असहाय व बेबस रूप नहीं दिखाती बल्कि इनकी नारी जागरुक व अपने अधिकारों के प्रति सचेत है। वे विपरीत परिस्थितियों से लड़ना जानती है। वे अपने परिवार का आधार बनती है। वे न केवल स्वयं को अपितु अपने बच्चों को भी बेहतर भविष्य देने का सामर्थ्य रखती है। वे यदि रोती है तो उसके आँसू उसके लिए ईंधन बनकर ऊर्जा का काम करते हैं। जो उसे शक्ति से भर देते हैं। इनकी फिल्मो की नायिकाएं सभी भारतीय स्त्रियों के लिए प्रेरणा बनती हैं। सबसे अहम बात यह है कि इनकी लगभग सभी फिल्में अंत मे बहुत ही खूबसूरत व सार्थक संदेश दर्शकों को देती हैं। 'नयी अम्मी' फ़िल्म की भांति 'पिज़्ज़ा एम एम एस' फ़िल्म के केंद्र में भी स्त्री पात्र है और समस्त कथानक उसके इर्द गिर्द घूमता है। फ़िल्म शहर में अकेली रह कर जॉब कर रही दो युवतियों में से एक युवती सोना के प्रेम प्रसंग पर आधारित है। सोना का प्रेमी उसके घर आकर आता है। और किसी बहुत ही क़रीबी सदस्य की तरह अधिकारपूर्वक अपनी प्रेमिका के सामने व्यवहार करता है। इतना ही नहीं वह रोमांस करते हुए उसकी रिकॉर्डिंग करने लगता है। सोना नाराज़ होकर उसे तुरंत जाने के लिए कहती है पर वह नही जाता और हर सम्भव उसे मनाने की कोशिश करता है। सोना पहले दुःखी होती पर कुछ सोच कर अंततः मान जाती है। वह कपड़े बदल कर आती है तो देखती है कि मानव ने खिड़की दरवाज़े सख्ती से बंद कर दिए हैं। उन पर पर्दे भी कवर कर दिए हैं। वह मानव से कहती है कि उसे बहुत भूख लगी है। संबंध बनाने से पहले वे पिज़्ज़ा खाना चाहती है। वह पिज़्ज़ा ऑर्डर करती है। पिज़्ज़ा आने से पहले ही दोनों समर्पण की मुद्रा में आ जाते हैं। मानव अब खुले तौर पर उसका एम एम एस बनाता है।
फ़िल्म के चरित्रों की एक्टिंग कमाल की है। यहाँ तक कि उनका नामकरण भी उनके चरित्र के अनुसार रखा गया है। जो वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है। नायक जिसका नाम मानव है उसमें नाम के विपरीत मानवीय गुणों का अभाव है। केवल प्रेमी होने पर ही वे नायिका को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझता है। जिसका जब चाहे वे उपभोग कर सके। "शरीर की भूख" तथा " तुम्हे कुछ और नहीं सूझता क्या" नायिका का संवाद स्पष्ट करता है कि मानव केवल उसे प्रेम नहीं अपितु वासना की दृष्टि से देखता है। नायिका सोना का प्रेमी के सामने ही बच्चों-सा व्यवहार उसके भोले भाले चरित्र को दर्शाता है। अपने ऊपर पड़ी विपत्ति के समय वह धैर्य व सूझ बूझ से काम लेती है अतः फ़िल्म के अंत तक आते-आते उसका चरित्र सोने- सा निखर जाता है। नायक का नकारात्मक चरित्र दर्शकों को उसके प्रति नफ़रत और घृणा से भर देता है। पर नायिका के प्रति दर्शकों की सहानुभूति डावांडोल सी होती रहती है। क्योंकि आरंभ में जो नायिका अपना एम एम एस बनता देख मानव को बाहर जाने के लिए कहती है कुछ देर बाद वही उसका आग्रह स्वीकार कर लेती है। उसे खुशी-खुशी पूरा सहयोग करती है। जिस एम एम एस का थोड़ी देर पहले वह विरोध कर रही थी उससे अब उसे कोई आपत्ति नहीं है। उसे भूख लगी है इसलिए पिज़्जा आर्डर करती है। डोर बेल बजती है। पिज़्ज़ा उसके दरवाज़े है। नायिका अपने हाव भाव व एक्टिंग से नायक को कुछ भी संदेह नही होने देती और अंत मे वह होता है जिसकी कल्पना किसी को नहीं होती है।
लघुफिल्म का शीर्षक ' पिज़्ज़ा एम एम एस' उक्त फ़िल्म के सर्वथा अनुकूल है। निर्देशिका द्वारा यह शीर्षक रखा जाना विषय पर उनकी पकड़ की बारीक़ी को रेखांकित करता है। आज जबकि आधुनिकता और भौतिकता का बोलबाला है। भारतीय संस्कृति के विपरीत पिज़्ज़ा और एम एम एस दोनों भी आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति की देन हैं। जहाँ अधिक पिज़्ज़ा खाने से स्वास्थ्य ख़राब होता है शरीर अनेकानेक बीमारियों का घर बन जाता है। उसी प्रकार ग़लत भावना से बनाया गया किसी का एम एम एस उस व्यक्ति के चरित्र ही नहीं बल्कि जीवन को भी बर्बाद कर देता है। इतना ही नहीं, यह समाज मे अनेक अपराधों को जन्म भी देता है। दूसरे, एक लड़की जिसके बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं तब कैसे एक पिज़्ज़ा आकर उसको बचाता है। कैसे एक युुवती विपरीत परिस्थितियों में अपनी इज़्ज़त और अस्मिता की रक्षा करती है यह वाकई निर्देशिका की बेहतर सोच का परिणाम है।
भारतीय समाज मे स्त्री पुरुष का संबंध बनाना समाज की दृष्टि में सही नहीं है। वर्तमान समय मे यह आम हो चला है। स्त्री पुरुष का प्रेम आँखों से शुरू होकर सीधे बिस्तर पर पहुंच जाता है। यहीं से ख़ासकर स्त्री के जीवन मे विसंगतियां उत्पन्न होने लगती है। प्रेम के नाम पर उनका शारिरिक व आर्थिक शोषण होने लगता है। उसे भांति भांति से कभी परिवार व कभी समाज का डर दिखा कर बदनाम करने का प्रयास किया जाता है। समय के साथ इसके तरीके भी बदलते रहते हैं। एम एम एस उसी सोशल मीडिया का आधुनिक रूप है। यह तेज़ी से वायरल होता है जिससे स्थिति और भी भयानक हो जाती है। यूँ तो प्रेम के नाम पर स्त्री का सदियों से ही शोषण होता रहा है। मानव जैसे लोग प्रेम के नाम पर उनका शोषण करते रहे हैं। इसी शोषण की भावना पर यह फ़िल्म आधारित है। फ़िल्म में दिखाया गया है कि पुरुष अब भी वही पुरूष है पर आज की स्त्री केवल शोषित व प्रताड़ित होने तक सीमित नहीं है। वे जागरूक है। सचेत है। अपनी देह व अपने अधिकारों के प्रति। पुरूष प्रेम उसकी वासना को वे समझने लगी है। कहानी में कुछ ऐसा होता है जिससे नायिका तुरंत ही अपने प्रेमी के गलत इरादों को भांप जाती है। उसे पहले तो यक़ीन ही नहीं होता। मानव पर किया उसका विश्वास क्यों और कैसे चकनाचूर होता है। प्रेम के नाम पर किस प्रकार उसको छला जाता है। उसके बाद सोना की क्या प्रतिक्रिया होती है यह सब घटनाएं न केवल फ़िल्म की कथावस्तु को आगे बढ़ाती हैं बल्कि फ़िल्म में रोचकता भी पैदा करती हैं। मानव उससे प्रेम नहीं अपितु अब तक प्रेम के नाम पर उसका शोषण कर रहा है। वह उसका एम एम एस बनाना चाहता है। सोना को न नुकुर करते देख वह चुपके से उसकी ड्रिंक में नशे की वस्तु भी मिला देता है। मानव उन सभी व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फांस कर उनके सभी प्रकार से शोषण करते हैं। इसके लिए वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति समाज के लिए एक ख़तरा हैं। और ऐसे व्यक्ति से खुद की रक्षा कैसे करनी है यही कहानी का मूल संदेश भी है जिसे देने में निर्देशिका प्रतिभा शर्मा सफ़ल रही हैं।
इस फ़िल्म के तकनीकी पक्ष पर बात करें तो 16 मिनट की पूरी फ़िल्म को केवल एक ही टेक में फ़िल्माया गया है। फ़िल्म के सभी चरित्रों ने किसी रंगमंच की भांति पहले अच्छे से रिहर्सल की और फ़िर रंगमंच की भांति ही बिना रुके अभिनय करते रहे। हैरत की बात यह है कि अलग-अलग दृश्य बदलने पर भी कहीं कोई अलग से टेक नहीं लिया गया। यकीनन सिनेमा जगत में निर्देशिका प्रतिभा शर्मा का यह अनूठा और सफल प्रयोग है। बिना टेक प्रवाहमय अभिनय करना चरित्रों के अभिनय कौशल को सिद्ध करता है। अतः कहा जा सकता है कि समीक्षा की दृष्टि से "पिज़्ज़ा एम एम एस' लघुफिल्म एक अनूठे प्रयोग के साथ दर्शकों तक अपना मैसेज पहुँचाने में सफल रही है।
( लेखिका कहानीकार, आलोचक और फ़िल्म समीक्षक हैं। इनकी कहानियां और समीक्षात्मक लेख देश -विदेश की पत्र -पत्रिकाओं में निरंतर छपते रहते हैं। संप्रति अंतर्राष्ट्रीय मासिक पत्रिका "साहित्य मेघ" में सह संपादक ।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।