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वतन की राह... से लेकर पिया गए रंगून... तक वाले राजा मेहदी अली ख़ान को जानिये

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मनोहर महाजन, मुंबई:  

राजा मेहदी अली ख़ान का हिंदी फिल्म संगीत को बहुत बडा योगदान रहा है। उनकी क़लम से 'मिलन' और 'विछोह' की स्‍याही से निकले नग्मों की संख्या भले ही कम हो लेकिन उनकी धमक, उनकी रवानी, उनकी जवानी कभी कम न होगी। लोकप्रिय संगीत का सदा वो अटूट हिस्सा रहेंगे। राजा मेहदी अली ख़ान का जन्म अविभाजित भारत के झेलम ज़िले की बस्ती' करमाबाद' गांव में सन 1928  में हुआ था। इस बस्ती का नाम उनके ज़मींदार दादा के नाम पर पड़ा। बचपन में ही उन्होंने अपने पिता का साया खो दिया और कुछ दिनों के बाद अपनी माँ हेबे साहिबा जिनका एक अग्रणी उर्दू शायरा के रूप में शुमार होता था को भी खो दिया।

1946 में फिल्म "दो भाई" में पहला गीत

राजा ने एक फ़िल्म '8 -डेज़' में 'संवाद लेखक' के रूप में शुरुआत की। अशोक कुमार के साथ इस फ़िल्म में एक भूमिका  भी निभाई। राजा मेहदी को पहली बार निर्माता निर्देशक एस. मुखर्जी ने 1946 में बनी अपनी फिल्म "दो भाई" में गीत लिखने का मौक़ा दिया। इस पहली ही फिल्म के गीत 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' 'और' 'याद करोगे' ने उन्हें चोटी के गीतकारों की क़तार में ला खड़ा किया। इन दोनों गीतों ने गीतादत्त और सचिनदेव बर्मन को भी आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। 1948 में दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत फिल्म "शहीद" में लिखे उनके देशभक्ति गीतों "वतन की राह में" और "तोड़ो-तोड़ो बच्चे" ने उन्हें एक बहुमुखी गीतकार साबित कर दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा।

संगीतकार मदन मोहन के साथ दिलकश जोड़ी

पहली ही फ़िल्म 'मदहोश' (1950) के साथ राजा मेहदी अली और  संगीतकार मदन मोहन की जो एक 'अमर टीम' बनी वो अंत तक सुनहरे और दिलकश गानों का सृजन करती रही। 'अनपढ़', 'मेरा साया', 'वो कौन थी', नीला आकाश, दुल्हन एक रात की और नवाब सिराजुद्दौला जैसी कुछ बेहतरीन में इन दोनों ने साथ काम किया। राजा मेहदी अली खान फिल्मी गीतों में  शब्द 'आप' को  एक बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में पेश करने वाले पहले गीतकार थे। 'आप की नज़रों ने समझा ...'(अनपढ़), 'आप क्यों रोए' (वो कौन थी), 'आप ने अपना बनाया' (दुल्हन एक रात की) कुछ जवलंत मिसालें हैं। इकबाल कुरैशी, बाबुल, एस मोहिंदर, चिक चॉकलेट और सी.रामचंद्र  जैसे संगीतकारों से भी जुड़कर उन्होंने कई सदाबहार गाने दिए। सी रामचंद्र के साथ :"मेरे पिया गए रंगून".और ओ.पी. नैयर  के साथ :"मैं प्यार का राही हूं" को भला कौन भुला सकता है?

गीतकार और लेखक के साथ साथ संगीतकार भी थे

साठ के दशक के मध्य में राजा मेहदी अली खान ने अगली पीढ़ी के संगीतकारों  लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ख़ासकर के साथ भी सनसनीख़ेज़ जोड़ी बनाई। 'अनीता' और 'जाल' जैसी फिल्में इसके उदाहरण हैं। अपनी युवावस्था में राजा मेहदी के ख़ान के यहां बतौर ड्राइवर काम कर चुके अभिनेता महमूद ने एक इंटरव्यू में बताया था: "राजा मेहदी की कविताएँ और लघु कथाएँ नियमित रूप से 'बीसवीं सदी', 'शमा' 'बानो' और 'खिलोना' जैसी उर्दू पत्रिकाओं में छपती थीं। उनके पास'अंदाज़-ए-बयान और' और 'मिज़राब' जैसे गीतों और उर्दू 'दीवानों' का खजाना  था। वे अंत तक अच्छी पोएट्री  के 'राजा' की तरह रहे।" कम लोगों को मालूम है कि राजा मेहदी अली ख़ान एक बहुत ही शानदार शायर, गीतकार और लेखक के साथ साथ संगीतकार भी थे। पर मौत के ज़ालिम हाथों ने उन्हें ज़िन्दगी की ज़्यादा मोहलत नहीं दी.मात्र  38 साल कि उमर में 29 जुलाई 1966 को उसने उन्हें हमसे छीन लिया। वरना गीत संगीत के इतिहास का एक और अमिट बड़ा अध्याय लिखा जाता।

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।